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Hindi kahani: वन में हमें ऐसे बहुत से उदाहरण मिलेंगे, जब हमें लगा होगा कि एक बार जो काम हमने किया, वह बहुत ही अच्छा और लाभदायी रहा, और जब दूसरी बार वही काम किया, तो परिणाम निराशाजनक रहा। आखिर ऐसा क्यों होता है कि एक ही काम, एक ही करने वाला और एक जैसी ही कार्य प्रकृति व समय, लेकिन नतीजे फिर भी अलग-अलग। इसी तरह एक ही काम में लगे दो समान लोगों के साथ भी होता है। एक ही कक्षा में कई विद्यार्थी होते हैं, लेकिन सबका नतीजा समान तो नहीं होता।

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इस अंतर का एकमात्र कारण एकाग्रता, तल्लीनता, तन्मयता में छिपा है। जो जिस समय अपने काम में थोड़ा एकाग्र, तल्लीन और तन्मय होगा, उसका काम उस समय में उतना ही सुचारु और अच्छी गुणवत्ता वाला होगा। जो अधिक एकाग्रता से ध्यान केंद्रित करेगा, उसके विचार उतने ही स्पष्ट और उत्कृष्ट होंगे। हम जितनी तन्मयता, तल्लीनता से काम में जुटेंगे, एकाग्रता उतनी ही सूक्ष्म होगी। भन की स्थिरता, केंद्रीकरण और समग्रता को ही एकाग्रता, तन्मयता और तल्लीनता कहा जाता है। यह सारा खेल हमारे मन का है। शरीर तो मात्र साधन भर है। असली कलाकार तो हमारा मन ही है, जिसकी शक्ति हमें एकाग्रता की और ले जाती है और कार्य विशेष में तल्लीन कर देती है। दुनिया की तमाम महान विभूतियों के जीवन पर नजर डालें, तो पाएंगे कि उनकी सफलता का रहस्य मन की शक्ति में छिपा था।

वास्तविक कर्ता तो मन है, जो हमें सफलता की ओर ले जाता है। जब हम मन की शक्ति से एकाग्रता, तन्मयता को हासिल कर लेते हैं, तो फिर कोई भी कार्य असंभव नहीं रह जाता। इसीलिए कहा जाता है कि मनुष्य के मन के भीतर ही लौकिक, पारलौकिक सारी शक्तियां सुरक्षित रहती हैं। मन की स्थिरता का अर्थ होता है- उसमें सभी प्रकार की शक्तियों की उपस्थिति और शक्तियों की उपस्थिति का मतलब होता है सफलता। जबकि मन का परिभ्रमण बताता है कि हमारे भीतर शक्तियों का अभाव है और इसी वजह से हम सफलता को छू नहीं पाते। जीवन में निश्चित सफलता पाने के लिए मन में एकाग्रता का उत्पन्न होना बेहद जरूरी है। मन हमेशा चंचल प्रकृति का होता है। इसलिए पहले उसे साधना होगा और उसे स्थिर वे शक्तिशाली बनाना होगा। मन को शक्तिशाली बनाने के लिए जरूरी है कि उसे मुक्त और निर्भय रखा जाए। मन की दो ही गतियां होती हैं। या तो यह मनुष्य को अपना दास बना लेता है या फिर स्वयं मनुष्य का दास बन जाता है। अगर मन कमजोर पड़ने लगा और हम उसके दास होते चले गए, तो क्या होगा? हम इच्छाओं, लिप्साओं, तृष्णा के जाल में फंसने लगेंगे और अंततः हमारी भीतरी शक्तियों का ह्रास होने लगेगा। अगर मन निरंकुश होता चला गया, तो भी वह मनुष्य को अपना दास बना लेगा। और अगर हमने मन को काबू करना सीख लिया तो हम फिर उसके गुलाम नहीं रहने वाले। इसलिए कहते हैं मन पर विजय पाना बहुत जरूरी है।