असली बंटवारा-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Asli Batwara

Kahani in Hindi: धनीराम शहर का सबसे अमीर व्यक्ति था। उसके पास करोड़ों की जायदाद थी। रूपया, पैसा, बैंक बैलेंस, नौकर-चाकर, किसी चीज़ की कोई कमी नहीं थी।
भगवान ने उसे बहुत दौलत दी। साथ ही एक भरा-पूरा खुशहाल परिवार भी दिया। उसके छह बेटे थे और तीन बेटियां थीं। सभी बच्चों की शादियां हो चुकी थीं। लड़कियां अपने घर-परिवार में खुश थीं। धनीराम ने बहुत बड़े परिवारों में अपनी बेटियों की शादी की थी। सब खुशहाल जीवन जी रहीं थीं।
धनीराम के सभी चार बड़े बेटे उसकी कंपनियां संभाल रहे थे। और दो छोटे बेटे, जिन्हें धनीराम के बिजनेस में कोई लगाव नहीं था उनमें से एक बहुत मशहूर पायलेट था, और दूसरा बहुत बड़ा गायक।
धनीराम ने कभी अपने बेटों को कुछ अलग करने से रोका नहीं था। उसने हमेशा सबको अपना सहयोग और समर्थन दिया।
अब धनीराम की उम्र हो चली थी। उसने वकील को बुलाकर अपनी सभी कंपनियों का बंटवारा कर दिया। अपने छह बेटों और‌ तीनों बेटियों को बराबर हिस्सेदारी दे दी।
“हम्मम, मनीष जी सब जायदाद का बराबर बंटवारा हो गया है। पर…मैंने अपने हज़ारों कर्मचारियों को कुछ नहीं दिया। उन्होंने इतने सालों तक पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे परिवार के‌ लिए इतना बड़ा एम्पायर खड़ा करने में हमारी मदद की है। मेरा फ़र्ज़ है कि मैं उन्हें भी कुछ दूँ। तभी तो सही बंटवारा हो पाएगा।” धनीराम ने अपने वकील से कहा।

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“धनीराम जी आपके हज़ारों कर्मचारी हैं। सबको दिवाली और नये साल पर बोनस तो मिलता ही है। यह क्या कम है?” एडवोकेट मनीष बोला।
“अच्छा एक काम कीजिए मेरी सभी फैक्ट्री और फ़ार्म हाउस के कर्मचारियों को रविवार को हमारे पनवेल वाले फार्म हाउस पर एक पार्टी का न्योता दीजिए। और हाँ, साथ में सबसे कहिएगा कि सबको फार्म हाउस की पानी की टंकी को भरने के लिए किसी भी बर्तन में पानी लाना है। और साथ ही उनको कंपनी के पच्चास साल पूरे होने की खुशी में तोहफा भी दिया जाएगा।” धनीराम ने कहा।
“तोहफा तो ठीक है पर ये क्या बात है? टंकी खाली है तो आप टेंकर मंगवा कर भर लीजिए ना?” एडवोकेट मनीष बोला।
“नहीं, टेंक तो उन सबके द्वारा लाए पानी से ही भरेगा। आप बस ये न्योता छपवा कर मेल करवा दीजिए।” धनीराम ने दृढ़ता पूर्वक कहा।
सभी कर्मचारियों को न्योता पहुँच गया। सब पार्टी और तोहफे की बात सुन बहुत खुश‌ हुए पर पानी लाने की बात पर सब हैरान थे। जितने मुँह उतनी बातें हो रहीं थीं सबके बीच।
“बड़े साहब भी अजीब हैं, इतने अमीर हैं और‌ अपनी टंकी भरने के लिए हमसे पानी मंगवा रहे हैं?” धनीराम के एक कारखाने के गार्ड ने दूसरे गार्ड से कहा।
“तुम्हारे बड़े बॉस का दिमाग खराब हो गया है क्या? पानी क्यों मंगवा रहे हैं? लगता है सठिया गए हैं।” धनीराम के ऑफिस में काम करने वाले एक कर्मचारी की पत्नी ने अपनी राय रखते हुए कहा।
“बेटा, बड़े साहब ने आज तक हमें बहुत कुछ दिया है। आज वो हमसे केवल थोड़ा सा पानी ही तो मांग रहे हैं। बड़े बर्तन में लेकर‌ जाना तुम पानी।” धनीराम की फेक्ट्री के रिटायर्ड मुलाजिम ने अपने बेटे से कहा।
“वैसे तोहफे में क्या देंगे बॉस? आई होप कुछ काम की चीज़ हो।” एक महिला कर्मचारी ने दूसरी से कहा।
“हाँ, गले का सेट मिल‌ जाए तो अच्छा रहेगा। वैसे भी कंपनी को पच्चास साल पूरे हो जाएंगे। इतना तो बनता है हम लोगों का।” दूसरी कर्मचारी बोली।‌
कुछ इसी तरह की बातें धनीराम की सभी फैक्ट्रियों और दफ्तरों में चल‌ रहीं थीं। ये बातें उनके बेटों के कानों तक भी पहुंची। वह तुरंत धनीराम के पास पहुंचे,
“ये क्या पिताजी, आप सभी कर्मचारियों को, फिर चाहे वो चपरासी हो या बड़ी पोस्ट पर, सबको एक साथ पार्टी पर बुला रहे हैं? पिताजी सबको उनकी हैसियत के हिसाब रखना चाहिए।” बड़ा बेटा बोला।
“और क्या पिताजी, भैया सही कह रहे हैं। साथ ही ये पानी लाने को क्यों कहा है आपने? ऑफिस में सब हँस रहे हैं।” सबसे छोटा बेटा बोला।
धनीराम हँसते हुए बोला, “ये पार्टी मेरे सभी कर्मचारियों के लिए है। और मेरे लिए कोई छोटा-बड़ा नहीं है, समझे। और‌ हाँ, तुम सबको इस पार्टी में शिरकत करने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि ये मैंने एक धन्यवाद के रूप में केवल अपने कर्मचारियों के लिए रखी है। और पानी क्यों मंगवाया, ये बाद में पता लग जाएगा।
आखिरकार पार्टी का दिन आ गया। लगभग सभी कर्मचारी परिवार समेत फार्म हाउस पहुंचे। वहाँ गेट पर ही एक बहुत बड़ा सा टेंक रखा था। सबको हिदायत दी गई कि वह जितना भी पानी लाएं हैं वो उस टेंक में डाल दें और बर्तन को वहीं बने एक कमरे में अपने नाम की चिट डालकर छोड़ दें।‌
बहुत से कर्मचारी छोटे से कप में पानी लाएं थे, कुछ गिलास में पानी लाए थे, कुछ कर्मचारी बीस लीटर का बिसलेरी का केन उठाकर लाए थे। कुछ गरीब मज़दूर, बड़े बर्तनों में भर कर पानी लाए थे। अर्थात, सब अपने मन की क्षमता के अनुसार पानी लाए थे। जिसके मन ने उसे जैसी राह दिखाई उन्होंने वैसे बर्तन में पानी देना उचित समझा।
अंदर पार्टी का बहुत बढ़िया इंतज़ाम था। लगभग सबके आने के बाद धनीराम वहां आए और माइक पकड़कर बोले,

“प्यारे साथियों, आज धनीराम एंड सन्स को पच्चास साल पूरे हो गए हैं। और इन पच्चास सालों में कंपनी ने अनेकों उतार-चढ़ाव देखे हैं। पर मैं आप सबका शुक्रगुजार हूँ कि मुश्किल घड़ियों में आप सबके सहयोग से ही कंपनी उन सभी मुश्किलों का सामना कर पाई। इसलिए मैंने निर्णय किया कि आज के इस पावन अवसर पर मैं अपनी तरह से आपका शुक्रिया अदा करुं। आप सब पार्टी और खाने का आनंद उठाइए और जाते समय उस कमरे से अपने नाम का तोहफा ज़रूर लेते जाएं। बहुत बहुत आभार आप सबका।” धनीराम के लिए खूब तालियां गूंज उठी।

सबने जमकर पार्टी का आनंद लिया। छोटे कर्मचारियों ने कभी इतनी बड़ी पार्टी नहीं देखी थी। वह सब मन ही मन धनीराम को दुआएं दे रहे थे। नाच-गाना, हल्ला-गुल्ला के बाद सबने जमकर खाने का भी आनंद उठाया।

रात होने लगी थी। सब थक गये थे। अब सब बारी-बारी अपने घरों की तरफ प्रस्थान कर रहे थे। जाने से पहले सबको बारी-बारी उसे कमरे में भेजा जा रहा था जहां से उन्हें वो तोहफा उठाना था।

सब देख कर हैरान थे कि उनके द्वारा लाए गए बर्तनों को खूबसूरत पेपर से सजा रखा है। उसमें कुछ भरा हुआ था जो उन्हें दिख नहीं रहा था। जो कर्मचारी तोहफा दे रहे थे वो यही कह रहे थे सबसे कि इस तोहफे को घर जाकर खोलें।

कुछ लोग आपस में बातें करने लगे,
“हमें तो लगा कि कुछ बढ़िया तोहफा होगा, पर ये तो हमारे ही बर्तन हमें वापिस कर रहे हैं। ये क्या बात हुई भला?”

सब चुपचाप अपना लाया बर्तन उठाकर चल पड़े। पर सबके बर्तनों में कुछ तो सामान भरा था, ये तय था।

जब सब घर पहुँचे तो सबने उत्सुकता वश जल्दी से अपने बर्तन पर से मखमली चमकदार कपड़ा उतारा और अंदर देखा। कुछ कर्मचारी तो देखते ही बेहोश हो गए और कुछ खुशी से उछल पड़े।

सबके लाए बर्तनों में धनीराम ने जेवरात और पैसे भरकर दिए थे। दरअसल धनीराम ने अपने परिवार से छिपाकर बहुत सा धन एकत्रित किया था। जो उसने बाहर के किसी देश के बेंक के लॉकर में रखा था। अपने बच्चों में अपनी जायदाद का बंटवारा करने के बाद उसे एहसास हुआ कि आज वो यदि सफलता की ऊंचाइयों को छू पाया है तो वो केवल अपने कर्मचारियों की मेहनत की वजह से। इसलिए जायदाद का सही और असल बंटवारा तभी होगा जब उसमें से कर्मचारियों को भी उनका हिस्सा मिलेगा। पर ये काम वो अपने बच्चों से बचाकर करना चाहता था। क्योंकि यदि उन्हें उसकी इस सम्पत्ति के बारे में पता चलता तो वो उसे ऐसा कभी नहीं करने देते। इसलिए इस बारे में केवल एडवोकेट मनीष और कुछ भरोसेमंद लोगों को ही पता था।

“सच में धनीराम जी, बंटवारा हो तो ऐसा हो!” एडवोकेट मनीष बोला।

“अब में सुकून से रिटायर‌ होकर तीर्थधाम को जा सकता हूँ।” धनीराम बोले।

“एक बात मन में खटक रही है धनीराम जी। आपने कर्मचारियों में दौलत का बंटवारा तो किया पर सबको बराबर नहीं मिला। जिसका बर्तन छोटा था उसे कम मिला और जिसका बर्तन बड़ा था उसे ज़्यादा मिला। क्या ये न्याय है?” एडवोकेट मनीष ने पूछा।

“मनीषा जी, ये ही उत्तम न्याय है। देखिए, यदि मैं सबको अपने आप से बराबर-बराबर बांटता तो बड़े पदों पर आसीन कर्मचारी कहते कि छोटे पद वालों को उनके जितना क्यों मिला? शायद ये बात कहीं ना कहीं झगड़े का विषय बन जाता।” धनीराम बोले।

“झगड़ा तो अब भी हो सकता है। अभी भी तो किसी को ज़्यादा और किसी को कम मिला है।” एडवोकेट मनीष ने आशंका जताई।

धनीराम ने हँसते हुए उत्तर दिया, “अब झगड़े नहीं हो सकता क्योंकि अब जिसे जो मिला, जितना मिला ये उस व्यक्ति की किस्मत और उसकी सोच का फल था। जिसको कम्पनी से और मुझसे जितना लगाव था वो उस हिसाब से मेरे लिए पानी लाया। जो बड़े-बड़े भिगोने और बर्तनों में पानी लाए, वो किसी डर या लालच के बदले में नहीं लाए। यह उनकी कम्पनी के प्रति वफादारी थी इसलिए उन्होंने बड़े बर्तनों में पानी लाना उचित समझा।”

“वाह! धनीराम जी मान गए आपको। असली बंटवारा तो इसे कहते हैं।” एडवोकेट मनीष धनीराम की सोच की प्रशंसा किए बिना ना रह सका।