दो सहेलियाँ-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Two Friends Story
Do Saheliyaa

Friends Story: धीरे-धीरे सूर्य देव अस्ताचल की ओर बढ़ रहे थे| आखिरी रेलगाड़ी की प्रतीक्षा में रोहणी स्टेशन पर बैठी थी| रोहणी कई सालों बाद भाई के घर जा रही थी| इसलिए बहुत उत्साहित थी| बहुत दिनों बाद जाना हो रहा था| इतने समय तक बच्चों की जिम्मेदारी , सास – ससुर की सेवा में ही लगी रही थी| आज मायके की यादें ताजा हो गई| कैसे वह सबकी लाड़ली थी| भाईयों के प्राण उसी में बसते थे| लेकिन विवाह के बाद धीरे- धीरे सब अपने परिवार में व्यस्त हो गए| लेकिन आज भी उसके भाईयों का प्रेम उसके लिए रत्ती भर कम नहीं हुआ था | दोनों भाई अपनी बहिन को पूरा मान देते थे| भाई के बड़े बेटे की सगाई तय हो गई थी| भाई ने एक हफ्ते पहले ही न्यौता दे दिया था उसे, वो कैसे इनकार कर सकती थी| अब तो बच्चे भी बडे़ हो गए हैं| अपनी देखभाल कर सकते हैं, इसलिए वह निश्चित थी|


वह इस बार अकेली जा रही है| संजय को ऑफिस में बहुत जरूरी काम पड़ गया था |क्योंकि उनका एक नया प्रोजेक्ट चल रहा था||इसलिए छुट्टी नहीं कर सकते थे|| रात का सफ़र था| रोहणी के पति ने उसे सारी बातें समझायी| ‘सुनो रोहणी! पहली बार अकेले जा रही हो| पहले टिकट संभाल लो | खाने और पीने का सामान मैंने रख दिया है| ‘
रोहणी मुस्कुरायी, और कहा- ‘ क्या मैं छोटी बच्ची हूँ| तब संजय ने थोड़ा डपटते हुआ कहा ‘तुम हर बात को मजाक में मत लिया करो| अनावश्यक ट्रेन से बाहर मत उतरना’ रोहणी को अपने पति की फ्रिक करना अच्छा लग रहा था| वैसे भी वह बहुत खुश थी|लेकिन साथ ही हल्की सी घबराहट भी थी | वास्तव में वह बीस साल बाद संजय के बगैर यात्रा कर रहीथी| उसे आश्चर्य हुआ कि शादीशुदा औरतें क्यों अपने पति पर इतना निर्भर हो जाती है, कि आज अकेले सफर करने में उसे घबराहट हो रही है| उसके पति को उसे बच्चे की तरह समझाना पड़ रहा है|


 नियत समय पर ट्रेन आयी| संजय उसे उसके बर्थ पर बैठ़ा कर चले गए| गाड़ी में भीड़ थी| वह सफ़र का आंनद ले रहीं थी| खिड़की से बाहर के नजारे उसका मन मोह रहे थे| ठंडी हवा चहरे पर लग रही थी| दौड़ते घर, अपने कामों में लगे आदमी, कहीं कूदते- फादते गाय और बछड़े और भागते पेड़ दिखाई दे रहे थे| उसके जीवन की तरह, जिसके पीछे वो आज तक भाग रही थी | लेकिन थम कर कभी जीने का आंनद नहीं ले पायी | आज पहली बार वह अपने आप में मस्त थी |  अब वह खिड़की के इस और शांत बैठी थी | और उस और दुनिया दौड़ रही थी |
न बच्चों की टेंशन न पति की झिझक| रोहणी सोच रही थी | कभी कभार अकेले सफर में भी गजब का आनंद है| अगले स्टेशन पर गाड़ी पंद्रह मिनट के लिए रूकी| उसके बगल की बर्थ पर एक स्त्री आकर बैठ गई थी| बहुत गम्भीर और शांत लग रही थी| कॉटन की ग्रीन साड़ी, मोती की माला पहनी हुई थी| संभ्रांत परिवार की मालुम पड़ रही थी| जो उसकी हमउम्र लग रही थी|  उसने उस महिला को मुस्कुरा कर देखा| किंतु उस महिला ने अनदेखा कर दिया |जो रोहणी को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा| उसे लगा कि कितनी घंमड़ी है|

गाड़ी चलने लगी,  कुछ समय बाद सामने वाली महिला ने थर्मस से चाय निकालकर कप में भरी ,और रोहणी की ओर बढ़ाते हुए कहा ‘आप चाय पीयेगी’ ,रोहणी को याद था| कि कैसे उसने उसे अनदेखा किया था| उसने साफ मना कर दिया, कि ‘मैं  चाय नहीं पीती’| दोनों महिलाएं शांत थी, और एक दूसरे की ओर देख भी नहीं रही थी|धीरे- धीरे मुसाफ़िर कम होने लगे| अंधेरा भी होने लगा था| कुछ देर बाद एक स्टेशन आया| वहाँ से चार पुरुष यात्री डिब्बे में बैठे| चारों यात्री मदिरा पीये हुए थे| जोर – जोर से चिल्ला रहे थे| बिना गाली दिये बात नहीं कर रहे थे| रोहणी अंदर तक कांप गई| न जाने क्यों ?अक्सर मनुष्य अंधेरे से डरता है| उजाले में एक हिम्मत मिलती है| उसने अपनी सहयात्री को देखा |सहयात्री महिला के चहरे पर डर के भाव देखें| दोनों की नजरें मिली | जो अभी तक एक दूसरे को देख भी नहीं रही थी | अब एक दूसरे में सहारा ढूंढने लगी|  कितना विचित्र स्वभाव है इंसान का, दोनों महिलाएं एक साथ बैठ गई और बातचीत करने लगी|कहाँ से आ रही है, कहाँ जा रही है, बच्चे परिवार सब के बारे में पूछने लगी| ऐसा कर वह अपने डर को दूर कर रही थी| चारों पुरुष यात्रियों को उन दोनों महिला यात्रियों से कोई मतलब नहीं था| वो लोग अपनी ही बहस में व्यस्त थे| जल्दी ही दोनों का स्टेशन आ गया| दोनों एक दूसरे के गले लगी | दोनों के आंखों में आंसू छलक आये थे| रोहणी ने सहयात्री महिला से कहा -‘ बहिन अगर आज तुम न होती तो पता नहीं मैं उस परिस्थिति में क्या करती| मैं पहली बार अकेले सफर कर रही हूँ | मैं बहुत डर गई थी|’उस महिला ने रोहणी से कहा – अरे! बहिन डर तो मैं भी गई थी| ये शराब और गाली है ही ऐसी बात कि कोई भी डर जाए’ | रोहणी ने कहा ‘बहिन मुझे क्षमा करना मुझे लगा तुम घंमड़ी हो ‘ वह महिला हंसने लगी | दोनों में मोबाइल न0 का अदान- प्रदान हुआ| आगे भी एक दूसरे के सम्पर्क में रहेगें ,ऐसा दोनों ने वादा किया| रोहणी और उसकी सखी जो इस सफ़र में उसे मिल गई थी दोनों विदा लेकर अपने- अपने गंतव्य की ओर चल दी| दोनों महिलाएं जो अभी तक अजनबी थी| परिस्थितियों ने उन्हें एक दूसरे का सहारा बना कर मन की सारी कटुता मिटा दी|