Hindi Story: मिश्रा जी का बेटा जब घर का राशन लेने के लिए बाजार जाने लगा तो उसने अपने पिता से कहा कि जल्दी से घर का सामान लाने के लिये 5000 रुपये दे दो। मिश्रा जी ने कहा कि घर का सामान लेने जा रहे हो या कि नया घर खरीदने। हमारे जमाने में तो 10-15 रुपये में घर का सारा किराना, दाल, सब्जी और बाकी का सभी जरूरी सामान आ जाता था।
मिश्रा जी के बेटे ने कहा कि पापा आज के समय में वो सब कुछ मुमकिन नहीं है क्योंकि अब हर दुकान में कैमरे लगे होते हैं। दुकान से बाहर निकलने से पहले गेट पर गार्ड भी अच्छे से सारा सामान चैक करता है। एक भी चीज थैले में फालतू निकल आये तो झट से पुलिस थाने के दर्शन करवा देते हैं। मिश्रा जी ने बेटे से कहा कि शक्ल से क्या मैं तुम्हें कोई उठाईगीर लगता हूं जो मुझ से इस तरह की बातें कर रहा है। बेटा अगर शक्ल अच्छी न हो तो कम से कम बात तो अच्छी करनी चाहिए। इससे पहले कि बाप-बेटे की तू-तू मैं-मैं में और अधिक गर्मी बढ़ती मिश्रा जी की पत्नी दोनों को शांत करने के लिये रसोई घर से दौड़ कर अंदर कमरे में आ गई।
पत्नी को देखते ही मिश्रा जी ने उससे कहा कि तुम तो मुझे हर समय अच्छा बनने का उपदेश देती रहती हो, लेकिन आज कल ’अच्छे बनने का लेबल’ लगा कर जीने का जमाना ही नहीं है। जब कभी भी किसी से कोई अच्छाई की बात करो तो वो उसका उल्टा मतलब निकाल कर तुम्हारे सिर पर बुराई मढ़ देता है। मिश्रा जी की पत्नी कुछ बोलने लगी तो उन्होंने उसे चुप करवाते हुए कहा कि तुम नहीं समझ सकती कि आज के इस दौर में अच्छा बनना या किसी के साथ अच्छाई करना कितना तकलीफदेह हो गया है। अब घर की बात ही ले लो, जब तक मैं हर किसी को डांट कर रखता रहता था तो नाश्ता-पानी सब कुछ समय पर मिल जाता था। परंतु जब से तुम्हारा कहना मान कर अच्छा आदमी बनने की कोशिश शुरू की है, बाहर वाले तो क्या घरवालों ने भी मेरी परवाह करनी छोड़ दी। आज तो मालूम नहीं, सुबह-सुबह किस मनहूस का चेहरा देखा था कि सुबह से यह टाइम हो गया है अभी तक चाय का एक कप तक नसीब नहीं हुआ।
मिश्रा जी की पत्नी ने तनाव को थोड़ा कम करने की नीयत से कहा कि आपको कितनी बार कहा है कि बेडरूम से आईना हटा दो, लेकिन आप मेरी बात सुनते ही कहां हो? लेकिन इस बात ने उल्टा आग में घी डालने का काम किया और मिश्रा जी पूर्ण रूप से अच्छाई का मुखौटा उतार कर और भी बुरी तरह से भड़क गये। उन्हें देख कर ऐसा लगने लगा जैसे किसी ने सोते हुए नाग को उठा दिया हो। कुछ देर तो मिश्रा जी की पत्नी ने उनकी हर बात सुन ली। उसके बाद उसने कहना शुरू किया कि जिस तरह आप कड़क थानेदार की तरह घर चलाना चाहते हो उस तरह से जीवन नहीं चल सकता। आप तो बरसों से कारोबार कर रहे हो, इतना तो आप भी समझते होंगे कि किसी भी धातु से कोई भी खूबसूरत मूर्ति बनाने के लिये उसका नरम होना जरूरी होता है, इसलिये उसे पहले पिघलाया जाता है। इसी तरह कामयाब व्यक्तित्व बनने के लिये हमारे जीवन में नम्रता और अच्छाई का होना जरूरी है। इंसान पढ़ाई-लिखाई करके एक अच्छा डाक्टर, वकील, इंजीनियर, अध्यापक यहां तक की जज भी बन सकता है। परंतु सबसे जरूरी है एक अच्छा इंसान बनने की। अच्छा इंसान किसी भी पद पर आसीन हो वो अपनी ड्यूटी नेक नियति से निभा पाता है।
हम जो कोई काम करते हैं हमें उसके बारे में अच्छे से सोच लेना चाहिये कि इसमें अच्छाई और बुराई कितनी है क्योंकि अच्छाई तो हमें दिखाई देती है, परंतु बुराई अधिकतर छिपी रहती है जो बाद में हमें बहुत नुकसान पहुंचाती है। केवल सुंदर पोशाक पहनने से ही व्यक्तित्व नहीं निखरता बल्कि सुंदर विचार ही हमारे व्यक्तित्व को अच्छा बनाते हैं। हमारा मन ही अच्छे और बुरे विचार एकत्र करता है। हमारे शरीर में मन ही सबसे महत्त्वपूर्ण रोल अदा करता है।
मन जैसा कहता है हमारी जीभ उसी तरह की भाषा बोलती है, जो कुछ मन कहता है उसी चीज को हम खाते हैं, फिर चाहे उस चीज को खाने से हमारी सेहत ही क्यूं न खराब हो जाये। अगर इसी बात को यूं कहा जाये कि हमारा हर अच्छा-बुरा कर्म हमारा मन ही करता है तो गलत न होगा। हमारी आंखें भी सिर्फ उसी वस्तु को देखना पसंद करती है जिसे हमारा मन चाहता है। जिस समय हमारा मन सो जाता है, उस समय हमारे हाथ-पैर, शरीर के सभी अंग भी सो जाते हैं। इस तरह से यह माना जा सकता है कि सारे शरीर का राजा हमारा मन ही है। इसलिये मन में अच्छाई की फसल उगाने के लिये हमें सिर्फ उतने दिमाग का इस्तेमाल नहीं करना चाहिये जितना की हमारे पास है बल्कि उसे भी इस्तेमाल करना चाहिये जो हमें अच्छे लोगों से उधार मिल सकता है। अच्छाईयां और बुराईयां कहीं और से नहीं आती बल्कि हमारे मन से ही अच्छाईयां और बुराईयां पैदा होती है। जो कोई अपने मन को काबू में कर लेता है मन उस पर हावी नहीं हो पाता। प्रत्येक व्यक्ति की अच्छाईयों के लिये उसके नेक विचार ही सभी तालों की चाबी होती है।
पत्नी के मुख से इस तरह की ज्ञान-ध्यान की बातें सुनकर एक बार तो मिश्रा जी भी चौंक गये। उन्होंने हैरान होकर उससे पूछा कि तुमने यह अच्छाई-बुराई के बारे में इतनी खोज कहां से की। मिश्रा जी की पत्नी ने कहा कि आप तो अच्छे-बुरे का फर्क समझे बिना हर किसी को खरी-खरी सुनाने और सभी को एक ही लाठी से हांकने में विश्वास रखते हो। मैं चौका-बरतन करने के साथ अपने कान और आंख भी खुले रखती हूं। जहां तक अच्छाई और बुराई में फर्क समझने का ताल्लुक है तो मैं तो इतना ही जान पाई हूं कि जिस प्रकार गूंगा गुड़ खाकर उसका स्वाद नहीं बता सकता केवल उसे अनुभव कर सकता है उसी तरह ज्ञानी लोग अच्छाईयों से मिलने वाली आन्तरिक खुशी को महसूस तो कर सकते हैं परंतु उसका बखान नहीं कर पाते। पत्नी की यह बात सुन कर मिश्रा जी को यह कहना पड़ा कि हम तो आज तक खुद को ही सबसे बड़ा गुरु मानते थे, लेकिन आज यह कहना पड़ेगा कि गुरु गुड़ ही रह गया और चेला शक्कर हो गया। मिश्रा जी की पत्नी की जोरदार दलीलें सुनने के बाद जौली अंकल को भी यह विश्वास हो गया है कि यदि कोई व्यक्ति अच्छाईयों को दूसरों में और बुराईयों को खुद में तलाश करना सीख ले तो यही उसकी सबसे बड़ी अच्छाई होगी। अच्छाईयों को दूसरों में और बुराईयों को खुद में तलाश करो, यही आपकी सबसे बड़ी अच्छाई है।