Hindi Love Story: दिल्ली मेट्रो की भीड़ भाड़ भरी शाम थी। ऑफिस का समय समाप्त हो चुका था, लोग अपने-अपने ठिकानों की ओर लौट रहे थे। वही रोज़ की तरह, किरण भी मेट्रो में चढ़ी। उसके चेहरे पर थकान थी, लेकिन आँखों में गहराई और आत्मविश्वास की चमक थी ।
मेट्रो स्टेशन के एक कोने में खड़ा था एक नवोदित लेखक और पत्रकार आकाश, जो हर दिन मेट्रो की भीड़ में कुछ नया खोजने की कोशिश करता। उसकी नजर किरण पर पड़ी। साधारण-सी दिखने वाली वह लड़की, किताब पढ़ते हुए जैसे भीड़ से बिल्कुल अलग लग रही थी। हाथ में ‘गुनाहों का देवता’, आँखों में भावनाओं का संसार।
आकाश ने धीरे-धीरे हिम्मत जुटाई और पास आकर पूछा, “ये किताब… मेरी भी पसंदीदा है ये किताब।”
किरण ने मुस्कुरा कर देखा, “अच्छी किताबें अक्सर अच्छे लोगों को जोड़ देती हैं।”
बस, उस एक मुस्कान ने एक नई शुरुआत कर दी।
मेट्रो की वो छोटी-छोटी मुलाकातें उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गईं। कभी किताबों पर चर्चा, कभी कविताओं का आदान-प्रदान, कभी कॉफी की बात, कभी जिंदगी की उलझनों पर चर्चा तो कभी बस खामोश रहकर एक-दूसरे की आँखों में बातें करना। मेट्रो का सफर छोटा होता, पर भावनाओं का विस्तार दिन-ब-दिन बढ़ता गया।
आकाश ने एक दिन हिम्मत कर कहा, “ किरण, क्या तुम मुझसे मेट्रो के बाहर भी मिलोगी? मेट्रो में हम सफर करते हैं, लेकिन क्या हम ज़िंदगी का भी सफर साथ तय कर सकते हैं?”
किरण थोड़ी चुप रही। फिर उसने कहा, “ आकाश, प्यार भीड़ में नहीं, भरोसे में पनपता है। मुझे तुम्हारी आंखों में भरोसा दिखता है, चलो, एक कदम आगे बढ़ते हैं , मेट्रो से ज़िंदगी की ओर।”
समय बीतता गया। अब उनका रिश्ता मेट्रो की सीमाओं से बाहर आ चुका था। पार्क में टहलना, किताबों की दुकानों में साथ भटकना, चाय की छोटी दुकानों पर बैठकर लंबी बातें करना ,यह सब उनके प्यार की असली पहचान बन चुका था।
फिर एक दिन, उसी मेट्रो स्टेशन पर, जहाँ पहली बार मुलाकात हुई थी, आकाश ने किरण से कहा — “चलो आज भीड़ में नहीं, ईश्वर के सामने ये रिश्ता तय करें।”
किरण की आँखों में नमी और होंठों पर मुस्कान थी। भीड़ भरी मेट्रो में जन्मा एक रिश्ता, अब जीवनभर के सफर की ओर बढ़ चला था। सच है
कभी-कभी भीड़ में भी कोई अपना मिल जाता है, और मेट्रो की कुछ मिनटों की यात्रा, जीवनभर की कहानी बन जाती है।
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