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Sambal

Moral Story in Hindi: बस स्टॉप पर खड़े खड़े कावेरी का धीरज टूटने लगा था. उम्र के इस पड़ाव पर ट्यूशन के लिए रोज़-रोज़ सरिता विहार से ग्रीन पार्क तक का सफ़र करने से थकावट सी महसूस होने लगी थी उन्हें.

खैर शुक्र है,इतनी देर बाद बस आयी तो सही लेकिन  वही रेंगती हुई,ठसाठस भीड़ से भरी हुई.कावेरी उस भीड़ में ही धक्कम धुक्की करते हुए,किसी तरह बस में सवार हो गयीं.लेडी रिजर्व्ड सीट पर दो नवयुवतियां बैठी थीं.लेकिन उन दोनों में से किसी एक ने भी उन्हें, सीट देने की ज़हमत नहीं की..

         कावेरी को अपने बचपन के दिन याद आने लगे.लोगों के दिल में अपनों से बड़ों के लिए इज़्ज़त थी.घर बाहर कहीं भी तो इतना स्वार्थ नहीं था.

   फिर भी इला के माता पिता जैसे भले मानस इस ज़माने में भी हैं वरना फोर्थ स्टैंडर्ड में पढ़ने वाली,अपनी बेटी के लिए भला कोई पाँच हज़ार फेंकता है?. मारे शर्म के उन्होंने तो फीस का ज़िक्र तक नहीं किया था. उनकी शर्मिंदगी मिटाते हुए इला की माँ ने ख़ुद ही सपाट लहजे में कह दिया था कि,

“फ़िलहाल  मैं पाँच हज़ार से ज़्यादा नहीं दे पाऊँगी. अगर इला का रिजल्ट अच्छा हुआ तो थोड़ा बहुत बढ़ा दूँगी”

“ नहीं ….नहीं इतना ही काफ़ी है. हमारे ज़माने में तो इत्ती सी बच्ची को पढ़ने के लिए इतनी फीस कोई सोच भी नहीं सकता था.

इला की मम्मा हंस दी थीं,” लगता है आप पहली बार ट्यूशन करने निकली हैं. हैं न? आजकल टीचरों के नखरे सुनेंगी  तो दिमाग़ चकरा जाएगा”

उस दिन के बाद से इला की मम्मा और कावेरी घनिष्ठ मित्र  बन गयीं थीं.

.कॉलेज  के ज़माने की विस्मय विमुग्ध उनकी आँखें, आज भी ज्यों की त्यों अचरज में डूबी हुई. मेढकों के छत्तों की तरह उगे हुए,नए नए घर मकान.. बीच बीच में पोखर तालाब,नारियल के पेड़ के पत्तों पर झरती हुई,ढलते सूरज की आभा देख कर .. इस उम्र में भी उसी तरह मंत्र मुग्ध हो उठती जैसे कुछ सालों पहले वो, ढलती सांझ के वक्त ,समीरन के साथ सैर को निकलती थीं.

        विचित्र थी समीरन और कावेरी की अरेंज्ड मैरिज.कावेरी के  रिटायर्ड पिता की इतनी हैसियत नहीं थी कि वो ,एम ए प्रथम वर्ष में पढ़ने वाली अपनी इकलौती बेटी के लिए, डॉक्टर इंजीनियर लड़कों की मांगें पूरी कर सकते.इधर समीरन भी दहेज प्रथा के सख़्त विरोधी थे.उन्होंने रिश्ता तय होने से पहले ही कावेरी के पिता के समक्ष दो बातें स्पष्ट कर दी थीं

”पहली,मैं आपको आश्वस्त करता हूँ कि,आपकी बेटी को देखे बिना ही ये शादी पक्की है”

“ दूसरे,आपको दहेज देने की ज़रूरत नहीं. हाँ,पिता होने के नाते अगर आप अपनी बेटी को कुछ ऐसा छुट पुट देना चाहें,जो सिर्फ़ उसी को काम आए तो,दे सकते हैं”

सुहाग रात में प्रेम-प्यार,पसंद-नापसंद से भी पहले जिस एहसास ने कावेरी को भर दिया था वो थी श्रद्धा.मासूम सा प्रश्न किया था उन्होंने समीरन से,

“ जिस के साथ सारी उम्र बितानी हो उसे देखे बिना ही आपने शादी के लिए हामी भर दी?”,

“ कावेरी ,लड़कियां दुकान में नुमाइश के लिए सजी सजायी गुड़िया नहीं हैं कि, पसंद आए तो ख़रीद ली  जायँ और अगर नापसंद  हैं तो उपेक्षा से ख़ारिज करके चल दिया जाय.उसके बाद उस गुड़िया की क्या हालत होती है,आज के ज़माने में किसी को इसका ख़याल नहीं आता”

 परिचय का दौर ,जाने कब रूमानी पलों में बदलता  चला गया पता ही नहीं चला.उसके बाद तमाम दिन.. मेघ हीन आसमान की छाती पर मुक्त विहंग की तरह पंख फैलाए उड़ते फिरते बीतने लगे थे.एक दिन समीरन  ने कहा,

“ ,काफ़ी मौज मस्ती हो चुकी,अब आप यूनिवर्सिटी की ओर रुख़ करें

“ मेरा मन नहीं है.आशीष,अभी अभी कॉलेज में भर्ती हुआ है. माँ की भी उम्र हुई.अब मैं हर वक्त उनकी आँखों के सामने किताब खोलकर बैठी रहूँ तो,काम कैसे चलेगा.!”

“ जाना तो पड़ेगा”

“ मैं समझ गई,जनाब मुझ से नौकरी करवाना चाहते हैं,इसीलिए पढ़ाने का इतना शौक चर्राया है”

“ कावेरी,शिक्षा को मैंने कभी भी महज़ रुपए,पैसे या रोज़गार का ज़रिया नहीं माना. शिक्षा तुम्हारे सोच विचार,उचित,अनुचित के मूल्य बोध की ताक़त और साफ़ सुथरी रुचि देती है..”

समीरन  ने,कावेरी को प्यार से समेटते हुए कहा,“और हमारे नितांत अपने नए मेहमान के लिए.बेहतरीन टीचर,हाथ की मुट्ठी में मौजूद होगी”

      लेकिन ,हज़ार हा दावा दारू के बाद भी कावेरी माँ नहीं बन पायी. तब,अजब सी हीनता की शिकार कावेरी ने नौकरी करने  की ज़िद पकड़ ली थी.बेहद ममता से समीरन ने कावेरी को समझाने की कोशिश की,

“ तब तो,मेरी दुनिया ही बिल्कुल सूनी हो जाएगी. सारे दिन की थकी हारी लौटोगी तो,मुझ से बात तक करने का समय नहीं होगा तुम्हारे पास.ये बँधी बँधाई नौकरी का ख़याल छोड़ दो”

                इसी बीच समीरन की माँ का देहांत हो गया.आशीष,नौकरी मिलते ही दूसरे शहर चला गया.रह गए दो प्राणी.समीरन की सलाह के मुताबिक़,कावेरी ने नए सिरे से पढ़ाई शुरू कर दी.फिर नियमित लाइब्रेरी भी जाने लगीं. शाम को दोनों पति पत्नी थोड़ा विश्राम करके सैर को निकल पड़ते.

        अचानक एक रात समीरन को जानलेवा  हार्ट अटैक आया..क्योंकि समीरन रिटायर होने से पहले ही अपंग हो गए थे इसीलिए उन्हें  दफ्तर की कई सुविधाओं से वंचित होना पड़ा था.पेंशन के थोड़े से रुपयों के सहारे,घर का किराया,समीरन की दवा दारू,पौष्टिक खानपान जुटाना नामुमकिन हो गया.चूँकि नौकरी की उम्र निकल चुकी थी,इसीलिए इस ट्यूशन को कावेरी ने,ईश्वर का वरदान माना था.

    ख़यालों में भटकती हुई वो इला के घर पहुँच गई थीं.

“ माँ, मैं तुम लोगों के साथ नहीं जाऊँगी. आंटी के पास रहूँगी” इला माँ से ज़िद कर रही थी.

“ पूजा की छुट्टियों में घूमने जा रही हो?”

“ नहीं दीदी,दरअसल उन्हें दिल्ली में बेहतर नौकरी का ऑफर मिला है.,अगले महीने चले जाएँगे. आपके लिए सोच कर  बुरा लग रहा है.इला भी आपको मिस करेगी”

हतबुद्धि,हत्त्वाक ,कावेरी ने जैसे कुछ सुना ही नहीं.आँखों के सामने समीरन की जीर्ण क्षीर्ण सी काया और प्रोटीनेक्स और मल्टीविटामिन की गोलियां घूम रही थीं.

    वापस लौटी तो समीरन सोए हुए थे. थका हारा निरुपाय आदमी!

“अरे तुम कब आयीं कावेरी? ठीक तो हो न?”

“ बिल्कुल ठीक हूँ.”

कावेरी ने समीरन की बगल में बैठते हुए कहा,

“ सुनो तुमने बहुत दिनों पहले,पढ़ने-लिखने के बारे में जो समझाया था न? उस समय तो मैंने कुछ नहीं कहा था लेकिन अब लगता है कि,शिक्षा,ज़िंदगी के उतार चढ़ाव को सहजता से कबूल करने की सीख देती है”

      न जाने कब,किराए के घर की खिड़की की राह,मुट्ठी भर चाँदनी,उस अँधेरे कमरे में दाखिल होकर कोने में बिछ गई और कावेरी समीरन की क्षीण काया से लिपट कर मुस्कुरा दीं

पुष्पा भाटिया

मेरा नाम मोनिका अग्रवाल है। मैं कंप्यूटर विषय से स्नातक हूं।अपने जीवन के अनुभवों को कलमबद्ध करने का जुनून सा है जो मेरे हौंसलों को उड़ान देता है।मैंने कुछ वर्ष पूर्व टी वी और मैग्जीन के लिए कुछ विज्ञापनों में काम किया है । मेरा एक...