samajhadaar aaraadhy
samajhadaar aaraadhy

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

लॉकडाउन में आराध्य कुलचा, समोसे, बर्गर, पिज्जा का स्वाद भूल गया था, कोरोना के भय से। अब वह मां के कहे अनुसार ही चलता। मां सुबह उठकर उसे काढ़ा पिलाती तो वह पी लेता। मां भोजन के पश्चात् गर्म पानी देती तो आराध्य अपने आपको स्वस्थ रखने के लिए उसे भी पी लेता।

अपने बच्चे के व्यवहार से मां बहुत खुश थी। जो बच्चा कभी काढ़ा, गर्म पानी नहीं पीता था, आज सब ले रहा है। इसका अर्थ है कि हर बुराई के भीतर अच्छाई भी छिपी होती है।

वह सोचती सच अन्धकार के भीतर प्रकाश की लालिमा भी होती है। जून का महीना बीत रहा है। सबसे बड़ा अचम्भा मां को तब हुआ जब बाजार से लाई कुल्फी को आराध्य खाने से मना कर देता है। उसने अपनी मां को डांटा, “क्या हो गया है मां आपको? कुल्फी खाने का अर्थ है कोरोना को निमंत्रण। आप इतना समझदार होकर मुझे कुल्फी खिलाना चाहती हैं?”

मां अपने कार्य से खिसियाती हुई बोली, “ऐसा तो मैंने इसलिए सोचा था कि तुम्हारा मन कर रहा होगा। माफ कर दो बेटा।”

आराध्य बोला, “मा! आपका बच्चा लालची तो है पर इतना भी नहीं कि बीमारियों को ही आमंत्रण दे।”

मां पुत्र की समझदारी पर फूले नहीं समाई।

सुबह उसे बादाम और रात को सोते समय च्यबनप्राश खाने को मिलता। बच्चा खूब प्रसन्न था। अब विद्यालय जाने का काम भी नहीं था। घर में ही गूगलमीट पर पढ़ाई होती।

आराध्य को चलना कम पसन्द था, बिस्तर पर बैठ ही वह काम करता। वहीं खाता और टी.वी भी देखता। मां ने उसके पापा से कहा, “इसे व्यायाम करवाया करें, नहीं तो यह मोटा हो जाएगा।

अब उसे जल्दी उठाया जाने लगा। जब उसे उछलने को कहा जाता वह नहीं उछलता, बस रोने लगता। वह पांव दर्द की शिकायत करने लगा।

मां ने उसका पांव देखा तो उसमें दो जगह से सख्त कीलें (सख्त चमड़ी) बनी थीं। वह घबरा गई।

पापा ने समझाया, “कोई बात नहीं डॉक्टर को दिखाते हैं।”

पर समस्या यह थी कि कोरोना में अस्पताल कैसे जाया जाए।

किसी ने उन्हें मन्नत मांगने को कहा। आराध्य के माता-पिता ने बच्चे की तरफ से ईश्वर की आराधना की। साथ में हर दूसरे दिन एक कोरन कैप डॉक्टर से लेकर उसकी कीलों पर लगाते हैं। तीन महीने में बच्चा स्वस्थ हो गया। प्रतिदिन बहुत सारा गंदा रक्त उन कीलों से निकलता, पर आराध्य ने हिम्मत नहीं हारी और सफलता भी पाई। कभी जलेबी बनाने का अभ्यास किया तो कभी केक बनाने का। अपनी मां से कहता, “काश! विद्यालय खुलते ही नहीं। हमें गूगलमीट में कक्षाएं लगाने में मजा आता है।”

आज कक्षा कार्य को निपटाकर आराध्य दोपहर को सो गया। उसे सपना आया कि पुनः विद्यालय खुल गए हैं। हम सब दोस्त खूब मजे से मैदान में खेल रहे हैं। प्रार्थना सभा में उसकी बारी सुविचार बोलने की है। कक्षा में बैठ प्रतियोगिता में हिस्सा ले रहा है। सभी दोस्त मिल-बांट खा रहे हैं।

अचानक उसका सपना टूट गया। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।

मां ने जब आंसू देखे तो वह बोली, “क्या हुआ बेटा?”

आराध्य बोला, “मां ईश्वर से प्रार्थना करो, कोरोना का संकट टल जाए और हम बच्चे विद्यालय जा पाएं। विद्यालय में जो आनन्द है वह कहीं नहीं।”

“हां बेटा। चलो, हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं।” मां बोली।

आराध्य को अब बहुत सारी प्राकृतिक दवाइयों का भान हो चुका है। उसे अमरबेल, गलोय, अपामार्ग, दालचीनी सबकी पहचान हो चुकी है। वह प्रकृति से प्रेम करने लगा है। आंवले का स्वाद उसे अब बेहद प्रिय है।

वह मां से बोला, “मां, कोरोना बुरा नहीं है। इसने हमें बहुत कुछ सिखाया। यदि यह नहीं आता तो हम अपनी प्रकृति मां के करीब कैसे जाते? हम यहां-वहां थूकते रहते थे। धूल जमी मिठाइयां खा लेते थे। साफ-सफाई का भी ध्यान नहीं रखते थे। पर आज हम बार-बार हाथ धोते हैं। दूरी बनाकर चलते और बैठते हैं। हमें खेतों में घूमने का भी मौका मिला है। पहले तो हमें खेत क्या होते हैं मालूम ही नहीं था। सब्जी उगाना भी पापा ने मुझे सिखाया। मां अब मुझे थोड़ा-बहुत खाना पकाना भी तो आ गया है! कोरोना ने मुझे और भी सुन्दर बना दिया है।”

मां उसके सिर पर हाथ फेरती हुई बोली, “हां बेटा! हर परिस्थिति हमें सीख देती है। बस हमें डर त्यागकर समझदारी से उसका सामना करना चाहिए।”

आराध्य मां से लिपट गया और बोला, “बस, अब प्रार्थना करो कोरोना जल्दी से सदा के लिए हमारी धरती को छोड़कर चला जाए।”

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’