उत्तर प्रदेश के हेरिटेज आर्क में मुगलिया सल्तनत के निशान, लखनऊ की नवाबी शानो शौकत और बनारस का दर्शन सब कुछ है। अगर आप घूमने फिरने के शौकीन हैं और गंगा-जमुनी संस्कृति की लहरों में डूबते उभरते भारत को देखना चाहते हैं तो आगरा और आस पास के इलाकों में निकल जाइए।
आगरा
इस हेरिटेज आर्क का पहला स्थान तो है ही, साथ ही बृजभूमि का प्रवेश द्वार भी है। टाइम मशीन पर सवार हो मुगल काल के भारत में लौट जाने का सा एहसास कराता है ‘आगरा। सिकंदर लोदी ने बड़ी हसरतों से आगरा शहर की स्थापना की थी। मुगल सल्तनत का पसंदीदा स्थल और मुगल साम्राज्य की राजधानी रहा आगरा, आज पूरे विश्व में ताजमहल के कारण जाना जाता है। यूनेस्को की विश्व धरोहरों की सूची में शामिल ताज अगर नहीं देखा तो समझिए आप अब तक भारत को देखने और समझने की यात्रा शुरू भी नहीं कर पाये हैं। यमुना किनारे हरी घास के लॉन और फूलों के गलीचों के बीच खड़े सफेद ताज के नज़दीक जाकर हो सकता है आप खुद को मुगलिया सल्तनत और भाग दौड़ भरी वर्तमान जि़न्दगी के बीच फंसा हुआ महसूस करें, पर ताज के इर्द गिर्द टहलने पर आपमें खुद-ब-खुद इस इमारत से जुड़ी इश्क की इबारत सांस लेने लगेगी। ताज ही क्यों आगरा में मुगल सल्तनत के कई और निशान भी हैं। बाबर ने आगरा में कई चौकोर बाग बनवाए, उन्हें देखिये। फिर आगरा पहुंचकर आगरा का लाल किला नहीं देखा तो आपने उस जगह को नहीं देखा जहां कभी कोहिनूर रखा था और जहां हुमायूं का राज्याभिषेक किया गया था। इसी तरह फतेहपुर सीकरी, सिकंदरा, जामा मस्जिद, सोआमी बाग आदि आपको यकीनन इतिहास के कई जाने पहचाने चेहरों से मिलवाएंगे। यहां संगमरमर पत्थर पर हुई नक्काशी, लकड़ी का उभरता खूबसूरत काम ऐसा है जैसे उन कलाकारों ने अपने पसीने से कल्पनाओं में जान डाल दी हो।
चम्बल सेंचुरी

दर्शन, भक्ति, इतिहास से परे उत्तर प्रदेश के इसी हेरिटेज आर्क पर चम्बल सेंचुरी और इटावा लायन सफारी भी हैं। चम्बल के तट पर बसने जा रही उत्तर भारत की पहली लायन सफारी इटावा में हरे भरे जंगलों के बीच आपको एक अलग ही साम्राज्य में ले जाती है। इन जंगलों का राजा शेर है और यहां आप उसे करीब से देख सकते हैं। मनुष्य ही नहीं, पक्षियों का भी स्वागत उत्तर प्रदेश की चम्बल सेंचुरी खुली बाहों से करती है। देश विदेश से आये प्रवासी पक्षियों को प्राकृतिक सौंदर्य के बीच सुस्ताते और चहकते देखने का मौका चाहिए हो तो चम्बल सेंचुरी एक अनूठा स्थल है।
पक्षी ही क्यों यहां करीब से डॉलफिन को देखना भी अपने आप में अद्भुत सुखद यादों के कुछ पन्ने जोड़ता है। कुल मिलाकर हेरिटेज आर्क की यात्रा अगर आगरा से शुरू करें तो इतिहास, दर्शन, रंग, उत्सव, प्रेम, प्रकृति सब हर कदम पर सांस लेते दिखाई और सुनाई देते हैं। मंदिरों के घंटों में, आरतियों में, मस्जिदों की अजान में, वनों के पक्षियों की चहक में, बृजभूमि की बोलियों में उत्तर प्रदेश जी रहा है हर एक धरोहर को।
मथुरा
आगरा से निकलकर यमुना किनारे धरोहरों की एक पूरी पंक्ति है। बस 55 किलोमीटर दूर ही है मथुरा। मुगलिया सल्तनत से निकलकर सूरदास का दर्शन, राग रागिनियों का जन्मस्थल, श्री कृष्ण जन्मभूमि, राधा रानी का गांव और कृष्ण की लीला भूमि। रास रचैया श्री कृष्ण के कई किस्से समेटे एक अनूठी यात्रा है मथुरा, लठ्मार होली के लिए प्रसिद्ध- बरसाना, गोकुल, वृन्दावन और नन्दगांव की।
यहां यमुना की लहरों में श्री कृष्ण की बाल लीलाओं की रवानगी है। हर बड़े-छोटे मंदिर में आस्था मुस्कुराती है। आश्रम,वन सबसे कोई न कोई मान्यता जुड़ी है। सूरदास का दर्शन शास्त्र यहां की बोली का हिस्सा है। यकीनन इन स्थानों की यात्रा आस्था और दर्शन को जी लेने का अनुभव तो है ही, पुरातन मंदिर निर्माण के साथ-साथ प्रेम मंदिर सरीखे नव निर्मित आस्था स्थलों को आंखों में भर लेने का मौका भी है। यहां के तीज त्यौहार, यहां के रंग, यहां के स्वाद, यहां की उमंग, चारकुल नृत्य, होली गायन और लोकगीत को बताने से नहीं, अनुभव से ही समझा जा सकता है।
नंदगांव मंदिरों में घूमते हुए कभी आपको खुद में मीरा सा हठ महसूस होगा तो
कभी खुद-ब-खुद आपके अंदर राधा का लावण्य और प्रेम जागता सा प्रतीत
होगा। कभी श्री कृष्ण सा नटखट बचपन गुदगुदायेगा तो कभी सूरदास का दर्शन
बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देगा। गोकुल में श्री कृष्ण ही नहीं संत
वल्लभाचार्य ने भी काफी समय गुज़ारा है। यहां गोकुलनाथ मंदिर, वि_लनाथ
मंदिर, बालकृष्ण मंदिर आदि अनेक मंदिर गोकुल का परिचय स्वयं देते हैं।
बटेश्वर
बटेश्वर रामायण और महाभारत काल से जुड़ा है जहां लगातार पिछले चार सौ साल से पशुओं का अजब मेला लगता आ रहा है। आप यहां उस काल की स्थापत्य कला को तो निहार ही सकते हैं, साथ ही यमुना के घाट पर एक के बाद एक श्रृंखला में खड़े छोटे बड़े मंदिरों को देखना भी अद्भुत अनुभव है।
