टाइमपास-गृ​हलक्ष्मी की कहानियां: Timepass Story
Timepass Story

Timepass Story: “कमरा नं.36 आपसे कोई मिलने आया है?” दरवाजे पर दस्तक हुई तो घड़ी देखा। रात के आठ बज रहे थे। बात दिसंबर 1990 की है। आज के समय के आठ और नब्बे की दशक के आठ में बहुत अंतर है। उन दिनों शाम के छः बजे लोग अपने कमरे में लौट आते थे।  “इस वक़्त कौन आया है? मैं नहीं मिल सकूंगी।”मेरे मना करने पर कुमार उसकी सिफ़ारिश करने लगा। “मिली मैडम के साथी हैं। कुछ परेशान हैं। आपको बस पाँच मिनट के लिए बुला रहे हैं। मिलना बहुत जरूरी है।”

ऐसी क्या बात हो गई कि मुझसे मिलना जरूरी हो गया। वैसे कोई तो बात होगी वरना कुमार इतनी सिफारिश क्यों करता। यही सोचकर तैयार होने लगी। ठंड से बचने के लिए जैकेट पहना और तेज कदमों से चलती हुई हॉस्टल के मेन गेट यानी ‘पिया मिलन ट्री’ तक पहुँच गई। यही वह जगह थी जहाँ शाम को कई जोड़े एक- दूसरे की आँखों में प्यार भरे रंगीन सपने सजाते थे। कल तक तो जो साथ थी आज उसके वियोग में आंखों में आंसू लिए सोमेश खड़ा था। मुझे देखते ही मेरी ओर बढ़ा। “मैंने ही बुलाया है आपको।”

“अच्छा! मगर किसलिए?” “आपसे कुछ पूछना चाहता हूं।” “किस बारे में” “यही कि मिली ने अपनी शादी के बारे में मुझे क्यों नहीं बताया। ” “ये तो वही बता सकती है! मैं कैसे बता सकती हूं!”

“आप उसकी शादी में नहीं गई?”ये सवाल मुझे कटघरे में खड़े कर रहे थे। कमाल की बात तो ये थी कि उसके do करीबी लोग साथ खड़े थे। एक वो जिसके साथ वह कल तक घूम रही थी और दूसरी वह जिसके कमरे में रह रही थी। क्या कहती कि उसकी यही आदतें तो मुझे पसंद नहीं थीं या फिर ये कि ऐसे लोगों से दूर रहना चाहिए। नहीं! यह सब कहना मेरे उसूल के खिलाफ़ था। न तो वह मेरा दोस्त था और न ही किसी किस्म का करीबी। उस नाते तो मिली ही मेरी दोस्त थी। दो लोग एक दूसरे से क्यों जुड़े और कैसे बिछड़े इसमें भला मेरा क्या रोल था। मुझे जो भी कहना था मिली से कहती। मैं मिली को जानती थी और वैसे भी किसी के निजी मामलों में दखल देना कहीं से न्यायसंगत नहीं था सो मैंने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी। थोड़ी देर की खामोशी के बाद कहा, “दरअसल देर रात मुझे बाहर जाने की इजाजत नहीं! कल सुबह उसकी विदाई से पहले मिलने जाऊँगी।”

“अच्छा! फिर आप मेरा एक काम कर देना। उससे जरूर पूछना कि उसने मुझे अपनी शादी के बारे में क्यों नहीं बताया?” “जरूर!” उसकी भीगी आंखें और अनुनय में जुड़े हाथ उसके टूटे दिल का हाल बयां कर रहे थे। उसे आश्वस्त कर वापस कमरे में आ तो गई पर दिमाग में मिली घूमने लगी। गोरी,लंबी और खूबसूरत मिली मेरी रूममेट थी। बातों – बातों में अक्सर कहा करती बीए आफ्टर बी.ए. ही उसका उद्देश्य है। बंगाली में बीए शादी को कहते हैं। “हम युनिवर्सिटी कैंपस की लड़़कियों की पहली कोशिश यही होती है कि कोई क्यूट आइआइटियन पट जाए ताकि  आर्थिक रूप से भविष्य सुरक्षित हो जाए। ऐसे जहीन लड़के के लिए घरवालों की इजाजत मिल ही जाती है। बाकी के डिपार्टमेन्ट वाले सब लड़के बस टाइमपास हैं।”

“ऐसा नहीं है! आर्ट्स वाले भी पढ़ाई करते हैं और सिविल सर्विसेज पास करते हैं। उनकी ज़िंदगी ज्यादा चुनौतीपूर्ण होती है!” “हां! मगर वह लंबी प्रक्रिया है। उतना इंतजार कोई नहीं करता और मान लो इंतज़ार कर भी लिया तो क्या गारंटी है कि आइएस बनते ही वह बदल नहीं जाएगा। इन सबमें तीन-चार साल निकल जाएंगे ऐसे में पुरानी गर्लफ्रेंड को कौन पूछेगा। कुछ न कर पाया तो सारी जिंदगी इल्जाम देगा। मुझे नहीं चाहिए ये सिविल सर्विसेज वाले।” “फिर मिलना जुलना बंद करो! क्यों बेकार में किसी के अंदर उम्मीदें जगा रही हो?” “क्या करें यार! वह दिखता ही इतना प्यारा है। उसके साथ टाइमपास कर रही हूँ।”

यह कहकर खिलखिला कर निकल गई। उस रोज जो समझाने की कोशिश की थी आज वही सच सामने आ गया था। वह जिसके साथ महज़ मनोरंजन के लिए मिलजुल रही थी वह उससे भावनात्मक रूप से जुड़ रहा था। उसे अपने जीवन में गंभीरता से ले रहा था। खैर अगली ही सुबह रीना और मैं उसके लिए उपहार लेकर मिलने गये। मैंने मौका देखकर सोमेश का सवाल सामने रखा तो उसके दो-टूक जवाब पर मैं दंग रह गई। “उसकी चिंता तुम मत करो। वह मामला मैंने रोमा को सौंप दिया है। कल मेरी शादी में आई थी इसलिए उससे नहीं मिल सकी।आज से वह उसे संभाल लेगी।” “तुम सोमेश को मामला कह रही हो…और ये किस तरह की सेटिंग है कि आज मेरा और कल से तेरा…एक तो तुमने उसे बताए बिना शादी कर लिया। वो बेचारा शॉक्ड है। माफ करना! प्यार में बेवफाई की बात कुछ समझ में नहीं आई मिली।” “अरे! इसमें न समझने वाली कौन सी बात हो गई? अपना भविष्य बनाने का हक सभी को है।” “फिर वो मिलना जुलना…?”

“जब तक कोई बेहतर विकल्प नहीं मिले तब तक साथ घूमने – फिरने के लिए वह बहुत प्यारा है। उसके साथ किसी बात का डर नहीं लगता। अच्छी -अच्छी बातें करता है और शरीफ तो इतना है कि खुद से हाथ तक नहीं पकड़ता।” इसका मतलब मिली सोमेश की शराफत से परिचित थी साथ ही यह भी जानती थी कि सोमेश उससे प्यार करता था। सब जानते हुए भी उसने उसे अंधेरे में रखा। प्यार पर आर्थिक सुरक्षा को महत्व दे दिया और इतना ही नहीं उसे बताना तक जरूरी नहीं समझा। अब वह सचमुच मेरी समझ से बाहर थी।

खैर इस घटनाक्रम में वैसे भी मेरी कोई भूमिका नहीं थी सिवाय उसकी बेवफाई का साक्षी बनने के। उस दिन के बाद वाकई सोमेश ने मुझे कभी नहीं बुलाया। शायद रोमा ने अपनी ड्यूटी संभाल ली थी। बाद में सुनने आया कि उसे भी एक आइआइटियन मिल गया था और उसने सोमेश की जिम्मेदारी किसी और को सौंप दी थी। प्यार,बेवफाई, शादी और आशिक का हस्तांतरण ये सब समीकरण मेरी सोच के दायरे के बाहर थे। हां पर इन सबसे गुजरकर सोमेश काफी समझदार हो गया है।

अब वह इश्क़ – विश्क,प्यार – व्यार को मज़ाक समझता है। मोहब्बत के क्षेत्र में बारंबार अपने ट्रांसफर पोस्टिंग से वह यह समझ चुका है कि यह सब हसीनों के मन लगाने के चोंचले हैं बस! वह भी क्या करे? हम वही तो सीखते हैं जो दुनिया हमें सिखाती है और वही लौटाते हैं जो पाते हैं। बेवफाई पाकर भी वह बेवफा तो न हुआ अलबत्ता सचेत जरूर हो गया। 

अब वह अपनी एक छोटी सी दुकान खोलकर घर और दुकान की यात्रा किया करता है। घर परिवार वालों ने शादी करा दी तो वह एक खूबसूरत बेटी का पिता बन गया है। जबसे बिटिया जवान हुई है उसने अपने लिए एक और रोजगार ढूंढ लिया है। अपनी बेटी पर भरपूर नज़र रखता है। वह कदापि नहीं चाहता है कि जो कुछ उसके साथ गुजरी है वह किसी और के साथ गुजरे। उसकी बेटी उन लडकियों जैसी बने जो सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में सोचती हैं। लड़कियों के प्रति इस मानसिकता की जिम्मेदार भी तो वह मतलबपरस्त लड़कियाँ ही हैं जो उसे खिलौना समझ उसकी भावनाओं से खेलती रहीं। खिलौना रहे या टूटे इससे उन्हें कोई फर्क न पड़ता था। उन्हें तो बस अपने टाइमपास की फिक्र थी।