Hindi Love Story: आकाश आज बहुत खुश था उसकी पत्नी आशा ने बेटी को जन्म दिया है। दोनों ने पहले से ही उसका प्यारा सा नाम भी चयनित कर लिया था, आकांक्षा । वैसे बेटा होता तो एक नाम उसके लिए भी चयनित था। आकाश और आशा ने प्रेम विवाह किया है। उनका आपस में प्रेम बंधन में जुड़ना एक संयोग ही कहा जाएगा। आकाश जिस रूट की मेट्रो ट्रेन से अपने ऑफिस जाता था उसी रूट की मेट्रो ट्रेन से आशा भी अपने स्कूल जाती थी। वह एक पब्लिक स्कूल में अध्यापिका थी। पहली बार जब आकाश ने भीड़ भरी मेट्रो ट्रेन की बोगी में एक स्टेशन पर चढी आशा को अपनी सीट पर से खड़े होकर आग्रह पूर्वक बिठाया था तब उसको न केवल खुशी हुई थी, बल्कि एक नारी के प्रति सम्मान की भावना भी मन में उपजी थी। फिर तो यह एक सिलसिला सा बन गया। आकाश और आशा की नजरें कब एक दूसरे को मेट्रो ट्रेन की बोगी में ढूंढने लग गईं उन्हें इसका एहसास ही नहीं हुआ। आकाश जिस मेट्रो स्टेशन पर चढ़ता उससे अगले स्टेशन पर आशा चढ़ती। फिर आधे घंटे के सफर के बाद दोनों एक ही स्टेशन पर उतरते। इतने समय के अंतराल में दोनों अपने-अपने कामकाज के संदर्भ में खूब बातें करते। दोनों को एक दूसरे का व्यवहार अच्छा लगा। दोनों ही अपने मन में महसूस करते कि हमारी आपस में शादी हो जाती तो जीवन बहुत सुखमय होता। सहानुभुति एवं उदारता की भावना से दोनों के दिल ओत- प्रोत थे। दोनों की मुलाकातों का सिलसिला ढाई महीना ही चला था कि आशा ने आना बंद कर दिया। आकाश को उसका फोन स्विच ऑफ मिलता।
इस बीच आकाश ने कभी उसके घर का पता भी नहीं पूछा था। हां, स्कूल का नाम मालूम था जहां वह अध्यापिका थी। एक दिन आकाश आधे दिन की छुट्टी लेकर उसके स्कूल गया । वहाँ आकाश को आशा के बारे में जो बात पता चली उसे सुनकर लगा जैसे उसके ऊपर वज्रपात हो गया हो। ढाई महीने का प्रेम सचमुच ‘ढाई आखर प्रेम’ बन बन चुका था। आशा पहले से विवाहित थी। उसके पति भारतीय सेना में नौकरी करते थे। ढाई माह पूर्व ही, अर्थात जब आकाश से आशा की पहली भेंट हुई थी मेट्रो ट्रेन में, तो उसके पति सीमा पर दुश्मनों से मुठभेड़ में शहीद हो गए थे। आशा उस समय जरूर दुखी और कमजोर-सी दिखी थी उसे और उसने अपनी सीट से उठकर उससे बैठ जाने का आग्रह किया था। उसने अपने पति के शहीद हो जाने की बात आकाश से इस अंतराल में कभी नहीं बताई। अपने जीवन के दुख को बता कर शायद वह आकाश के हंसते – मुस्कुराते चेहरे को गमगीन नहीं बनाना चाहती थी। फिर तो यह सब बातें जानकर आकाश ने अपने मन में एक फैसला लिया। वह आशा को अपना जीवनसंगिनी जरूर बनाएगा। भले ही वह विधवा हो चुकी है और उसकी कोख में उसके शहीद हो चुके पति का प्यार पल रहा है। वह आने वाले बच्चे को पिता के रूप में अपना नाम देकर उसका भविष्य उज्जवल करेगा। आकाश ने स्कूल से आशा के घर का पता ले लिया था। वह अब और इंतजार नहीं कर सकता था। शीघ्र ही वह उसके घर पहुंच गया था। आशा उससे मिलकर कुछ भी कह पाने में अपने को असमर्थ महसूस कर रही थी, परंतु जब आकाश ने उसे अपना जीवनसंगिनी बनाने की इच्छा जताई तो वह मन ही मन पुलकित हो उठी। उसे भी अपने लंबे जीवन को संवारने के लिए जीवनसाथी की जरूरत पड़ेगी । अभी ना सही भविष्य में शादी तो करनी ही पड़ेगी। आकाश से हुई पहली मुलाकात में उसके दिल में खुशियों के फूल खिले थे तो, पर वह उन ढाई महीनों में अपने पति के शहीद हो जाने के गम से उबार नहीं पाई थी । अतः अपने चेहरे पर मुस्कुराहट तक नहीं ला सकी थी वह। आशा अपने परिवार में सबकी सहमति से आकाश के साथ परिणय- सूत्र में बंध गई। ढाई आखर प्रेम का पुष्प उन दोनों के ही दिलों में सुवासित हो चुका था।
ढाई आखर प्रेम का-गृहलक्ष्मी की लघु कहानी
