Social Story in Hindi: दुनिया में कई सवाल ऐसे है, जिनका जवाब आज तक नहीं मिला। जिंदगी की सच्चाई, अपनी पहचान से लेकर बरमूडा ट्राएंगल तक के सवाल अनसुलझे है। पर एक सवाल ऐसा है जिसका जवाब सुबह शाम में बदल जाता है। रोज इसका जवाब दिया जाता है और यह फिर से अपना मुंह उठाए चला आता है।
ये सवाल है ” आज क्या बनाए?”
ये कहानी घर घर की है। सुबह उठने के कुछ देर बाद ही यह सवाल हाजिर हो जाता है।
हमारे यहां कहने को हजारों हजार तरह के व्यंजन है। पर जब घर में भोजन पकाने की बारी आती है तो लगता है कि सब गायब हो गए है। होटल में मेनू कार्ड आने से पहले अपनी अपनी पसंद बताने वालों को यहां सांप सूंघ जाता है।
मुसीबत घर की महिलाओं के लिए हो जाती है कि आज क्या बनाए?
ऐसा भी नहीं है कि घर की स्त्रियां खुद फैसला करने में अक्षम है। पर वे घर की सत्ता को लोकतांत्रिक तरीके से चलाना चाहती है। देश में बाकी किसी काम में सहमति का हाल जो भी हो, घर में आम सहमति का पूरा ध्यान रखा जाता है। वैसे इसके पीछे भी एक राज है। बनाने वाले को अच्छी तरह से पता होता है कि आज क्या बनाया जा सकता है। फैसला पहले से ही लिया जा चुका होता है। लेकिन अपनी राय को सबकी राय बना लेना ही लोकतंत्र की खूबसूरती है। दृश्य ऐसा बनता है कि पति खाने के मेनू पर गंभीरता से विचार कर रहा है। और उधर कौन बनेगा करोड़पति जैसी घड़ी चल रही है। जल्दी से जवाब देने का दबाव है। उसे लगता है जैसे स्मृति लोप हो गया है। कोई डिश याद ही नहीं आ रही। इधर सवालिया निगाह दिल को छलनी कर रही है। पेट के लिए दिल घायल हो रहा है और दिमाग है कि बस इसी वक्त साथ छोड़ गया है। हार कर वह धीमे से घिसा हुआ पत्ता फेंकता है।
” दाल चावल बना लो!”
तेजी से स्विंग होती निगाह पर पति महाशय सुरक्षित शॉट खेलने की कोशिश करते है। पत्नी का अपना रियाज है। वो तय कर चुकी है, मूंग की दाल रोटी बनाना! पर रस्में जहां निभाना जरूरी है।
पत्नी मुस्कुरा कर कहती है। ” ओह! आज तो ग्यारस है। चावल नहीं बनाए जाते!”
पति की जान सुख जाती है। एक बार फिर तेज छुरी सा सवाल गर्दन पर आ जाता है। वह अगली चाल चलता है। ” आलू टमाटर बना लो! थोड़ा तीखा बनाना! मजा आ जाएगा!”
पत्नी को पति की बौद्धिक क्षमता पर पूरा यकीन होता है। वह अपने पति की हद जानती है। धीमे से मुस्कुरा कर कहती है।
” थोड़े आलू तो रखे है। पर सबको पूरे नहीं पड़ेंगे। टमाटर भी नहीं है। आप एक काम करो मंडी से ले आओ! थोड़ा ताजा धनिया भी ले आना! “
अखबार में सिर घुसाए दुनिया की चिंता कर रहे आदमी को लगता है कि हाय! मै इस वक्त मंडी चला गया तो यूक्रेन का क्या होगा? अभी तो आधा अखबार बाकी है! वह अपने दिमाग के 1001 बहाने का टेम्पलेट खोल लेता है। तुरंत कहता है। ” गाड़ी पंचर है। और मैं अभी नहाया भी नहीं हूं। तुम कुछ नया क्यों ट्राई नहीं करती?”
पत्नी महीने में सात बार इस सवाल का सामना कर चुकी है। उसे पता है इससे कैसे निपटा जाएगा। सवाल आता है। ” आप ही बताओ?? क्या नया बना दूं?”
वह बेचारा पुराना ही सब भूल गया है। नया क्या ही बता सकेगा?? वह बिना पढ़े परीक्षा देने गए छात्र की तरह इधर उधर ताकने लगता है। वक्त निकल रहा है। पेट और दिमाग दोनों खाली है। कुछ याद नहीं आ रहा। वह दीवार पर लिखे अनमोल वचन पढ़ता है, जियो और जीने दो! यहां भी चिटिंग का सहारा मिल जाता है। वह मुस्कुरा कर प्यार से कहता है।
” अरे! मै तो वैसे ही कह रहा था। तुम कहां फालतू मेहनत करोगी! नए का झंझट छोड़ो। घर में से ही कुछ बना लो!”
अभी तक की सवालिया निगाह में जीत जाने की चमक आ जाती है।
कातिल मुस्कुराहट के साथ फैसला आता है। ” तो फिर मूंग की दाल बना लूं!”
ऑफिस से फोन भी आने लगे है। अखबार अधूरा है। नहाना बाकी है। जमाने के प्रेशर में दबा आदमी वही कहता है जो कहना तय है।
” ठीक है! वही बना लो!”
पत्नी कहती है, ” मुझे पता है, आपको मूंग की दाल कितनी पसंद है।”
पति मूंग की दाल के फीके स्वाद सी फीकी मुस्कुराहट फेंकता है।
पत्नी लोकतंत्र का तकाजा पूरा कर चुकी है। जमी की कोई वकालत नहीं चलती, जब आसमान से कोई फैसला उतरता है।
फैसला उतर चुका है। वह भी आम राय से! अब पति मूंग की दाल खाने में कोई नाटक नखरे नहीं कर सकता। चुपचाप दाल रोटी खाना, उसका संवैधानिक कर्तव्य बन चुका है। राय देने के बाद उसे कई सारे पकवान याद आ रहे है। उसका मुंह काल्पनिक स्वाद के पानी से भर आया है। पर वोट दिया जा चुका है। अब कुछ नहीं हो सकता। वह शाम को अपनी पुख्ता राय देने की कसम खाता है। जो हमेशा की तरह ऑफिस जाते ही टूट जाएगी।
इधर पत्नी इसी सवाल को शाम के लिए धो पोंछ कर रख लेती है। किचन में जाते हुए शाम के सवाल जवाब की स्क्रिप्ट भी रेडी कर लेती है।
इधर पति सवाल से पीछा छूटने पर राहत की सांस लेता है। क्योंकि उसे अपनी राय देने का सुख तो चाहिए पर जिम्मेदारी नहीं उठाना है। आगे आम राय का वही हाल होता है जो जनतंत्र में होता है। सत्ता की ताकत उसे मूंग की दाल में बदल देती है। और पति मतलब जनता को अगली बार अच्छा फैसला लेने की उम्मीद में चुपचाप वह खाना ही है।
