Abhishap by rajvansh Best Hindi Novel | Grehlakshmi
Abhishap by rajvansh

आनंद ने द्वार खोल दिया। सामने मनु खड़ी थी। मनु को देखकर उसके होंठों से चौंकने वाला स्वर निकला- ‘तुम!’

‘भारती कहां है?’

‘वह अपने घर है। उसकी छोटी बहन आरती ने आत्महत्या कर ली है। मैं भी वहीं से आ रहा हूं।’

अभिशाप नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- भाग-1

मनु ने फिर कुछ न कहा और यों खड़ी रही-मानो कुछ भूल आई हो। आनंद उसे ध्यान से देख रहा था। मनु को यों गुमसुम देखकर वह बोला- ‘क्या बात है मनु?’

‘तुम जानते हो कल हमारे मुकदमे की तारीख है।’

‘अच्छा! तो याद दिलाने आई हो।’ इतना कहकर आनंद बैठ गया और एक सिगरेट सुलगाकर बोला- ‘लेकिन सुबह मेरा वकील मुझसे मिल चुका है।’

‘मैं तुम्हारा बयान सुनना चाहती हूं।’

‘मेरा बयान।’ आनंद पीड़ा से मुस्कुराया और बोला- ‘नहीं मनु! मैंने फैसला किया है कि मैं अपना बयान नहीं दूंगा। मैंने यह भी फैसला किया है कि अदालत द्वारा पूछे गए प्रत्येक प्रश्न का उत्तर केवल हां में दूंगा।’

‘तुम ऐसा क्यों करोगे?’

‘तुम्हारी खुशी के लिए। और जानती हो-तुम्हारी खुशी क्या है? तलाक-सिर्फ तलाक। हालांकि यह मेरे जीवन की सबसे बड़ी पीड़ा है। किन्तु मैंने निश्चय कर लिया है कि मैं तुम्हारी खुशी के लिए इस पीड़ा को भी स्वीकार करूंगा।’

एक पल के मौन के बाद मनु बोली- ‘सुना है-तुम भारती से शादी कर रहे हो?’

‘हां! निश्चय तो है, किन्तु तुम जानती हो कि अदालत के निर्णय से पहले यह सब संभव नहीं।’

‘सुखी रह सकोगे उसके साथ?’

‘सुख और दुःख तो भाग्य की बातें होती हैं मनु! अब अपनी ही बात कहो न-सुख तो मुझे तुमने भी दिया था। कितना खुश हुआ था मैं तुम्हें पाकर। यों लगता था-मानो तुम्हारे रूप में संसार भर की खुशी मुझे मिल गई हो। किन्तु हुआ क्या-कहां गया वह सुख-वह खुशी-वह रुपहले दिन। वक्त की ऐसी आंधी चली कि आशियाना भी बिखर गया। रही भारती की बात तो देखता हूं कि भाग्य कब तक साथ देता है।’

‘चलती हूं।’ मनु बोली। आनंद के इन वाक्यों से उसके हृदय पर चोट लगी थी।

‘बैठोगी नहीं।’

‘कल हम कानूनन अलग हो जाएंगे।’ मनु के स्वर में पीड़ा थी।

‘इसीलिए तो आग्रह कर रहा हूं कि बैठो। सिर्फ आज ही का दिन तो है हमारे जीवन में। कल तो दिशाएं बदल जाएंगी। राहें अलग-अलग होंगी हम दोनों की। और जानती हो-उन दोनों राहों के बीच में क्या होगा? तलाक-एक गंदा घिनौना और भयानक शब्द।’

‘आनंद!’ मनु का हृदय भर आया।

‘बैठो।’ आनंद ने सिगरेट कुचल दी और उठकर मनु के कंधे पर हाथ रखा- ‘मैं तुम्हारे लिए कॉफी मंगाता हूं।’

‘आनंद! आनंद!’ मनु इस बार स्वयं को न रोक सकी और आनंद के हृदय से लगकर रो पड़ी।

आनंद मुस्कुरा उठा।

मनु कहती रही- ‘मुझे-मुझे माफ कर दो आनंद! मुझे माफ कर दो। ईश्वर के लिए मुझे तलाक न दो आनंद! मैं-मैं तुमसे दूर रहकर नहीं जी सकती।’

आनंद ने उसे बांहों में कस लिया।

द्वार पर खड़े गोपीनाथ यह देखकर मुस्कुराते रहे।

राजाराम ने बेटी की चिता को अग्नि दी और चिता धूं-धूं करके जल उठी। चिता के साथ एक युग भी जलकर राख हो गया। श्मशान में उस युग की मुट्ठी भर राख छोड़कर लोग घर लौट आए।

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उन लोगों में भारती का पति विनोद भी था। अवसर मिलते ही उसने अपनी जेब से कुछ कागज निकाले और भारती के सामने रख दिए।

भारती ने घृणा से पूछा- ‘यह क्या है?’

‘मैंने अपना मुकदमा वापस ले लिया है। यह समझौते के कागज हैं। जो कुछ हुआ है-उसे भूल जाओ और इन पर हस्ताक्षर कर दो।’

‘कोर्ट में तलाक का मुकदमा दायर करने के बाद तुम समझौते की बात कर रहे हो?’

‘वह भूल थी मेरी। सच तो यह है कि यह सब मां की इच्छा से हो रहा था। लेकिन…।’

‘लेकिन क्या?’

‘मां अब संसार में न रहीं। अभी तीन दिन पहले ही उनका देहांत हुआ है।’

यह सुनकर भारती की आंखें भर आईं। वह कुछ क्षणों तक तो विचार मग्न रही और फिर कलम उठाकर कागजों पर हस्ताक्षर करने लगी।

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