Kark Sankranti 2024 Puja: हिंदू धर्म में, कर्क संक्रांति ज्योतिषीय और आध्यात्मिक दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण पर्व है। यह आमतौर पर जुलाई के मध्य में पड़ता है और सूर्य देव के कर्क राशि में प्रवेश का प्रतीक है। इस दिन को दक्षिणायन की शुरुआत के रूप में भी जाना जाता है। दक्षिणायन छह महीने की अवधि होती है, जिसमें सूर्य देव दक्षिण दिशा की ओर गति करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप दिन छोटे और रातें लंबी हो जाती हैं।
यह पर्व भारत के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न परंपराओं के साथ मनाया जाता है। उत्तर भारत में, लोग पवित्र गंगा स्नान करते हैं और दान-पुण्य का महत्व निभाते हैं। दक्षिण भारत में, भक्त भगवान शिव की पूजा करते हैं और भव्य रथ यात्रा निकालते हैं। पूर्वी भारत में, श्रद्धालु सूर्य देव की आराधना करते हैं और उद्यापन संस्कार संपन्न करते हैं। वहीं, पश्चिमी भारत में, भगवान विष्णु की पूजा के साथ ही धार्मिक सत्संग का आयोजन किया जाता है। कर्क संक्रांति का सार परोपकारिता और दान-धर्म के महत्व को रेखांकित करता है। यह पर्व हमें ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और सदाचरण के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। यह प्राकृतिक चक्र के परिवर्तन का प्रतीक भी है, जो हमें जीवन के चक्रव्यूह को स्वीकार करने और धर्म के मार्ग पर दृढ़ रहने का संदेश देता है।
कब मनाया जाएगा साल 2024 में कर्क संक्रांति का पर्व
16 जुलाई को कर्क संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा। यह पर्व सूर्य देव को समर्पित होता है, जब वे मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में प्रवेश करते हैं। ज्योतिष शास्त्र में इस राशि परिवर्तन का विशेष महत्व है। सूर्य देव को ग्रहों का राजा माना जाता है। इनकी उपासना सनातन शास्त्रों में विहित है। सूर्य पूजा करने से साधक को आरोग्य, सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है।
सूर्य ग्रह की स्थिति
ज्योतिष के अनुसार, कुंडली में सूर्य ग्रह की स्थिति व्यक्ति के जीवन के कई पहलुओं को प्रभावित करती है। यदि सूर्य ग्रह मजबूत हो तो जातक को अच्छा स्वास्थ्य, सफल करियर, आर्थिक संपन्नता और पिता से प्रेम प्राप्त होता है। वहीं, यदि सूर्य ग्रह कमजोर हो तो जातक को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ सकता है, जैसे कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, करियर में अड़चनें, आर्थिक तंगी और पिता-पुत्र के संबंधों में तनाव।
कर्क संक्रांति की पूजा विधि
सर्वप्रथम, सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को साफ करके उसे लाल रंग के कपड़े से सजाएं। लाल रंग सूर्य देव का प्रतीक माना जाता है। इसके बाद एक तांबे का लोटा लें और उसमें जल भरें। इस जल में आप लाल पुष्प, अक्षत (बिना पिसा हुआ चावल) और सुगंधित धूप डाल सकते हैं। अब इस तांबे के लोटे को सूर्य देव की प्रतिमा या चित्र के सामने रखें।
पूजा के दौरान, आप एक दीपक जलाएं और उसमें शुद्ध घी डालकर सूर्य देव को अर्घ्य दें। इसके बाद, सूर्य देव को गुड़ और ताजे फलों का भोग लगाएं। माना जाता है कि सूर्य को मीठा पदार्थ प्रिय होता है। भोग लगाने के पश्चात, आप “ॐ सूर्याय नमः” मंत्र का जाप कर सकते हैं या सूर्य स्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं। अपनी मनोकामनाओं को ध्यान में रखते हुए सूर्य देव से प्रार्थना करें और उनसे जीवन में सफलता, स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद मांगें।
