आज सुबह ही मेरी उससे रास्ते में भेंट हो गई । दोनों ने राम राम कहा और बात करने लगे।

मेरे पूछने पर कि कैसी हो, उसने कहा ‘ मैं ठीक हूँ मैंने आज घर में काम भी किया और अब नहा कर मंदिर जा रही हूं’ ।

इतना कह कर वह मुस्कुरा दी और उसके टूटे पीले दांत दिखने लगे। वह आगे बोली ‘अब मेरी बांह भी नहीं हिलती’ जो कि बात करते हुए उसके उत्तेजित होने के कारण अब ज़ोरों से हिलने लगी थी।

मैंने उसे ठीक से दवाई लेने को कहा और अपने रास्ते निकल पड़ी।वह भी मंदिर की ओर चली गई।

शांति एक अचछे परिवार की बेटी थी पर शादी के बाद कुछ ऐसा घटा कि अपना मानसिक संतुलन खोबैठी। माँ ने बेटी की हालत देख कर खाट पकड़ ली।

उसे रात दिन उसके भविष्य का गम खाये जा रहा था। कौन उसे संभालेगा उसके जाने के बाद।

शांति के दो भाई थे जो अपने परिवारों के साथ अपने अपने घर में रहते थे। मां ने सोचा मेरे बाद इसका क्या होगा, इसलिये उसने अपना मकान अपनी बेटी शांति के नामकर दिया।

मां की यह बात उसके बेटों को नहीं सुहाई। कुछ समय बाद बूढ़ी मां चल बसी और शांति इस दुनिया में अकेली रह गई।

उसके बडे भाई ने एक कमरा उसके पास छोड कर बाकी मकान किराये पर दे दियाजिसका किराया वह वसूल कर लेता था।दोनो भाइयों में मकान को लेकर मनमुटाव बढता चला गया और आपस में आरोप प्रत्यारोप होने लगे।

शांति के भूखे मरने की नौबत आ गई तो वह बडे भाई के घर आकर दरवाजे पर बैठी रहती और भूखी होने के कारण गाली गलौज करने लगती।

उसकी दवाई भी इस बीच बंद हो चुकी थी, इसलिये उसकी विक्षिप्तता भी बढ गयी थी। वह गली के बच्चों को भी मारने दौड़ती, कभी सड़क पर ही धूप में लेट जाती।

इस बीच दोनों भाइयों में कुछ सहमति बनी और उन्होंने उसका फिर से इलाज करवाना शुरू कर दिया। वह बेचारी उनके बहकावे में आ गयी और उन्होंने उसका मकान बेच दिया।

अब बडे आई ने अपने घर के ऊपर एक कमरा उसे रहने के लिए दे दिया और उसे खाना भी देने लगा।

पड़ोसियों के बार बार धमकाने, समझाने पर उसका इलाज भी उसने पुन: शुरू करवा दिया।  पर यह व्यवस्था भी ज़्यादा दिन नहीं चली। बड़े भाई ने अपने लिए अब एक नया मकान अपने लिये ख़रीद कर शांति को बिना कुछ कहे वहां शिफ़्ट कर लिया। 

शांति को इस घर का कुछ पता नहीं था। उसके खाने का प्रबंध भाई ने एक टिफ़िन वाले से करवा कर अपने कर्तव्य का निर्वहन समझ लिया। वह फिर सड़क पर आ गई। कभी खाना कभी पानी मांगने आ जाती थी।

उसके भाई से सबने बात करने की कोशिश की पर वह उसे किसी भी हालत में अपने घर ले जाने को तैयार नहीं था। शांति की हालत को देखते हुए वृद्धाश्रम वाले भी उसे रखने को तैयार न थे।

पड़ोसियों के कहने का यह परिणाम हुआ कि उसका भाई कम से कम एक बार शांति के पास आता था। उसकी सहायता के लिए एक काम वाली भी रख दी थी।

शांति भी अब कुछ सहज हो चली थी ,पर बहुत एकाकी हो गयी थी। उसे अपने भाई का आना बहुत अचछा लगता था। प्राय शाम के समय दोनों बेंच पर बैठ बात करते दिख जाते थे, धीरे धीरे दवाई और भाई के स्नेह का असर होने लगा और वह सामान्य होने लगी थी।

आज उसकी बातों से लगा कि शायद अब वह अपने को संभालने लायक हो गयी है।