Hindi Story: मांगेराम शाम को अपनी फैक्ट्री का कामकाज निपटा कर घर आये तो पत्नी से पूछा कि आज खाने में क्या बना रही हो? पत्नी ने कहा-‘आप जो चाहो वो ही बना देती हूं।’ मांगेराम जी ने कहा कि कई दिन से दाल-चावल नहीं खाये, आज तुम दाल चावल ही बना लो। पत्नी ने कहा कि अभी परसों ही तो आपने दाल-चावल खाये थे। मांगेराम जी ने कहा-‘फिर घीया-तोरी बना लो।’ पत्नी ने नाक-मुंह टेढ़ा करते हुए कहा कि आप तो अच्छे से जानते हो कि आपके तीनों बेटे यह सब कुछ पसंद नहीं करते।
मांगेराम जी ने कहा-‘फिर तुम ऐसा करो की बहुत दिन से घर में मीट-मुर्गा नहीं बना, आज बढ़िया मसालेदार नॉनवेज खाना ही बना लो।’ अब पत्नी ने अपनी नाक सिकोड़ते हुए कहा कि आप तो अच्छे से जानते हो कि मुझे नॉनवेज खाने से कितनी एलर्जी है, फिर भी आप ऐसी बातें क्यूं कर रहे हो? आखिर तंग आकर मांगेराम ने कहा कि यदि कुछ नहीं बना सकती तो फिर आलू के परांठें ही बना दो। अब मांगेराम की बीवी बोली कि आप भी कभी-कभी बहुत मज़ाक करने लगते हो, भला रात को परांठें कौन खाता है? आखिर में मांगेराम जी को गुस्सा होकर यह कहना पड़ा कि भूख से मेरी जान निकल रही है। अगर कुछ और समझ नहीं आता तो बैंगन का भर्ता ही बना दो। सुनते ही पत्नी ने कहा कि आज घर में बैंगन नहीं है। मांगेराम ने माथे पर हाथ मार कर दुःखी होते हुए कहा कि तुम आज खाना रहने ही दो, मैं भूखा ही सो जाता हूं। इनकी पत्नी ने प्यार जताते हुए कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है कि मेरे होते हुए आप बिना खाना खाए सो जाओ। मांगेराम को फिर एक उम्मीद नजर आई और उन्होंने पत्नी से पूछा कि अच्छा तुम ही बताओ की आज खाने में क्या खिलाओगी। अपने चेहरे पर लंबी-सी मुस्कराहट बिखरते हुए पत्नी ने कहा कि घर में खाना तो वही बनेगा जो तुम चाहोगे।
पत्नी के इस व्यवहार से चिढ़ते हुए मांगेराम जी ने कहा कि आज मैं तुम से एक बहुत ही जरूरी विषय पर बात करना चाहता था, लेकिन तुम ने आते ही खाने के मामले में मुझे ऐसा उलझा दिया है कि मैं असल बात को ही भूल गया हूं। अब पत्नी ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा कि क्या फैक्ट्री में कोई दिक्कत आ रही है। मांगेराम जी ने कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है, जैसा कि तुम जानती हो कि पिछले कुछ समय से मेरी सेहत ठीक नहीं रहती। इसलिये मैं सोचता हूं कि अपने सारे कारोबार की जिम्मेदारी अपने बेटों को सौंप दूं। लेकिन इन लोगों की हरकतों को देख कर मैं यह नहीं तय कर पा रहा कि मेरा इतना बड़ा और मेहनत से बनाया हुआ कारोबार अच्छे तरीके से कौन संभाल सकता है।
मांगेराम की परेशानी भरी बातें सुन कर घर के एक कोने में बैठी उनकी बूढ़ी मां ने कहा कि बेटा अगर तुम मेरी बात मानो तो अपने सबसे छोटे बेटे को तुम सारी जिम्मेदारी बेफिक्र होकर सौंप सकते हो। मांगेराम ने हैरान होकर अपनी मां से कहा कि तुम न तो इनकी पढ़ाई-लिखाई के बारे में कुछ जानती हो, न ही तुम्हें मेरी फैक्ट्री के बारे में कुछ मालूम है, फिर भी इतने विश्वास से कैसे कह रही हो कि घर का सबसे छोटा बेटा ही मेरे काम-धंधे को संभालने के लिये सबसे काबिल है। मांगेराम की मां ने कहा कि अभी थोड़ी देर पहले तुम्हारे तीनों बेटों ने यहां बरामदे में बैठकर दो-दो केले खाए थे। तुम्हारे सबसे बड़े बेटे ने केले खाकर उसके छिलके सड़क के बीच में फेंक दिये थे। बीच वाले बेटे ने केले खाकर छिलके कूड़ेदान में डाल दिये थे जबकि सबसे छोटे बेटे ने अपने दोनों केले खाने के बाद उसके छिलके एक गाय को खिला दिये। तुम्हारे बेटों का यह आचरण मैंने पहले भी कई बार देखा है। बस इसलिये मुझे लगा कि इन तीनों में से सबसे अधिक बुद्धिमान और विचारशील तुम्हारा सबसे छोटा बेटा ही है। मुझे पूरा भरोसा है कि यदि तुम अपने कामकाज की जिम्मेदारी अपने छोटे बेटे को देते हो तो वो ही सबसे अधिक कामयाब होगा।
मांगेराम ने अपनी मां को बताया कि मेरा बड़ा बेटा किसी भी प्रकार का सामान हो उसे बेचने में बहुत चुस्त है जबकि सबसे छोटा बेटा अभी व्यापार की इन बारीकियों के बारे में कुछ नहीं जानता। अनपढ़ लेकिन जिंदगी का तजुर्बा रखने वाली मां ने कहा- ‘बेटा जहां तक पैसे कमाने की बात है तो यह कभी मत भूलना की आप चाहे चार के आठ, आठ के साठ कर लो, लेकिन इससे तुम्हारा मन कभी शांत नहीं होता। मेरे लिये तुम्हारे तीनों बेटे एक जैसे हैं फिर भी यदि मैंने तुम्हारे छोटे बेटे को तुम्हारा वारिस बनाने के लिये कहा है तो उसका एक खास कारण यह है कि जिस तरह अलग-अलग मौसम में पेड़-पौधों के रंग-रूप होते हैं उसी तरह किसी आदमी को केवल एक बार देखने से उसके बारे में कोई राय कायम करना ठीक नहीं होता। तुम्हारे सबसे छोटे बेटे में एक अलग किस्म का हौसला और साहस है जो उसे किसी भी मंजिल तक जाने से नहीं रोक सकता।
यह बात ठीक है कि उसे शुरू में कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन कठिन समय तो कभी भी हमेशा के लिये नहीं रहता जबकि कड़ी मेहनत करने वाला सदा कामयाब होता है। तुम उसे दूसरों से थोड़ा कम इसलिये भी आंक रहे हो, क्यूंकि तुमने छोटे बेटे को कभी खुल कर काम करने का मौका ही नहीं दिया। बेटा जिस तरह नदी के आगे से बांध हटा दिया जाये तो वह सहज होकर बहने लगती है। इसी तरह जिस दिन मेरी बात मान कर तुम अपने छोटे बेटे को अपना वारिस बनाओगे उस दिन से उसका विकास सहज हो जायेगा। जैसे ही व्यापार की जिम्मेदारी उसके कंधों पर आएगी तुम भी महसूस करोगे कि उसके दृष्टिकोण में संतुलन की कला के साथ उसकी सोच भी सकारात्मक होने लगेगी। मांगेराम जी की माताजी की दूरदृष्टि को देख कर जौली अंकल भी यही सोचते हैं कि जो आदमी काम को पूरी तैयारी मेहनत और एक खास अंदाज में करना जानता है, असली वारिस बनने का सच्चा हकदार वही हो सकता है। पतंगें हवा के विपरीत ही ऊंचाईयों को छूती है, उसके साथ नहीं।
ये कहानी ‘कहानियां जो राह दिखाएं’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं–
