इन्हीं से जलचर, थलचर और नभचर प्राणियों का जीवन भी चलता रहता है, इसीलिए हिंदू धर्म में वन की संपदाओं को संवृक्षित रखने के लिए सभी तरह के उपाय बताए गए हैं, वन की संपदाएं हिंदू धर्म के लिए पूजनीय है। किंतु आज का मानव वन को नष्ट करने में लगा है तो सोचे मानव भी कब तक बचा रह सकता है?

जब से धरती पर वृक्षों का अस्तित्व रहा है तब से आज तक वृक्षों ने अपने धर्म का ईमानदारी से पालन किया है, ईश्वर ने उन्हें जो काम सौंपा था उसे वे बखूबी निभाते रहे हैं, वृक्ष ही है ईश्वर के सच्चे उपासक। सभी प्राणियों का जीवन संभालते हुए, प्रदूषण को रोकने और जलवायु एवं वातावरण के संतुलन को बनाए रखने का कार्य करते हुए भी वे सदा ईश्वर की प्रार्थना में लीन रहते नजर आते हैं। हिंदू धर्म में प्रकृति के सभी तत्त्वों की पूजा और प्रार्थना का प्रचलन और महत्त्व है,, क्योंकि हिंदू धर्म मानता हैं कि प्रकृति ही ईश्वर की पहली प्रतिनिधि है, प्रकृति के सारे तत्त्व ईश्वर के होने की सूचना देते हैं, इसीलिए प्रकृति को देवता, भगवान और पितृ माना गया है।

हिंदू धर्म का वृक्ष से गहरा नाता है, हिंदू धर्म को वृक्षों का धर्म कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि हिंदू धर्म में वृक्षों का जो महत्त्व है वह किसी अन्य धर्म में शायद ही मिले, इस ब्रह्मïांड को उल्टे वृक्ष की संज्ञा दी है, पहले यह ब्रह्मïांड बीज रूप में था और अब यह वृक्ष रूप में दिखाई देता है, प्रलय काल में यह पुन: बीज रूप में हो जाएगा। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति एक पीपल, एक नीम, दस इमली, तीन कैथ, तीन बेल, तीन आंवला और पांच आम के वृक्ष लगाता है, वह पुण्यात्मा होता है और कभी नरक के दर्शन नहीं करता, इसी तरह धर्म शास्त्रों में सभी तरह से वृक्ष सहित प्रकृति के सभी तत्त्वों के महत्त्व की विवेचना की गई है।

यज्ञ में वृक्षों की लकड़ी का प्रयोग

हिंदू धर्मानुसार पांच तरह के यज्ञ होते हैं जिनमें से दो यज्ञ-देवयज्ञ और वैश्वदेवयज्ञ प्रकृति को समर्पित है, दोनों ही तरह के यज्ञों का वैज्ञानिक और धार्मिक महत्त्व है, देवयज्ञ से जलवायु और पर्यावरण में सुधार होता है तो वैश्वदेवयज्ञ प्रकृति और प्राणियों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का तरीका है।

हवन करने को ‘देवयज्ञ कहा जाता है, हवन में सात पेड़ों की समिधाएं (लकड़ियां) उपयुक्त होती हैं। आम, बड़, पीपल, ढाक, जांटी, जामुन और शमी, हवन से शुद्धता और सकारात्मकता बढ़ती है। रोग और शोक मिटते हैं। इससे गृहस्थ जीवन पुष्ट होता है। हवन करने के लिए किसी वृक्ष को काटा नहीं जाता ऐसा करने वाले धर्म विरुद्ध आचरण करते हैं, जंगल से समिधाएं बिन कर लाई जाती है, अर्थात जो पत्ते, टहनियां या लकड़िया वृक्ष से स्वत: ही धरती पर गिर पड़े हैं उन्हें ही हवन के लिए चयन किया जाता है। वैश्वदेवयज्ञ को भूत यज्ञ भी कहते हैं, पंच महाभूत से ही मानव शरीर है, सभी प्राणियों तथा वृक्षों के प्रति करुणा और कर्त्तव्य समझना उन्हें अन्न-जल देना ही भूत यज्ञ या वैश्वदेव यज्ञ कहलाता है, अर्थात जो कुछ भी भोजन कक्ष में भोजनार्थ सिद्ध हो उसका कुछ अंश उसी अग्नि में होम करें जिससे भोजन पकाया गया है।

फिर कुछ अंश गाय, कुत्ते और कौवे को दें। जो व्यक्ति ऐसा करता है वह जीवन में शांति और सुख पाता है तथा सभी तरह की आपदाओं से बचा रहता है, देखने में उक्त दोनों ही यज्ञों की प्रक्रिया सामान्य-सी नजर आती है, किंतु यह मनुष्य के बाहरी और आंतरिक जीवन के लिए बहुत महत्त्व रखती है।

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