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bhootnath by devkinandan khatri

भूतनाथ अपने दुश्मन को सामने से आते हुए देखकर एक दफे तो घबड़ा उठा मगर तुरन्त ही उसकी हिम्मत और दिलेरी ने उसकी पीठ ठोंकी और वह बड़ी दिलावरी के साथ मुसकुराता हुआ दुश्मन के पास आ जाने का इंतजार करने लगा।

थोड़ी ही देर में उसका दुश्मन उसके सामने आकर खड़ा हो गया और आश्चर्य से तथा जाँच की निगाह से भूतनाथ भैया राजा और मेघराज की तरफ देखने लगा।

भूतनाथ नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- भाग-1

भूतनाथ को यह निश्चय हो गया कि मेरा दुश्मन जरूर प्रभाकर सिंह ही है क्योंकि वह भैया राजा का साथी है, भैया राजा ने उसकी मदद की थी, और इन दोनों में इस समय बहुत गहरी मित्रता हो रही है।

वास्तव में बात भी यही थी। इस समय प्रभाकर सिंह भूतनाथ के सामने पहुँच कर ताज्जुब के साथ सोच रहे थे कि क्यों कर गदाधरसिंह ने मेघराज और भैया राजा पर कब्जा कर लिया जो कि हर हालत में भूतनाथ को दबा सकते थे। भूतनाथ ने मुसकुराकर प्रभाकर सिंह को कहा-

भूतनाथ : आप जरूर ताज्जुब करते होंगे कि इन दोनों को मैंने क्यों कर बेहोश कर दिया!

प्रभाकर सिंह : बेशक् यही बात है क्योंकि इन दोनों से तुम किसी तरह भी जीत नहीं सकते थे।

भूतनाथ : अब भी मैं यही कहूँगा कि इनको जीतने की ताकत मुझमें नहीं है मगर अपनी चालाकी और ऐयारी का नमूना दिखा देने की इच्छा प्रबल होने ही से मैंने वह कार्रवाई की।

प्रभाकर सिंह : इन दोनों को बेहोश कर देने के बाद तुम यहाँ से भाग क्यों नहीं गये?

भूतनाथ : भागने की तो मुझे कोई जरूरत नहीं थी। आप लोग चाहे मुझे जिस निगाह से देखें मैं आप लोगों से अब दुश्मनी का बर्ताव नहीं रखता मुझे विश्वास है कि आप लोग मेरे साथ कदापि बुराई नहीं करेंगे, इसी से इन दोनों को बेहोश करने के बाद भी बेफिक्री के साथ यहाँ खड़ा आपके आने का इंतजार कर रहा था।

प्रभाकर सिंह : तुम हम लोगों को जानते-पहिचानते भी हो या यों-ही दोस्त मान बैठे?

भूतनाथ : हाँ, इन मेघराज को तो मैं नहीं जान सका कि कौन है मगर आपको प्रभाकर सिंह और (हाथ का इशारा करके) इनके भैया राजा समझ लेने में मैं किसी तरह की भूल नहीं करता।

प्रभाकर सिंह : तुम्हारी धूर्तता और चालाकी की मैं जरूर तारीफ कर सकता हूँ मगर इसमें कोई सन्देह नहीं कि तुम्हारी नीयत बहुत ही खराब है और तुम्हारा दिल साफ नहीं है।

भूतनाथ : यही शक तो आप लोगों का नुकसान कर रहा है, नहीं तो अभी तक कितना काम हो चुका होता और भैया राजा की स्त्री को भी दुश्मनों की कैद से छुटकारा मिल गया होगा।

प्रभाकर सिंह : खैर, मैं तब तक तुमसे विशेष बातें न करूँगा जब तक कि ये दोनों होश में न आ जाएँगे क्योंकि इन दोनों के सामने ही बातचीत करना मुनासिब होगा।

भूतनाथ : आशा है कि बहुत जल्दी ये दोनों होश में आ जाएँगे।

प्रभाकर सिंह : तुम लखलखा सुंघाकर इन दोनों की बेहोशी क्यों नहीं दूर करते?

भूतनाथ : बेहतर होगा कि आप ही अपने हाथ से यह काम कीजिए।

प्रभाकर सिंह : (मुसकुराकर) मालूम होता है कि मेघराज के बदन पर हाथ लगा कर तुम धोखा खा चुके हो इसी से ऐसा कहते हो। खैर कोई चिंता नहीं-मैं खुद इन दोनों की बेहोशी दूर करने की कोशिश करता हूँ।

इतना कहकर प्रभाकर सिंह ने अपने ऐयारी के सामान में से निहायत उम्दा लखलखा निकाल कर भैया राजा और मेघराज को सुँघाया जिससे बात-की-बात में दोनों की बेहोशी दूर हो गई और वे आश्चर्य के साथ अपने चारों तरफ निगाह दौड़ा कर देखने लगे।

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