Hindi Story: एक दिन मिश्रा जी का छोटा बेटा किसी जरूरी काम से घर से निकला ही था कि सड़क पर चलते हुए वो ठोकर खाकर एक गधे के सामने गिर गया। उसी समय उसकी भाभी ने उस पर छींटाकशी करते हुए कहा कि अपने बड़े भैया का आशीर्वाद ले रहे हो क्या? मिश्रा जी के छोटे बेटे ने कहा-‘जी आपने बिल्कुल ठीक फरमाया भाभी जी।’ इस छोटे से मज़ाक को लेकर भाभी ने अंट-शंट बोलते हुए सारे घर में आग लगाने की तैयारी कर ली।
अगले ही पल आगबबूला होते हुए वह अपने देवर का उलाहना लेकर सासू मां के पास पहुंच गई। छोटे देवर पर आरोप लगाते हुए उसने कहा कि अभी तक तो यह ठीक से अपने पैरों पर भी खड़ा नहीं हो पाया और फिर भी देखो मुफ्त का माल खा-खा कर कैसे इसकी जुबान कैंची की तरह चलने लगी है। छोटे-बड़े की उम्र का ख्याल किये बिना हर किसी की बेइज्जती करने लगा है। अच्छी-खासी शिकायत करने पर भी जब सासू मां के चेहरे पर कोई असर दिखाई नहीं दिया तो उसने सोचा कि आज अपने पति के अच्छे से कान भर कर इसे जलील करवाऊंगी।
शाम होने पर जैसे ही मिश्रा जी का बड़ा बेटा घर में आया तो बहू ने बिना चाय-पानी पूछे उससे कहा कि आज तुम्हारे छोटे भाई ने मेरे साथ-साथ तुम्हारी भी नाक कटवा दी है। मुझे तो समझ नहीं आता कि तुम तो सारा दिन घर के व्यापार को संभालने के लिये कोल्हू के बैल की तरह पिसते रहते हो। दूसरी ओर वो जो तुम्हारे पैरों की धूल के बराबर भी नहीं तुम्हारे मां-बाप हर समय उसे क्यूं सिर पर बिठाये रहते हैं? इस जोरू के गुलाम ने छोटे भाई की अक्ल ठिकाने लगाने के लिये बिना सोच-विचार किये अपने मां-बाप को हर तरह के अपशब्द कहते हुए उल्टी-सीधी बातें सुनानी शुरू कर दी। हंसी-मज़ाक की इस छोटी-सी बात को खत्म करने के बजाए बड़े भैया ने कई पुराने गड़े हुए मुर्दे उखाड़ते हुए अपने मां-बाप को एक की दो सुना डाली। अभी यह सारा हंगामा चल ही रहा था कि मिश्रा जी के एक बुजुर्ग मित्र उनसे मिलने आ पहुंचे। बड़ी बहू और बेटे की सारी शिकायतें सुनने के बाद उन्होंने कहा कि वैसे तो यह आप लोगों का पूर्ण रूप से निजी मामला है, लेकिन मैं भी इस परिवार से एक लंबे अरसे से जुड़ा हुआ हूं तो इस हक से यदि मिश्रा जी की इजाजत हो तो मैं आप लोगों से कुछ कहना चाहूंगा।
जैसे ही मिश्रा जी ने आंखों के इशारे से अपनी स्वीकृति दी तो इनके मित्र ने हंसते हुए कहा कि सबसे पहले तो मुझे यह सारा मामला ’उल्टा चोर कोतवाल को डांटे’ जैसा दिखाई दे रहा है। सभी बच्चों को सलाह देते हुए इन्होंने कहा कि बेटा एक बात सदा याद रखो कि हमारे घर-परिवार का कोई भी सदस्य हमें दुःख नहीं देता बल्कि उनके प्रति हमारे जरूरत से अधिक अधिकार की भावना हमें दुःखी करती है। जब हम दूसरों को बार-बार उनकी गलतियां ही जताते हैं और खुद को उपदेशक मानने लगते हैं तो यही हमारी सबसे बड़ी गलती होती है। बड़े बेटे की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि जिस मां-बाप को तुम आज एक भी अक्षर बोलने नहीं दे रहे, क्या तुम जानते हो कि इस दुनिया में सबसे ऊंचा स्थान उन्हीं मां-बाप का ही है। यह बात मैं सिर्फ तुम्हें सुनाने के मकसद से नहीं कह रहा बल्कि इनका गुणगान तो हमारे धर्मग्रन्थों में भरा हुआ है।
मुझे तुम्हारी बातें सुनकर हैरानगी हो रही है कि तुम अपने मां-बाप द्वारा दिये हुए संस्कारों को कैसे भूल गये कि यदि कोई व्यक्ति लाखों रुपये कमा भी लेता है, परंतु यदि उसके मां-बाप खुश नहीं है तो यह धन-दौलत धूल के बराबर है। कोई भी इंसान पैसे या उम्र से बड़ा नहीं बनता, बल्कि बड़ाई तो उसके आचरण और व्यवहार से बनती है। भगवान ने केवल मनुष्य को ही ऐसी शक्ति दी है कि वो अपने अंदर और बाहर के व्यवहार दोनों को समझते हुए हर रिश्ते के अंतर को ठीक से समझ सके। जो मनुष्य यह जानते हुए भी ऐसा नहीं करता वो मनुष्य होकर भी मनुष्यों का जीवन नहीं जी पाता। जो कोई व्यक्ति हर पल अपने मां-बाप का आशीर्वाद और प्यार पाने में कामयाब हो जाते हैं उन लोगों का घर ही तीर्थ बन जाता है। माता-पिता क्रोधी है, पक्षपाती है, शंकाशील है, यह सारी बातें बाद की है, लेकिन सबसे पहली बात यह ध्यान में रखो कि वो तुम्हारे मां-बाप है। मां-बाप को सोने के गहने ना लाकर दो तो चलेगा, हीरे-मोतियों से न जड़ो तो भी चलेगा, पर उनका दिल जले और आंसू बहे तो यह कैसे चलेगा?
बड़े बेटे और बहू ने एक साथ कहा कि आपके कहने का तो यही मतलब हुआ कि सारा दोष हम लोगों का ही है। हमारे मां-बाप तो कभी कोई गलती कर ही नहीं सकते। इन साहब ने कहा कि मेरे कहने का तो सिर्फ इतना अभिप्राय है कि जब तक मनुष्य दूसरों के प्रति द्वेष की भावना दिल में रखता है, उसके मन को शांति नहीं मिल सकती। जो कोई इस रहस्य को जानते हैं उन्हें मालूम है कि बड़े बुजुर्गों की सेवा करना और उनकी हर बात सुनना ही सबसे बड़ी इबादत है। जो व्यक्ति अपने बुजुर्गों से प्यार नहीं करते वो दुनिया में किसी से प्यार नहीं कर सकते। जो कोई अपने मां-बाप का अपमान करता है वह सिर्फ और सिर्फ पाप का ही भागी बनता है। जिस दिन तुम्हारे कारण मां-बाप की आंखों में आंसू आते हैं, याद रखना उस दिन तुम्हारा किया सारा धर्म आंसुओं में बह जाता है। बचपन के कई साल तक तुम्हें अंगुली पकड़कर जो मां-बाप स्कूल ले जाते थे, उसी मां-बाप का बुढ़ापे में चंद दिन सहारा बनकर यदि मंदिर-गुरुद्वारे ले जाओगे तो शायद थोड़ा-सा तुम्हारा कर्ज, थोड़ा-सा तुम्हारा फर्ज पूरा हो जायेगा। जिस मां-बाप ने बचपन में तुझको पाला और संभाला था यदि बुढ़ापे में तुम उनको नहीं संभाल सके तो याद रखना तुम्हारे भाग्य में सदा सुख की जगह दुःख की ज्वाला ही भड़केगी।
मां-बाप के प्रति इतने आदर और सम्मानजनक अल्फाज़ सुन कर जौली अंकल नई पीढ़ी को यही पैगाम देना चाहते हैं कि भगवान भी सदैव आदर से अपने मां-बाप का नाम लेते हुए उन्हें 100-100 बार प्रणाम करते हैं क्योंकि उनका भी यही मानना है कि एक यही है जो सारी उम्र आपको उज्ज्वल राह दिखाने के साथ हर हाल में प्यार भरे आशीर्वाद की बरखा करते रहते हैं। अपनी दुआओं को पूरा करने के लिये खुद ही हाथ उठाने पड़ते हैं।
ये कहानी ‘कहानियां जो राह दिखाएं’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं–
