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Hindi Story: मिश्रा जी चाय की चुस्कियों के साथ अखबार की गर्मागर्म खबरें देख रहे थे। अखबार के पन्ने पलटते हुए उनकी नज़र एक खबर पर पड़ी कि शहर में बहुत बड़ा बम धमाका हुआ है और कई लोग घायल हो गये। उन्होंने झट से पत्नी को आवाज देकर इस खबर के बारे में बताया। पत्नी ने आगे से सवाल करते हुए कहा कि पूरी खबर ठीक से तो पढ़ कर बताओ कि यह बम धमाका हुआ कैसे? मिश्रा जी ने अखबार आगे पढ़ते हुए पत्नी को बताया कि एक व्यक्ति को बाजार में एक चिराग जैसी कोई चीज दिखाई दी और वो उसे एक थैले में डाल कर अपने घर ले गया। घर जाकर उसने सोचा यह जरूर अलाउद्दीन का ही चिराग होगा। अब इसको रगड़ने से एक जिन्न पैदा होगा और मेरे सभी कष्ट दूर कर देगा।

अब आज के बाद गरीबी और मजबूरी से जीने के दिन खत्म हुए। इन्हीं ख्यालों में खोये हुए उस व्यक्ति ने उस चिराग को जोर-जोर से इधर-उधर रगड़ना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में उस चिरागनुमा वस्तु से बहुत जोर का बम धमाका हुआ। मिश्रा जी की पत्नी ने कहा कि यह तो उस गरीब के साथ बहुत बुरा हुआ। बेचारा खामख्वाह ही धोखे में मारा गया। मिश्रा जी ने कहा कि अब कोई जानबूझ कर बेवकूफियां करने की ठान ले तो ऐसे लोगों का तो भगवान भी भला नहीं कर सकते। इतना तो हर कोई जानता है कि यह चिराग और जिन्न जैसी काल्पनिक बातें सिर्फ किताबों और कहानियों में ही देखने को मिलती है। इनका वास्तविक जीवन में कोई स्थान नहीं होता। मुझे तो समझ नहीं आता कि लोग इतनी पढ़ाई करने के बाद भी ऐसी अज्ञानता भरी बातें करके क्या साबित करना चाहते हैं?

अभी इससे पहले कि मिश्रा जी अखबार में छपी हुई बाकी खबरों की बाल की खाल निकालते घर के फोन की घंटी बजने लगी। मिश्रा जी ने अखबार से ध्यान हटा कर फोन उठाया तो दूसरी ओर से उनके बेटे के दोस्त की आवाज सुनाई दी। बेटे का दोस्त काफी परेशान और गुस्से में लग रहा था। उसने मिश्रा जी से उनके बेटे से बात करवाने के लिये कहा। मिश्रा जी ने बताया कि उनका बेटा तो अभी मंदिर गया हुआ है जब वो वापिस आयेगा तो उससे बात करवा देंगे। इसके बाद मिश्रा जी अखबार की खबरों में ऐसे खोये कि अपने बेटे को संदेशा देना ही भूल गये। शाम को मिश्रा जी के बेटे का दोस्त एक क्रेन की मदद से इनकी कार दरवाजे पर लेकर खड़ा था। मिश्रा जी ने उससे कहा कि तुम तो कल इस कार को लेकर कहीं बाहर जाने वाले थे। बेटे के दोस्त ने गुस्से में कहा कि पता नहीं आपके बेटे ने न जाने किस जन्म का बदला मेरे साथ लिया है। मैंने एक-दो दिन के लिये अपने एक रिश्तेदार की शादी में जाने के लिये आपकी कार मांगी थी, लेकिन कल से लेकर अभी तक उस वक्त को कोस रहा हूं जब मैं यह कार आपसे लेकर गया था।

आपकी इस कार की वजह से एक तो हमारे सारे सफ़र का मज़ा किरकिरा हो गया। दूसरा परेशानी झेलने के अलावा अब तक इस कार को यहां लाने में 3000 रुपये भी खर्च हो गये हैं। मिश्रा जी ने उससे पूछा कि ऐसी क्या दिक्कत हो गई जो इतना दुःखी हो रहे हो? बेटे के दोस्त ने कहा कि कल जब मैं आपकी यह कार लेकर कुछ ही दूर गया तो मैंने देखा कि इसमें पेट्रोल कम है। मैंने पेट्रोल पम्प पर कार रोक कर इसकी टंकी पूरी तरह से भरवा दी। टंकी भरवाने के बाद अभी कुछ ही रास्ता तय किया था कि यह कार सड़क के बीचों-बीच बंद हो गई। बहुत देर परेशान होने के बाद मुझे एक मिस्त्री मिला, वो मुझ से काफी सारे पैसे भी ले गया और कार भी ठीक नहीं कर पाया। फिर अपने कुछ दोस्तों को फोन करके किसी तरह शहर से एक अच्छे मैकेनिक को बुलाया। उसने थोड़ा बहुत चैक करने के बाद बताया कि यह कार तो डीजल से चलती है, आपने इसमें पेट्रोल भरवा दिया है, अब यह कैसे चलेगी? अब तो इसका सारा पेट्रोल निकाल कर अच्छे से इंजन की सफाई करनी होगी, उसके बाद ही यह कार चल पायेगी। मेरे पास तो इसको वापिस लाने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा था।

मिश्रा जी अपने बेटे के दोस्त का यह अंगारे उगलने जैसा व्यवहार देख कर हैरान हो रहे थे कि एक तो खुद इतनी बड़ी भूल करके हमारी गाड़ी बिगाड़ दी है और फिर अपनी गलती मानने की बजाए उल्टा सारा इल्ज़ाम भी हम लोगों पर लगा रहा है। इतने में मिश्रा जी के बेटे ने घर आकर सारा किस्सा सुना तो वो अपने दोस्त को जली-कटी सुनाने के साथ उस पर हाथ उठाने लगा। मिश्रा जी ने अपने बेटे से कहा कि किसी को समझाने के लिए कड़ी दृष्टि का प्रयोग करना तो ठीक है, परन्तु किसी पर हाथ उठाना तुम्हारी ही कमजोरी को दर्शाता है। वैसे भी गुस्से के कुछ पलों की गलतियों की सजा इंसान को सारी उम्र भुगतनी पड़ती है, इसलिये तुम मन मैला न करो। मिश्रा जी ने बेटे के दोस्त से कहा कि मैं तो तुम्हें बहुत ही ज्ञानवान व्यक्ति समझता था, लेकिन तुम तो बिल्कुल अक्ल के अंधे निकले। तुम तो उन लोगों की तरह हो जो खुद तो कुछ कर नहीं पाते, परंतु अपने आधे-अधूरे ज्ञान से दूसरों को सिखाने और समझाने लगते हैं।

बेटा यदि किसी विषय के बारे में पूर्ण रूप से ज्ञान न हो तो पहले उसके बारे में अच्छे से जानकारी लेने में कोई हर्ज नहीं होता। जब तक हमारे मन में किसी भी ज्ञान को पाने का संकल्प नहीं होता, हम कोई भी काम ढंग से नहीं कर पाते। जीवन में किसी भी चीज को बदलने के लिये जरूरत होती है एक मात्र अच्छे फैसले की। दूसरे लोगों के गुणों से ईर्ष्या करने की बजाय उनसे कुछ सीख लेने का भाव रखना ही मानवता हैं। मिश्रा जी के विचारों से यह बात तो बिल्कुल साफ हो जाती है कि विद्या और ज्ञान दुनिया के सबसे उत्तम पदार्थों में से एक है। इनकी खासियत यह है कि इनको बांटने से यह कम नहीं होते बल्कि बढ़ते ही है। आप चाहे कहीं भी जायें ज्ञान हमेशा आपके साथ रहता है। कोई लाख चाह कर भी इन्हें आपसे चोरी नहीं कर सकता। अंत में जौली अंकल की राय सिर्फ इतनी-सी है कि इंसान चाहे तो ज्ञान के सहारे जीवन में किसी भी ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है, परंतु अज्ञानता तो हर किसी को अंधकारमय जीवन जीने के लिये विवश कर देती है।

हम सभी जानते हैं कि हम क्या है, लेकिन हम यह नहीं जानते कि हम क्या-क्या कर सकते हैं।