नारीमन की कहानियां
Bharat Katha Mala

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

तीन घंटे, पिछले तीन घंटे अपने पति कंवल और दो बच्चों के साथ फ्रेंकफर्ड हवाई अड्डे पर अपनी सहेली सुक्खी की प्रतीक्षा करते हुए निकल गए, उक्ता गयी मैं, यहाँ आने की जितनी उत्सुकता थी, धीरे-धीरे ठंडी पड़ने लगी। कमाल कर दिया इस सुक्खी ने भी! क्या उसे उनका आना भूल गया? भूल कैसे सकती है वह! जब से यहाँ आने का कार्यक्रम बना था, तब से बीसियों बार उनकी फोन पर बात हुई थी. फ्लाइट नंबर. लैंडिंग का समय. सब कछ विस्तार से बताया था उसे. फिर ऐसा क्या हुआ कि?

शायद उनकी किस्मत में इंतज़ार ही लिखा था। इमीग्रेशन क्लियर करवा, कन्वेयर बेल्ट पर सामान लेने वालों की भीड़ का हिस्सा बने हम अपना सामान आने का इंतजार ही करते रह गए, सामान आया, सबसे बाद में पर चार नग के स्थान पर तीन। गायब थी बीस किलो की आम की पेटी जो वे सौगात के रूप में सुक्खी की खास फरमाइश पर लाए थे अब…?

मुझे परेशान देख कंवल बोले, “छोड़ो भी, आम ही हैं न! कोई हीरे-जवाहरात थोड़े हैं जो इतना परेशान हो रही हो।” “बात आमों की नहीं, ईमानदारी की है। हमने हवाई जहाज से सफ़र किया हैं, रेलगाड़ी से किया होता, तो मान भी लेते कि रास्ते में कहीं चोरी हो गया होगा” मैंने अपना तर्क रखा।

बात उनकी समझ में आ गयी। वे कस्टम ऑफिसर से बात करने लगे। परंतु ऑफिसर की उदानसीनता देख वे भड़क उठे। अभी तक यह मानकर चलने वाले कि खाने-पीने की वस्तु के लिए क्या उलझना, वहीं अब ठाने बैठे थे कि हर हाल में वे आमों की पेटी वहाँ से लेकर ही जाएँगे। किसी भी तरह बात सुलझती न देख, एक सफाई कर्मचारी, जो पाकिस्तानी मूल का था, कंवल के कान में आकर फुसफुसाया, “क्लेम माँगो, अभी सब कुछ बाहर आ जाएगा”

अन्तरराष्ट्रीय कानून के अनुसार हवाई यात्री का सामान यदि यात्रा के दौरान खो जाए, तो वह बीस डॉलर प्रति किलो के हिसाब से क्लेम माँग सकता हैं। फॉर्म भरो, सामान का विवरण दो और क्लैम ले जाओ, क्लेम माँगते ही दस मिनट में आमों की पेटी हाज़िर कर दी गई। पेटी खुली देख मुझे निराशा हुई, ऊपर की पूरी परत गायब मिली, वहीं सफाई कर्मचारी बोला, “मैडम यहाँ आम नहीं पाया जाता, बहुत महंगा मिलता हैं। अंदर लोडिंग-अनलोडिंग करने वाले कई कर्मचारी भारतीय और पाकिस्तानी है, शायद उन्होंने ही।”

कारण स्पष्ट हो गया, आदमी चाहे दुनिया के किसी भी कोने में चला जाए, पर अपनी मिट्टी की गंध से सदा जुड़ा रहता है। मैंने कुछ आम उस सफाई कर्मचारी को भी दिए। हमें चार-छः किलो आम चोरी हो जाने का गम कम और सुक्खी के सामने शर्मिंदगी से बचने की खुशी अधिक हुई।

अपनी सखी को मिलने की आतुरता में पति और बच्चों को पीछे छोड़, सामान की ट्राली ले एयरपोर्ट की लॉबी में आ गई। नौ वर्षों बाद मिलँगी मैं अपने बचपन की सहेली से, पहली से बी. ए. तक साथ-साथ पढ़ी हैं हम, न जाने कैसी दिखती होगी अब? वैसी ही दुबली-पतली या फिर मुटिया गयी होगी वह, मेरी तरह? मैंने अपनी देह पर दृष्टि डाली, हाय राम! मुझे तो सुक्खी पहचान ही नहीं पाएगी। इन नौ वर्षों में दस किलो वजन बढ़ा हैं मेरा भरा-भरा शरीर, फूले हुए गाल मुझे अपनी सोच पर हँसी आई। भीड़ में आँखे सुक्खी को खोजने लगी और मेरा मन उसके गले लग ढेरों बातें करने को आतुर होने लगा।

पर सुक्खी तो वहाँ थी ही नहीं, बार-बार उसके घर फोन करने पर उसका बेटा यही जवाब देता, “फिक्र न करें, वे आप तक पहुँच ही रही होंगी।”

इंतज़ार भारी पड़ने लगा। आँखे उसे दूर-दूर तक खोजते हुए एयरपोर्ट पर स्थित खूबसूरत-चमकीली दुकानों के दृश्य अपने साथ समेट लाती। “क्यों न उन्हें देखा-परखा जाए, समय भी कट जाएगा और थोड़ी शॉपिंग भी हो जाएगी”, मैंने सोचा।

मैंने चारों ओर भरपूर दृष्टि डाली। चारों ओर दुकानें ही दुकानें। कुछ के नाम इंग्लिश में लिखे हुए और कुछ के जर्मन में। जिस दुकान ने मुझे सबसे अधिक आकर्षित किया, वह भी बिलकुल मेरे सामने वाली, जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लाल रंग से लिखा था ‘सेक्स शॉप’

दुकान के बाहर कांच की खिड़कियों के भीतर सुसज्जित स्विमसूट, नाइटीज, पैंटीज, ब्राज, सैंडिल, पर्स आदि मुझे ललचाने लगे। इन रंग-बिरंगे परिधानों को देखने-परखने की लालसा मेरे मन में उमड़ने लगी। दुकान के बीचो-बीच ‘इन’ लिखे इकलौते दरवाजे पर पड़े प्लास्टिक के पर्दे के मध्य में लाल रंग की दो धारियाँ ऊपर से नीचे की ओर खींची थीं। पिछले तीन घंटो में घम-फिरकर मेरी नजर उस दरवाजे पर ठहर जाती. कारण यह था कि मैंने उस छोटे से दरवाजे के भीतर जाते हुए तो कई मर्द देखे थे, पर बाहर आता हुआ एक भी नहीं। मुझे असमजंस हुआ की अंदर गए मर्द कहाँ गायब हो गए?

“शायद बाहर निकलने का रास्ता दुकान की पिछली तरफ हो”, मैंने सोचा। मेरी उत्सुकता बढ़ी, चूंकि यह दुकान एयरपोर्ट की लॉबी के बीचो-बीच थी और उसके पीछे भी दुकानों की एक लम्बी कतार होने के कारण मैं वहाँ तक सुक्खी को ढूंढने के बहाने घूम आई, परन्तु मुझे वहाँ बाहर निकलने का कोई दरवाज़ा नहीं दिखा, दिखीं कई और दुकानें वापस आ मैं सोफे पर बैठ गई। छोटा बेटा पिता की गोद में सो गया था। उसे सोफे पर अपने पास सुला मैं एक ओर सिमट गई। समय काटे नहीं कट रहा, क्या करूँ मैं? अजीब चमत्कारी होता है यह समय भी, कभी काटे एक पल नहीं कटता और कभी एक पल में ज़िन्दगी कट जाती है, तभी मैंने दो और मर्द दरवाजे से अंदर जाते हुए देखे, बाहर कहाँ से निकलते हैं, मेरी उत्सुकता ज्यों की त्यों बनी रहीं, “क्यों न अंदर जाकर देखू!” पर एक भी स्त्री अंदर जाती हुई नहीं देखी मैंने। खिड़कियों के आर-पार भी कुछ नहीं दिखता। पति को भी साथ नहीं ले जा सकती, पीछे से सुक्खी आ गई तो! वैसे भी बच्चों और सामान के पास कोई तो होना ही चाहिए। इसलिए मैंने फिलहाल अंदर जाने का विचार त्याग दिया।

यात्रियों से खचाखच भरे एयरपोर्ट पर लोग आ-जा रहे थे। लम्बे-लम्बे एस्कलेटर पलभर को खाली होते, फिर भर जाते। वे यात्रियों को ऊपर और नीचे की मंज़िलों में पहुँचने का काम बखूबी निभा रहे थे। यात्री बाहर निकलते, उन्हें लेने आये संबंधियों से मिलते और चले जाते। दूर से आती हर स्त्री मुझे सुक्खी लगती, पर पास-आते-आते उसकी शक्ल बदल जाती, शायद आंखें जिसे देखना चाहती हैं, हर चेहरे में वही चेहरा दिखने लगता है। परंतु उसे न पा मैं उदास होने लगी। कंवल बड़े बेटे को ले एयरपोर्ट पर कहीं निकल गए। इतनी भीड़ में फिर अकेली हो गई मैं। इस भीड़-भाड़ में भी सफाई कर्मचारी अपना काम बड़ी मुस्तैदी से करते दिखाई दिए। मुझे आश्चर्य हुआ कि इनमें से अधिकतर भारतीय, पाकिस्तानी या श्रीलंकन थे। मन कसैला हो गया, लोग कितने अभिमान से अपने किसी संबंधी का विदेश में होना बयान करते हैं पर शायद वे यह नहीं जानते कि उनके संबंधियों को किन-किन कठिन परिस्थितियों से गुज़रना पड़ता है, केवल पीछे छोड़ आए अपनों की खातिर, उन्हीं कर्मचारियों में से एक, जिसने हमें हर्जाना मांगने की सलाह दी थी, बार-बार मुस्कुराता और यदि मैं इधर-उधर टहलती भी, तो सफाई करता हुआ वहीं पहुँच जाता। एक तो सुक्खी का कुछ पता नहीं और ऊपर से यह महाशय न जाने क्या समझ रहे थे। मुझे सुक्खी पर बहुत गुस्सा आया, “कहाँ रह गई वह? क्या मुझे अब अपने पति के सामने शर्मिंदा होना पड़ेगा? सोच तो रहे होंगे कि बड़ा दम भरती थी अपनी दोस्ती का, कहती थी कि देख लेना फ्लाइट पहुँचने दो घंटे पहले वह वहाँ होगी, पर”

फिर मेरे विचारों ने करवट ली। कहीं सुक्खी के साथ कोई दुर्घटना तो नहीं कंवल लौटे तो मैंने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए फिर फोन करने की सलाह दी। वे चले गए। तभी मैंने ऊँची एडी की सैंडिल पहने काली और लाल रंग की पोशाक वाली बीस-बाइस वर्ष की युवती को ‘उस दरवाजे’ से भीतर जाते हुए देखा। उसके छोटे-छोटे कपड़े देख मैंने अंदाजा लगाया कि यह लड़की खरीददारी करने ही अंदर गई होगी या हो सकता है कि वहाँ सेक्सगर्ल हो। मेरा उत्साह बढ़ा, “अब तो एक स्त्री अंदर गई हैं, मैं भी चली जाती हूँ, थोड़ी शॉपिंग हो जाएगी और बाहर निकलने का रास्ता कहाँ से हैं, यह भी पता चल जाएगा”, मैंने सोचा।

तभी कंवल लौट आए। बोले, “इंतज़ार करो, अभी आती होगी, वह एयरपोर्ट पर ही हैं। हमें ढूंढ रहीं हैं” सुक्खी की सलामती सुन, मुझे शांति हुई। पर ध्यान तो मेरा अंदर गई स्त्री पर ही था, जो अब तक बाहर नहीं निकली थी। शॉपिंग करने का मेरा शौक चरम सीमा पर पहुंच गया। मेरे बारे में तो प्रसिद्ध भी हैं कि मुझे किसी छोटे से छोटे गांव में भी ले जाओ, वहाँ पहुँचते ही सबसे पहले बाजार का रास्ता पूछेगी और फिर यहाँ तो ढेरों दुकानें, खूबसूरत सामानों से भरी हुई, अंदर आने का निमंत्रण देती हुई, कोई बचे भी तो कैसे? कंवल ने लाख बार समझाया, “यूरोप टूर पर आई हो, जल्दी क्या हैं? जी भर कर शॉपिंग करना… पहले घर तो पहुँचने दो।” पर मिठाई देख बच्चे-सा मचलने वाला मेरा मन अपने अंदर उठते शॉपिंग के ज्वार को भला कैसे दबाता!

इसलिए उनकी बातों पर बिना ध्यान धरे, मैं अपना पर्स उठा ‘उस’ दकान की ओर चल दी। दर खडा वह सफाई कर्मचारी फर्श पर मॉन से पोछा लगाता हुआ तेजी से मेरे पीछे पहुँच गया। ज्यों ही मैंने पर्दा उठाकर अंदर जाना चाहा, उसने मेरी बाँह पकड़ी और ज़ोर से बाहर की ओर खींचता हुआ बोला, “बाजी, यह क्या करती हो? यह जगह आप सी ख्वातीन के लिए नहीं हैं।”

मैं नि:स्तब्ध-सी उसे देखती ही रह गई। एक ही क्षण में दुकान के बाहर लगे बोर्ड ‘सेक्स शॉप’ का अर्थ स्पष्ट हो गया। मैंने हाथ जोड़कर उस पाकिस्तानी भाई का शुक्रिया अदा किया। शॉपिंग का बुखार तत्क्षण भाटा बनकर उतर गया। सुक्खी के इंतज़ार में थका शरीर और इस घटना के बाद बुझा मन लिए मैं एक कुर्सी पर बैठ गई।

कुछ ही देर में सुक्खी आ पहुँची। उसे देखते ही सारे गिले-शिकवे भुला में उसके गले जा लगी।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’

Leave a comment