shraddha
shraddha

Hindi Story: मुसद्दी लाल की पत्नी जब खाना बना रही थी तो उन्होंने मौका पाकर अपनी बीवी का पर्स खोल लिया कि देखे कितना माल छिपा कर रखा हुआ है। जब पर्स की अच्छे से तलाशी ली गई तो उसमें पैसे तो कुछ खास नहीं मिले, लेकिन उन्हें एक बात पर बहुत हैरानगी हुई कि उनकी पत्नी ने शादी के बरसों बाद भी अपने पतिदेव की फोटो अपने पर्स में बहुत संभाल कर रखी हुई है। जब कुछ देर बाद मुसद्दी लाल जी की पत्नी उनके लिये खाना लेकर कमरे में आई तो वह बहुत ही भावुक होकर बोले कि मुझे आज मालूम हुआ है कि तुम मुझ से सच में कितना प्यार करती हो।

पत्नी ने कहा कि आज तुम्हें यह प्यार-व्यार का बुखार कहां से चढ़ गया। मुसद्दी लाल जी ने कहा कि ताड़ने वाले भी कयामत की नज़र रखते हैं। मैंने आज थोड़ी देर पहले ही तुम्हारे पर्स में अपनी फोटो देखी तो मुझे यह देख कर बहुत अच्छा लगा कि शादी के एक लंबे अरसे के बाद भी तुम्हारे दिल में अपने पति के प्रति कितनी श्रद्धा है। एक ओर जहां आज की औरतें ढंग से अपने पति की इज्जत नहीं करती, तुम आज भी मेरी फोटो हर समय अपने पास रखती हो। मुसद्दी लाल जी की पत्नी ने कहा कि ऐसे ही किसी गलतफहमी में मत रहना, क्योंकि घर के काम और बच्चों की जरूरतें पूरी करने से ही फुर्सत नहीं मिलती तो मैं प्यार-व्यार के बारे में क्या सोचूंगी।

वैसे तुम्हारी फोटो अपने पास हर समय इसलिये रखती हूं क्योंकि जब कभी भी कोई बड़ी समस्या मेरे सामने आ जाती है तो मैं थोड़ी देर तुम्हारी फोटो को ध्यान से देखती हूं और वो मुसीबत खत्म हो जाती है। मुसद्दी लाल जी ने कहा कि क्या मैं सचमुच तुम्हारे लिये इतना नसीब वाला हूं। इनकी पत्नी ने जवाब देते हुए कहा कि वो तो मुझे मालूम नहीं, लेकिन तुम्हारी फोटो देख कर अपने आप से यह जरूर पूछती हूं कि क्या इससे बड़ी भी कोई मुसीबत हो सकती है, अगर इसको मैं हंसते-हंसते झेल सकती हूं तो यह छोटी-सी परेशानी मेरा क्या बिगाड़ लेगी? यह सब सुनते ही मुसद्दी लाल जी के मन में जो अपनी पत्नी के प्रति श्रद्धा के फूल खिल रहे थे, वो सब मुरझा कर गिर पड़े।

उन्होंने भी अपनी पत्नी से कहा कि तुम्हारी मुस्कान फूलों की तरह है, तुम्हारा स्वभाव एक बच्चे की तरह पवित्र है, तुम्हारी आवाज कोयल की तरह मधुर है, लेकिन तुम्हारी इस तरह की बेवकूफ़ियों का कोई जवाब नहीं, उसमें तो तुम अव्वल हो। अब यह फालतू की बातें छोड़ो और पिताजी के श्राद्ध के लिये हलवा-पूरी लेकर मेरे साथ जल्दी से मंदिर चलो। जैसे ही यह दोनों पिता के श्राद्ध की रस्म करने के लिये मंदिर जा रहे थे कि रास्ते में एक फूलों के हार बेचने वाले को देख कर मुसद्दी लाल जी की पत्नी ने गाड़ी रोक कर एक हार खरीदने के लिये कहा। मुसद्दी लाल जी जिनका चेहरा पहले से ही उतरा हुआ था, उन्होंने मंदिर पहुंचते ही अपनी पत्नी से कहा कि पिता जी तुम्हारी यह फूल माला कब लेने आयेंगे? पत्नी ने भी टका-सा जवाब देते हुए कहा-‘जब तुम्हारी यह हलवा-पूरी खाने आयेंगे तो मेरी माला भी ले लेंगे।’

इससे पहले की यह दोनों अपने पिता के श्राद्ध की रस्म पूरी करते गांव के कुछ लोग एक बच्चे को गोद में उठा कर मंदिर में दाखिल हुए। उन्होंने रोते हुए वहां बैठे लड़के से कहा कि इस बच्चे को सांप ने काट लिया है। जल्दी से मंदिर के गुरुजी को बुलाओ, उनके पास तो हर बीमारी का इलाज होता है, वो ही इस को बचा सकते हैं। उस लड़के ने कहा कि मैं गुरुजी का शिष्य हूं लेकिन वो तो किसी काम से बाहर गये हैं और कुछ देर बाद ही लौटेंगे। गांव वालों ने गुरु के शिष्य से कहा कि आप ही इस को बचाने के लिये कुछ करो। इस लड़के ने कहा कि मैं अधिक तो कुछ नहीं जानता, लेकिन एक कोशिश जरूर कर सकता हूं। गुरु के इस शिष्य ने अपनी स्लेट पर तीन बार भगवान का नाम लिख कर उसे पानी में डाला और वो पानी उस बीमार बच्चे को पिला दिया। कुछ ही देर में उस बीमार बच्चे ने आंखें खोल दी और अपने मां-बाप से हंसते हुए बात करने लगा। अभी गांव वाले सभी लोग शिष्य का धन्यवाद कर ही रहे थे कि इतने में गुरुजी मंदिर में वापिस आ गये।

मंदिर में इतनी भीड़ को देख कर उन्होंने सारी बात जानने की कोशिश की। उनके शिष्य ने अपनी तारीफ करते हुए गुरुजी को बताया कि मैंने भगवान का नाम तीन बार स्लेट पर लिख कर वो पानी बच्चे को पिलाया तो इनका बेटा मौत के मुंह से वापिस आ गया। यह सब सुनते ही गुरुजी ने अपने शिष्य पर गुस्सा करते हुए कहा कि तुम अभी एक मिनट में यह मंदिर छोड़ कर चले जाओ।

मंदिर में बैठे सभी लोगों ने गुरुजी से कहा कि आपके शिष्य ने तो हमारे बच्चे की जान बचाई है फिर भी आप इस पर इतना गुस्सा क्यूं कर रहे हो? इस पर गुरुजी ने कहा कि मेरे इस शिष्य ने आज मेरी बरसों की मेहनत पर पानी फेर दिया है। सभी गांव वाले गुरुजी के इस व्यवहार से हैरान हो रहे थे। उन्होंने जब विस्तार से गुरुजी की नाराज़गी का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि मुझे एक बात समझ नहीं आ रही कि मेरे इस शिष्य ने भगवान का नाम तीन बार लिख कर उस बच्चे को पानी क्यूं पिलाया? यदि इसको भगवान के प्रति सच्ची श्रद्धा होती तो भगवान का नाम एक बार लिखने से भी आपका बच्चा ठीक हो सकता था। दूसरी बात मुसीबत के समय किसी जरूरतमंद की मदद करना बहुत अच्छी बात है, परंतु बार-बार इसका एहसास कराना बहुत बुरी बात होती है। मुझे लगता है कि मेरे अंदर ही कोई कमी रही होगी जो मैं इसे अच्छे से शिक्षा-दीक्षा नहीं दे सका। जिस कारण से मेरे इस शिष्य के खाली मन में भगवान के प्रति सच्ची श्रद्धा उत्पन्न नहीं हो पाई।

ज्ञानवान गुरुजी के दृष्टिकोण को पूर्ण रूप से मन में उतारते हुए मुसद्दी लाल जी के साथ जौली अंकल भी यह जान गये हैं कि हम चाहे किसी भी मार्ग पर चले हमारे मन में कोई न कोई संदेह बना रहता है जो कोई अपनी इन शंकाओं को मिटाने में कामयाब हो जाता है उसके मन में खुद-ब-खुद भगवान के प्रति सच्ची श्रद्धा पैदा हो जाती है। सच्ची श्रद्धा जहां हमें योग्य स्थान दिलाती है वही हमारे परिवार और समाज को सुंदर बनाने में मदद करती है।