Abhishap by rajvansh Best Hindi Novel | Grehlakshmi
Abhishap by rajvansh

‘तुम क्या सोचती हो?’ आनंद ने एक कंकड़ उठाकर जल में फेंकते हुए भारती से कहा- ‘मनु के हृदय में वास्तव में जलन हुई होगी?’

‘स्त्रियां इस मामले में बहुत कायर होती हैं।’

अभिशाप नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- भाग-1

‘मतलब?’

‘स्त्री कभी नहीं चाहती कि कोई उसके पति की ओर आंख उठाकर देखे और उससे प्यार करे।’

‘मनु तो संबंध तोड़ चुकी है।’

‘नहीं सर! संबंध अभी टूटे नहीं हैं। यदि ऐसा होता तो आपके साथ मुझे देखकर उसे इतनी ईर्ष्या न होती। ईर्ष्या केवल इसीलिए हुई है क्योंकि वह आपको आज भी उतना ही चाहती है।’

‘मैं विश्वास नहीं करता।’

‘आपको उससे मिलना चाहिए।’

‘किसलिए?’

‘उससे यह बताने के लिए कि आप उसे आज भी उतना ही चाहते हैं।’

‘न-नहीं मनु!’

‘किन्तु क्यों?’

‘यह कायरता होगी।’

‘फिर-मन को क्योंकर समझाएंगे?’

‘अपने आपको यह सोचकर तसल्ली दूंगा कि वह किसी-न-किसी को तो चाहती है।’

‘सर!’ आनंद की पीड़ा भारती का हृदय चीर गई।

‘भारती!’ आनंद ने उठकर निःश्वास ली और बोला- ‘मैं केवल यह चाहता हूं कि वह जहां भी रहे, जिसके साथ भी रहे-खुश रहे। कभी कोई पीड़ा न हो उसे। कभी कोई कांटा न चुभे उसके पांव में। कोई अभाव न हो उसके जीवन में। वह जीवनभर कलियों की भांति मुस्कुराए और फूलों की तरह हंसती रहे। उसने मुझे न चाहा, यह उसका सौभाग्य था। मैं उसे चाहता हूं यह मेरा सौभाग्य है।’

‘आप-आप महान हैं सर!’

‘नहीं भारती! यह मेरी महानता नहीं। यह तो मेरे हृदय की आवाज है। मेरी आत्मा की आवाज है यह। भले ही यह प्यार मुझे जलाकर राख कर दे। भले ही यह पीड़ा मेरे अंदर इतना विष भर दे कि मेरा प्राणांत हो जाए। किन्तु मैं यह भी चाहूंगा कि उसका एक भी सपना न टूटे। उसे वह सब मिले, जिसकी उसने कल्पना की है।’

इतना कहकर वह एक ओर को चल पड़ा।

भारती उसके साथ-साथ चलती रही।

मौन के पश्चात् भारती ने पूछा- ‘आपके मुकदमे की तारीख कब है?’

‘शीघ्र ही है।’

‘उस दिन क्या होगा?’

‘मुझे एवं मनु को बयान देना होगा।’

‘बयान में आप क्या कहेंगे?’

‘यही कि मेरे कई लड़कियों से अनैतिक संबंध हैं। मैं शराब पीता हूं ओर मनु पर अत्याचार करता हूं।’

‘क्या यह अन्याय न होगा?’

‘कैसा अन्याय?’

‘अपने हृदय एवं आत्मा के साथ?’

‘नहीं।’

‘आपकी आत्मा क्या कहेगी?’

‘सिर्फ यह कि मैं मनु को चाहता हूं।’

‘और-हृदय?’

‘वह तो पहले ही मनु का हो चुका है। अतः गवाही भी देगा तो उसी की।’

‘विचित्र हैं आप भी।’

आनंद ने तुरंत बातों का विषय बदल दिया। बोला- ‘चलोगी नहीं?’

‘कहां?’

‘अपने घर।’

‘थोड़ी देर और रुकिए न।’

‘अंधेरा बढ़ रहा है।’

‘आपकी तो मित्रता हो गई है अंधेरों से-फिर भय कैसा?’

‘तुम साथ हो न। सोचता हूं कहीं इन अंधेरों की छाया तुम पर न पड़ जाए।’

‘विश्वास कीजिए, यह छाया मुझ पर न पड़ेगी।’

‘तुम जानती हो-निखिल थोड़ी देर पहले यहीं था।’

‘वह मुझे देख चुका है, किन्तु अब उसमें इतना साहस नहीं कि आपके और मेरे विषय में कुछ कह सके।’

‘क्यों?’

‘उसने मुझसे कहा था कि मैं आपसे न मिलूं। और मैंने उससे कहा था कि यदि वह मनु का साथ छोड़ दे तो मैं प्रोफेसर से कभी नहीं मिलूंगी।’

‘निखिल ऐसा कभी न करेगा।’

‘फिर उसे यह भी कहने का अधिकार नहीं कि मैं आपसे न मिलूं।’

आनंद रुक गया और फिर से छोटी-छोटी कंकड़ें उठाकर पानी में फेंकने लगा। हवाएं अब शांत थीं-लहरों में भी उतनी हलचल न थी।

निखिल ने फिल्म का प्रिंट देखा।

देखते ही कमरे में विस्फोट गूंज गया। निखिल के मस्तिष्क की धज्जियां उड़ गईं। यों लगा-मानो बिजली गिरी हो। गुस्से में उसने शराब की बोतल स्क्रीन पर दे मारी और इसके उपरांत वह पूरी शक्ति से चिल्लाया- ‘पाशा!’

पाशा उसी समय कमरे में आ गया। कमरे में आकर उसने एक नजर स्क्रीन के टुकड़ों पर डाली और इसके उपरांत वह निखिल से बोला- ‘यह-यह क्या हुआ सर?’

‘हरामजादे!’ निखिल की आंखों से आग बरस रही थी। उसने दोनों हाथों से पाशा का गिरेबान जकड़ लिया और गुस्से से दांत पीसकर चिल्लाया- ‘कमीने! मैं-मैं तेरा खून पी जाऊंगा। मैं तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा पाशा के बच्चे!’

‘पर-पर हुआ क्या?’

‘कुत्ते तूने मेरी बहन का अपहरण कराया। तूने शूटिंग के नाम पर रातभर मेरी बहन की इज्जत से खिलवाड़ की। ब्लू फिल्म बनाई उस पर।’

‘न-नहीं।’

‘हरामजादे! वह आरती थी। मेरी छोटी बहन-मेरी नन्हीं गुड़िया। हर वर्ष राखी बांधती थी वह मेरी कलाई पर। मंगल टीका लगाती थी मेरे मस्तक पर। कहती थी-मेरी उम्र भी मेरे भइया को लग जाए।’ क्रोध एवं दुःख की अधिकता के कारण निखिल रो पड़ा और कहता रहा- ‘और तू-तूने मेरी उसी गुड़िया को लूट लिया पाशा! सिर्फ तूने ही नहीं-उसे सलीम, असगर और भीमा ने भी लूटा। जी भर कर लूटा उसे।’ और इसके उपरांत वह चकराकर बिस्तर पर गिर पड़ा और फूट-फूटकर रोने लगा।

यह देखकर पाशा के होंठों पर विचित्र-सी मुस्कुराहट थिरक उठी। उसने एक बार अपने गले पर हाथ फिराया और फिर निखिल से बोला- ‘माफ करें सर! इसमें मेरी कोई गलती नहीं। मुझे अपनी फिल्म के लिए किसी नए चेहरे की तलाश थी-अतः कल शाम जब एक खूबसूरत लड़की मुझे नजर आई तो मैंने सलीम से कहकर उसे किडनैप करा लिया। इसके पश्चात् तो वही होता सर!’

‘पाशा! मैं लुट गया। मैं बर्बाद हो गया। इतनी दौलत होते हुए भी आज मेरे पास कुछ न रहा। मैं-मैं इस दौलत में आग लगा दूंगा। पाशा! जलाकर राख कर दूंगा इसे। इस दौलत ने मुझसे मेरा परिवार छीन लिया। मेरी बहन की इज्जत लूट ली। नागिन बनकर मेरा ईमान डस लिया। मैं-मैं इस दौलत को जिंदा नहीं छोडूंगा पाशा!’ निखिल ने गुस्से से कहा।

घर पर बनाएं रेस्टोरेंट जैसी दाल, हर कोई चाटता रह जाएगा उंगलियां: Dal Fry Recipe

और इसके पश्चात् ही उसने सोफे से उठकर लाइटर निकाल लिया। इस वक्त उसकी आंखों में पागलपन के भाव स्पष्ट झांक रहे थे। यों लगता था-मानो उसने सचमुच ही सब कुछ जलाकर राख करने का निश्चय कर लिया हो।

पाशा उसकी मुखाकृति देखकर डर गया।

वह बोला- ‘यह-यह आप क्या करने जा रहे हैं सर?’

‘हट जाओ। सामने से हट जाओ पाशा! आज मैं यहां कुछ भी शेष नहीं रहने दूंगा। आग लगा दूंगा इस दौलत को। यह-यह दौलत मेरी दुश्मन है पाशा!’

पाशा कांपकर रह गया।

तभी भड़ाक से दरवाजा खुला और इसके उपरांत निखिल ने जो कुछ देखा-उसे देखते ही उस पर चट्टान टूट पड़ी। अखिल ने मूर्छित अथवा मृत आरती को कंधे पर उठाए अंदर प्रवेश किया था।

अखिल का चेहरा भट्टी की भांति दहक रहा था और आंखों से जैसे अंगारे बरस रहे थे। आगे बढ़कर उसने आरती को निखिल के पैरों में डाल दिया ओर फिर क्रोध से एक-एक शब्द को चताबे हुए कहा- ‘यह गुड़िया है मिस्टर निखिल वर्मा! जो अब मर चुकी है। मैं इसे इसलिए नहीं लाया कि यह तुम्हारी बहन है। इस संसार में तुम्हारी कोई बहन हो भी नहीं सकती निखिल वर्मा! इस संसार में कोई ऐसी लड़की भी नहीं हो सकती जो तुम्हारे जैसे कमीने इंसान की कलाई पर राखी बांधने का साहस कर सके। मैं इसे इसलिए लाया हूं-क्योंकि यह मेरी बहन है। यह एक गैरतमंद भाई की छोटी बहन है।’

निखिल को मानो सांप सूंघ गया।

आंखों से आंसू बहते रहे।

‘और।’ मानो शब्दों के रूप में अखिल अंगारे चबाता रहा- ‘तुम जानते हो यह सब क्यों हुआ? एक भोली-भाली लड़की एकाएक लाश में क्यों बदल गई, जानना ही चाहते हो तो लो-पढ़ो इस कागज को। पढ़ो इसमें लिखी हुई दास्तान।’ कहने के साथ ही अखिल ने मुट्ठी में दबा एक कागज निखिल की ओर उछाल दिया।

कागज आरती की लाश पर गिरा।

निखिल उसे उठाने का साहस न कर सका।

यह देखकर अखिल गुस्से से चिल्लाया- ‘उठाओ निखिल वर्मा! मैं कहता हूं-उठाओ इस कागज को। पढ़ो अपने काले कारनामे को।’

निखिल ने झुककर कागज उठा लिया। पढ़ा-पढ़ते ही उसने नीचे बैठकर बहन को अपनी बांहों में उठा लिया और फूट-फूटकर रोते हुए बोला- ‘मुझे माफ कर दे गुड़िया! माफ कर दे मुझे। मैं स्वीकार करता हूं तेरा खून मैंने किया है। मेरे पाप तुझे नाग बनकर डस गए आरती! मेरी दौलत तेरी चिता बना गई। उठ-उठ मेरी बहन! और आग लगा दे मेरी इस दौलत को। राख कर दे सब कुछ। यकीन कर आरती! आज मुझे कोई अफसोस न होगा, बल्कि यह सोचकर खुशी होगी कि जिस दौलत ने मुझसे मेरा परिवार, मेरा ईमान और मेरी बहन छीनी है, आज उसका अस्तित्व खत्म हो चुका है।’

‘बहुत हो चुका निखिल वर्मा!’ अखिल ने गुर्राते हुए आरती को निखिल की बांहों से छुड़ा लिया और बोला- ‘बंद कर अब इस नाटक को और डूब मर चुल्लू भर पानी में। कमीने! तू तो राक्षसों से भी गया गुजरा निकला। एक राक्षस भी अपने परिवार का खून नहीं पीता-मगर तूने तो एक इंसान होकर भी अपनी सगी बहन की इज्जत लूट ली। हुआ है इस संसार में कभी ऐसा? बोल हरामजादे!’ अखिल ने गुस्से में निखिल का गिरेबान पकड़ लिया और घृणा से बोला- ‘इस संसार में किसी भाई ने अपनी बहन की इज्जत लूटी है? अपनी बहन की इज्जत से दौलत कमाई है? मगर तूने ऐसा किया कुत्ते! ऐसा किया। मैं तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा निखिल! मैं तेरे खून से स्नान कराऊंगा अपनी बहन को और तब इसकी चिता को अग्नि दूंगा।’

‘अखिल मेरे भइया!’ निखिल रोते-रोते बोला।

‘मर गया तेरा भइया। मर गए तेरे माता-पिता और जलकर राख हो गया तेरा घर। मत कह अपनी गंदी जुबान से मुझे भइया। मत याद दिला मुझे मेरे बचपन की। बस इतना ही याद दिला कि तूने मेरी बहन की इज्जत लूटी है। बस इतना ही कह कि तूने मेरी गुड़िया का खून किया है। कमीने! शैतान!’ और इसके उपरांत तो वह जैसे पागल हो गया और निखिल के मुंह पर घूंसे बरसाने लगा।

पाशा यह देखकर शीघ्रता से बाहर चला गया।

निखिल ने अपना बचाव न किया। उसकी आंखों से झर-झर आंसू बहते रहे और एक क्षण ऐसा भी आया जब वह चकराकर गिर पड़ा।

यह देखकर भी अखिल का पागलपन दूर नहीं हुआ। उसने तत्काल जेब से चाकू निकाला और निखिल की छाती पर सवार हो गया।

निखिल ने इस बार अपने दोनों हाथ ऊपर उठाए और रोते-रोते अखिल से बोला- ‘ठहर भइया! मेरे अख्खी! बस एक पल के लिए ठहर।’

अखिल का ऊपर उठा हाथ रुक गया।

निखिल बोला- ‘तुझे अपना वचन तो याद है न अख्खी? तूने कहा था मैं तेरे खून से गुड़िया को स्नान कराऊंगा। तो सुन-मुझे थोड़ा मेरी बहन के करीब कर दे ताकि मेरी छाती से जब रक्त का फव्वारा निकले तो वह सीधा मेरी गुड़िया पर गिरे। यकीन कर अख्खी! मुझे अपनी मौत का कोई दुःख नहीं होगा। मैं-मैं जीना ही नहीं चाहता अख्खी! मैं मरना चाहता हूं।’

‘कुत्ते! शैतान!’ अखिल ने इस बार फिर अंगारे चबाए।

और इससे पूर्व कि उसके हाथ का चाकू निखिल के सीने में उतर पाता-किसी ने एकाएक उसके हाथ से चाकू छीन लिया।

अखिल ने चेहरा घुमाकर देखा।

यह उसका पिता राजाराम था।

‘पापा! आप।’

‘यह-यह तू क्या कर रहा था अखिल?’ राजाराम ने पूछा।

‘मैं इस पापी से अपनी बहन की मौत का बदला ले रहा था पापा! लाइए।’ अखिल उठकर राजाराम से बोला- ‘यह चाकू मुझे दीजिए-दीजिए पापा!’

‘खबरदार! यदि चाकू को हाथ भी लगाया तो गोली मार दूंगा।’ इस आवाज से कमरे में धमाका-सा हुआ।

राजाराम एवं अखिल ने देखा कमरे के द्वार पर एक पुलिस इंस्पेक्टर खड़ा था। इंस्पेक्टर ने आगे बढ़कर राजाराम के हाथ से चाकू ले लिया। उसी समय बाहर खड़े कांस्टेबल भी अंदर आ गए।

अभिशाप-भाग-26 दिनांक 16 Mar. 2022 समय 04:00 बजे साम प्रकाशित होगा

Leave a comment