Hindi Kahani: नयी दुल्हन भागवंती,केतली से कप में चाय उड़ेल ही रही थी तभी भैया सुखी आशीर्वाद डोली से उसे ,गाँव आयी बुआ का कर्कश स्वर सुनाई दिया ,वो
“ बहू के पांव अच्छे नहीं हैं.गाँव गाँव से खबर आई है कि दुधारू गाय मर गई. फसल भी खराब हो गई.मैं तो शुरू से ही कहती थी,जन्म कुंडली का सही से मिलान करना . लेकिन, ,तुम लोगों ने मेरी सुनी ही नहीं”बुआ
“ चिल्ला तो मैं भी रही थी पर ये सुनें तब न”
“ अपनी ज़ुबान को लगाम देसिद्धार्थ की अम्मा. सिद्धार्थ की अम्मा.तेरा बेटा तो शुरू से ही इस लड़की का फ़ोटो पकड़ कर बैठा था.तब तो इस से गुणवान लड़की दूसरी कोई थी ही नहीं”
भागवंती के हाथ में पकड़ी चाय की ट्रे गिरते गिरते बची.हाथों की उँगलियाँ सर्द हो गई थीं. दिल को कड़ा न किया होता तो वहीं बेहोश हो गई होती.आहिस्ता से उसने ,बाथरूम में जाकर,रोने से लाल हुई आँखों पर पानी के छींटे डाले फिर ,चेहरे को धीरे से पोंछकर,चौके में चली गयी..सारी की सारी ख़ुशियाँ अपने तंबू,कनात उखाड़ कर दूर बहुत दूर चली गयीं जो नयी बहू के चेहरे पर होनी चाहिए थीं.ही किसे बताए कि वो पढ़ी लिखी लड़की है और उसके पांव भी अच्छे हैं.उसकी वो,वाद विवाद प्रतियोगिता में भाग लेती रही है. कॉलेज की तेज तर्रार छात्रा रही है. जर्नलिज्म करने का सपना पाले पाले अचानक ब्याह दी गई तो इसका ये मतलब तो नहीं कि ,उसे कोई भी कुछ कहकर चला जाएगा?
आधी रात में जब सिद्धार्थ ने अपनी बाहों के घेरे में कस कर उसके चेहरे पर चुम्बनों की बौछार लगा दी,तो उस समय भी,”बहू के पाँव अच्छे नहीं हैं” ये शब्द उसके कानों पर हथौड़े चला रहे थे.
बुआ के वापस लौट जाने के बाद ,एक दिन ,सास माँ को अच्छे मूड में देखकर वो ,उनसे पूछ बैठी,
“ माँ जी,ऐसा क्या हुआ है जो बुआ कह रही थीं मेरे पांव अच्छे नहीं हैं.गाय मेरे कारण मर गई या पहले से ही बीमार थी?”
“ चार दिन की ब्याही लड़की और,जुबान ,कैंची की तरह चकर चकर चला रही है”
फिर जो उन्होंने टेबल पर रखी स्टील की थाली फेंकी तो उसकी झनझनाहट सुनकर पूरा घर, पल भर में चौके में जमा हो गया.उसी थाली की तरह वो भी कोने में जाकर गिरी.फ़र्क़ सिर्फ़ इतना था कि वो,बेआवाज़ गिरी. जब उसने समर्थन के लिए पति की ओर देखा तो, उसकी हर अदा पर रीझते हुए ,उसे भोगने वाले पति परमेश्वरसिद्धार्थ ने सिद्धार्थ थे.और वो, गड़ी .
“ कैसे संस्कार हैं इसके? इतनी तेज लड़की?अभी जुम्मा जुम्मा दो दिन भी नहीं हुए ब्याह को और इतनी ज़ुबान दराजी?”जेठानी पहली बार उसके ख़िलाफ़ बोलती दिखीं., एक आसरा था वो भी गया
“ यह तो हम लोगों को जीने नहीं देगी.”
“ इनके घर वालों वालों को बुला कर इनका हाल बताओ अम्मा तभी उन लोगों को समझ में आयेगा
”
उसका देवर मनीष मनीष भी पीछे नहीं रहा था.
भागवंती की स्मार्टनेस,कुशाग्र बुद्धि,उसका फुर्तीलापन,सब बेकार हो गए. पांव उन लोगों के डर से काँपने लगे.अपमानित,उपेक्षित, कटघरे में खड़ी भागवंती याद कर रही थी ,baba
“ दो घरों का मान सम्मान अब तेरे कंधों पर है बिटिया”विदाई के समय माँ और बाबा ने कहा था.
“ जाओ जाकर अपना घर आबाद करो. बेटी तो पराया धन होती है” सबको ढाढ़स बंधाते,बिटिया को विदा करते चाचा ने कहा तो,भागवंती को घेरे उसके ,
लाल लाल जोड़े चोले को निहारती, कमरे में भरी भरी सारी औरतें सिसक उठी थीं,कहीं न कहीं न कहीं सबको अपनी आप बीती याद आ आ रही थी. कितने जतन से सब ने भागवंती भागवंती को यहाँ भेजा था .कोई पानी पिलाता,तो कोई भोजन कराता.माँ दान दहेज का समान अलग कर, रोतीं जा रही थीं,

“ ये ननद के लिए,ये जेठ जेठानी के लिए….””.
तभी बड़े भाई की आवाज़ आयी,
“ निकालो भाई,नहीं तो मुहूर्त का समय निकला जा रहा है”और सही समय देखकर वो ,उस घर से निकाल दी गई.
उस दिन सबसे अपमानित होने के बाद उसने प्रण किया कि “अब,वो कुछ नहीं बोलेगी. बोलकर मिलेगा भी क्या?बहुत सोचा विचारा,जिस घर में उसका बचपन बीता,वो घर,अब उसका कहाँ है?उसे जन्म देने वाले,पालने पोसने वाले क्या उसे शरण देंगे??किसी की दया पर वो,क्या ख़ुद ज़िंदा रह पाएगी?तब फिर रास्ता क्या है? यही कि .समय को अपने पक्ष में आने तक बिल्कुल चुप रहना ही ठीक रहेगा.. कभी कभी घुटन इतनी बढ़ जाती कि,उसका मन करता किसी आश्रम में जाकर साध्वी का चोला पहन ले,लेकिन दोनों कुलों की ज़िम्मेदारी जो उसे सौंपी गई थी, उसे भी तो निभाना था।
अचानक भद्द भद्द की आवाज़ आयी जैसे कोई कपड़ा पीट रहा हो.साथ में दबी सहमी चीख़ों की भी आवाज़ें सुनाई दे रही थीं.बड़े भैया,भाभी को बुरी तरह पीट रहे थे.
” इतनी बेरहमी से कोई पति अपनी पत्नी को कैसे पीट सकता है?”उसके अंतस से पुरज़ोर स्वर उभरा. वो दौड़ कर गई और भाभीजी की पीठ पर पूरी तरह फ़ैल गई.इतनी देर में पूरा परिवार उसके चारों तरफ़ जुड़ गया था.भगवंती ने आश्चर्य से सबकी तरफ़ देखा,
‘ क्या हो गया है कोई कुछ बोलता क्यों नहीं ”
“ अब तुम हमे समझाओगी?” ससुर जी उसका हाथ पकड़ कर, ज़ोर से खींचते हुए बाहर आँगन में ले आये.फिर सिद्धार्थ से बोले,
“ अपनी पत्नी को लेकर इस घर से निकल जाओ ”
सिद्धार्थ इस तरह सकते में आ गया,जैसे बाबूजी कोई वसीयत लिख रहे हों.भागवंती अभी भी दहाड़ रही थी,
“ बड़े भैया ने भाभी को क्यों मारा”
“ तुझे पता है खाना बनाते समय बड़ी भाभी ,भैया को क्या क्या समझाती है? “देवर मनीष ने आँखे तरेर कर पूछा.
“तो इसका मतलब उन्हें जानवर की तरह पीटा जाएगा”
सिद्धार्थ उसके पास आए और उसका हाथ ऐंठ कर बोले,
“सुन ज़्यादा ज्ञानी मत बन,नहीं तो दो मिनट में बड़े भैया तुझे भी तेरे मायके पहुँचा आएँगे..
अब उसके अंदर से ऐसी स्त्री निकल आयी थी.जो बात बात में डरती थी,झिझकती थी,घबराती थी अकेले चलने में उसके पाँव काँपते थे,और जो बेघर थी.आधी रात को,अंतरंग क्षणों में उसने सिद्धार्थ से पूछा,
“ सुनो क्या मेरा घर कहीं नहीं है.?”
“ पागल हो गई है क्या”बड़बड़ाते हुए उसको भोगने के बाद सिद्धार्थ,उसे धक्का देकर सो गए थे और वो,रात भर जागती रही थी.सुबह कमरे से बाहर निकली तो, भाभी जी सब्ज़ी काट रही थीं,बाहर निकलीं तो उसने पूछा,
“ भाभी,भैया ने आपको जानवर की तरह क्यों पीटा “
“तुम्हें तो नहीं पीटा न उन्होंने”
“ क्या?”
“ हमारे पास बुद्धि होती तो क्या इस तरह मार खाते ”
“ क्या ऽऽ क्या कह रही हैं आप?” वो अचानक चिल्लाने लगी.
“ पागल हो गई हो क्या?हमसे सवाल पूछती हो? इतना दम था तो जाकर पूछो अपने बाप से किसी कलक्टर से क्यों नहीं नहीं शादी करा दी तुम्हारी “
“ इतना पैसा नहीं था मेरे बाबा के पास..”
उस के जी में आया गले में रस्सी बाँध कर सुसाइड कर ले. पर भाभी ने समझा बुझाकर उसे ,उसी तरह अँकवार में भर लिया जैसे उस दिन वो,उनकी पीठ पर फ़ैल गई थी. फिर दोनों रोने लगी थीं.
अब लोग अब अजीब निगाहों से उसे देखते हैं. सिद्धार्थ भी दूसरे कमरे में जाकर सोने लगा है,क्योंकि वो उसे रात में जगा जगा कर पूछती है,,
“ सुनिए क्या हमारा कोई घर नहीं है?”
उसिद्धार्थ ने उसका नाम पगली रखा है.धीरे धीरे उसे दूसरे लोग भी पागल कहने लगे हैं.उसे चौके के काम से हटा दिया गया है. घर वालों को अब उस से डर लगने लगा है. ‘ कहीं खाने में मिट्टी का तेल न मिला दे या सब्ज़ी में धूल ही न उठाकर झोंक दे?
एक बार भागवंती मायके गई.बड़े भैया दो दिन बाद ही उसे वापस छोड़ गए.माँ ने भी यही कह कर उसे विदा किया,
“ शांति से अपना घर संभालो,जहाँ डोली उतरती है वहाँ से औरत की अर्थी निकलती है.”
मायके से लौटने के बाद उसका पागलपन और भी बढ़ता गया.जो भी घर में आता है उसे कहती फिरती है,
“ मैं ,फर्स्ट क्लास फर्स्ट हूँ,एम ए किया है,लेकिन मेरे पास घर नहीं है”
पगली को पागल हुए चार बरस हो गए हैं. इस बीच वो,हर दूसरे दिन मार खाती है,जब बाबूजी के सामने साड़ी उठाकर बैठ जाती है.या उनकी थाली में से खाना निकालकर खाने लगती है,या “हमारा घर हमारा घर “चिल्लाने लगती है. जेठानी जी ने दबी जुबान से उसका इलाज करवाने की बात की थी. लेकिन उसे डाँट कर चुप करा दिया गया.
एक दिन भगवंती घर छोड़ कर बाहर निकल गई.कारण तो साफ़ साफ़ नहीं पता चला. हाँ जेठानी जी कभी आँख फाड़ कर कभी बंद करके जिस तरह से इशारा करती हैं,उस से पता चलता है कि,उसके देवर ने कमरा बंद करके उसे दबोचने की कोशिश की थी. ऐसा करता तो वो हमेशा से ही था लेकिन,इस बार वो उसकी पकड़ से भाग निकली.बाल बिखेरे,अर्धनग्न दशा में जब वो वापस लौटी तो मनीष , आँगन में तुलसी के चौरे के इर्द गिर्द, उसे बेरहमी से पीटता रहा. मार मार कर जब वो थक गया तो जाते जाते अपने पौरुष की दस्तख़त बनाता हुआ बोला,
“ चरित्र हीन औरत,फिर कभी मेरे पास फटकने की जुर्रत की तो इस से भी बुरा हाल करूँगा”
उस दिन के बाद भागवंती न इस घर में दिखी न गाँव के किसी कोने में ही दिखी.हाँ,उस समय वो अपनी अस्तव्यस्त दशा को सहेजती समेटती उठी तो उसने एकमात्र गवाह भाभी जी को धोखेबाज़ और कायर कहकर इस तरह घूरा था कि भाभी जी ख़ुद को धोखेबाज़ मानने लगी हैं .लेकिन तब जब घर के सारे सदस्य गहरी नींद सो रहे होते हैं.और वो जाग रही होती हैं.
