असमंजस- गृहलक्ष्मी की कहानियां
Ashamanjas

Hindi Kahani: ‘दीपा, मुझे पदोन्नति मिल रही है। दिलीप ने उत्साहित होकर कहा। ‘अरे वाह! ये तो बड़ी अच्छी खबर है। बधाई हो। दीपा ने भी खुश होकर कहा।
‘थैंक यू दीपा। घर आता हूं तो बात करता हूं। दिलीप ने कहा और फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।
दीपा का मन खुशी से झूम उठा। अभी भी वित्तीय स्थिति ठीक थी उनकी क्योंकि दोनों ही काम करते थे और काफी अच्छा पैकेज था उनका। पर पदोन्नति के बाद निश्चित रूप से वेतन बढ़ेगा, सुविधाएं बढ़ेंगी। बड़ा घर ले पाएंगे वे जिससे कभी-कभी मेहमानों के आने पर उन्हें सुविधा हो। ऑफिस की ओर से ड्राइवर समेत वाहन मिलेगा जिससे उन्हें सुविधा होगी। इन्हीं $खयालों में खोई हुई थी दीपा इस समाचार के मिलने के बाद। शाम को वह छह बजे नोएडा स्थित ऑफिस से निकली और साढ़े छह बजे इंदिरापुरम स्थित अपने निवास पर पहुंच गई। थोड़ी देर आराम कर उसने चाय बनाकर पी और फिर सोफे पर बैठ गई। आज वह पिंड बलूची में दिलीप के साथ खाना खाने जाएगी, उसने निर्णय ले लिया और इसलिए खाना बनाने का काम टाल दिया। दिलीप का ऑफिस गुडग़ांव में था अत: उसे आने में थोड़ी देर हो जाती थी। आठ बजे डोरबेल बजी तो उसने उत्साहित होकर दरवाजा खोला।
मुस्कुराते हुए दिलीप ने घर में प्रवेश किया। दीपा ने भी मुस्कुराते हुए दिलीप का स्वागत किया। टाई का नॉट खोलते हुए बैग रखते हुए दिलीप सोफे पर पसर गया।
‘एक बार फिर से बधाई। दीपा ने उसका बैग उठाते हुए कहा।
‘थैंक यू। दिलीप थोड़ा शरमाता, थोड़ा खुश होते हुए बोला।
दीपा दिलीप के बैग को नियत स्थान पर रखकर आई और पूछा, ‘पोस्टिंग इसी ऑफिस में रहेगी या कहीं और?
‘गेस करो दिलीप ने कहा।
थोड़ी देर सोचती रही दीपा फिर बोली, ‘बंगलुरु।
‘नहीं। दिलीप मुसकुराते हुए बोला।
हैदराबाद। दीपा ने अनुमान लगाया।
‘यह भी गलत। दिलीप की मुस्कुराहट गहरी हो गई।
‘मुंबई। दीपा ने झट से तीसरे शहर का नाम बताया।
‘शायद तुम सही अनुमान लगा ही नहीं पाओगी। दिलीप ने हंसते हुए कहा।
‘अब तुम ही बताओ। पहेलियां ना बुझाओ। दीपा ने हारकर कहा।
‘हेलसिंकी। दिलीप ने सगर्व कहा।
‘हेलसिंकी? फिनलैंड? दीपा ने आश्चर्य व्यक्त किया।
‘यस, फिनलैंड। दिलीप ने अपना सीना चौड़ा करते और सर उठाते हुए कहा।
‘पर वह तो बहुत दूर है। जाने का खर्च भी बहुत होगा। और वापस आना भी न जाने कब हो पाएगा। एक साथ कई संदेह व्यक्त कर दिया दीपा ने। उसकी खुशी काफुर हो चुकी थी।
‘आज के जमाने में कोई भी जगह दूर नहीं है। जाने का खर्च कंपनी देगी। और बार-बार आना-जाना क्या जरूरी है। चार साल के लिए वहां रहना है फिर देखेंगे। दिलीप ने दीपा के सभी संदेहों को उड़ा दिया।
‘पर… दीपा ने कुछ कहना चाहा।
‘कोई किंतु परंतु नहीं, हमारे ऑफिस में चार लोग थे जिन्हें हेलसिंकी जाने का मौका दिया जाना था। पर चूंकि मैं बेहतर पर्फोर्म करता हूं अत: मुझे पदोन्नति दी गई और मुझे ही वहां जाने के लिए कहा गया। ऐसा मौका बार-बार थोड़े न आता है। दिलीप ने बीच में ही दीपा को रोक दिया।
चुप रह गई दीपा। दिलीप के उत्साह को देखते हुए उसे दिलीप को रोकना अच्छा नहीं लग रहा था। बात कैरियर की भी थी। पर विदेश जाने में कई तरह की बाधाएं भी थीं। सबसे पहले कम से कम चौदह घंटे की यात्रा। फिर खर्च बहुत। कंपनी को एक बार जाने के लिए खर्च देगी और एक बार आने के लिए। बीच में आने जाने में तो अपना पैसा ही लगाना था। फिर दीपा भी जॉब करती थी। उसे जब चाहे तब छुट्टी तो मिल नहीं जाती।
दीपा ने चाय और स्नैक्स लाकर ड्राइंग रूम में रख दिया। इस बीच दिलीप कपड़े बदलकर वापस आ गया था। चाय की चुस्की लेते हुए वह बोला, ‘हेलसिंकी में तापमान माइनस में भी रहता है नवंबर से मार्च के बीच। जुलाई अगस्त में भी हमारे यहां के ठंड से ज्यादा ठंड पड़ती है वहां। प्रदूषण का नामों निशान नहीं है वहां। एक्यूआई 50 से भी नीचे। शायद हेलसिंकी के बारे में उसने गूगल ज्ञान प्राप्त कर लिया था।
दीपा के मन में पिंड बलूची में खाना खाने का जो उत्साह था, वह हेलसिंकी के नाम से ठंडा हो गया था। उसने दिलीप की बात का जवाब नहीं दिया और कहा, ‘खाना बना लेती हूं।
‘इतनी बड़ी खुशखबरी मिली है आज चलो बाहर खाते हैं। दिलीप ने कहा।
‘पर दिलीप मैं थोड़ा असमंजस में हूं। कितनी परेशानियां हैं विदेश जाने में। दीपा बोली।
‘देखो आज के जमाने में कौन नहीं जाता विदेश, यदि अच्छा मौका मिले तो? परेशानियां तो हर जगह जाने में होती है। यदि मेरी पोस्टिंग बंगलुरु, हैदराबाद या मुंबई में होती तो क्या परेशानी नहीं होती?Ó दिलीप ने कहा।
‘इन जगहों पर जाने में दो घंटे लगते। फिर मैं अपनी कंपनी में बात कर वहीं अपनी पोस्टिंग ले पाती। हेलसिंकी में मेरी कंपनी का ऑफिस है नहीं। फिर हम कब मिल पाएंगे?’ दीपा ने चिंता व्यक्त की।
‘लेकिन कैरियर का क्या दीपा? यदि मैं यह प्रोमोशन ठुकरा देता हूं तो फिर एक बहुत बड़ा अवसर को गंवा दूंगा। दिलीप ने चिंतित होकर कहा।
‘हूं। दीपा चुप रह गई।
‘चलो, होटल नहीं चलना चाहती तो कोई बात नहीं। तुम्हारा मूड ठीक नहीं है। दिलीप ने कहा।
‘नहीं चलना चाहती ऐसी बात नहीं। बल्कि मैंने तो आज खाना बनाना शुरू ही नहीं किया था यही सोचकर कि आज पिंड बलूची में खाना खाएंगे। दीपा ने कहा।
‘फिर चलो रास्ते में बातें करते हुए चलेंगे और वहीं बाकी बातें करेंगे। दिलीप ने कहा।
दोनों तैयार होकर निकले। रेस्टोरेंट ज्यादा दूर नहीं था। बस दो सौ मीटर की दूरी पर रहा होगा। रास्ते में दोनों गुमसुम थे। दीपा का मूड तो हेलसिंकी का नाम सुनकर ही ऑफ हो चुका था। दिलीप ने जब दीपा को चिंतित देखा तो वह भी गंभीर हो गया।
रेस्टोरेंट पहुंच कर दोनों कुर्सी पर बैठ गए। वेटर आकर ऑर्डर ले गया।
‘ज्यादा परेशानी है तो मैं मना कर दूंगा कंपनी को। दिलीप ने कहा। उसकी आवाज में उदासी थी।
‘पर कैरियर की भी बात है। अब दीपा भी इस बात को समझ रही थी।
‘देखो दीपा, इतना तो पता है कि मुझे चार वर्षों के लिए जाना है। चार वर्षों तक दूर रहने के कारण हमारा संबंध कमजोर नहीं होगा। फिर बीच-बीच में आना-जाना लगा रहेगा। हर महीने न सही, चार-छह महीने में तो आना-जाना होगा ही। आजकल तो ऑनलाइन काम करने के लिए भी कंपनियां अनुमति देती हैं। कभी मैं यहां आकर ऑनलाइन काम करने की अनुमति ले लूंगा। कभी तुम वहां आकर ऑनलाइन काम करने की अनुमति अपनी कंपनी से ले लेना। दिलीप ने कहा।
इस बीच वेटर स्टार्टर लाकर रख गया। दोनों स्टार्टर लेने लगे।
‘हां ठीक है। एकाएक विदेश में पोस्टिंग सुनकर मैं घबरा गई थी। हम दोनों मिलकर प्लान बना लेंगे। कैरियर में इतना बड़ा मौका हमेशा नहीं मिलता। और आज के जमाने में दूर रहकर भी एक-दूसरे के संपर्क में रहना कोई बड़ी बात नहीं है। मुझे थोड़ा समय दो एडजस्ट करने के लिए।’ दीपा ने कहा।
‘और फिर भी अगर तुम इससे सहमत नहीं हो तो मैं इसे ठुकरा दूंगा। मेरे लिए तुम्हारा साथ किसी भी चीज से ज्यादा महत्वपूर्ण है। दिलीप ने दीपा की आंखों में प्यार से झांकते हुए कहा।
दीपा को यह बात सुनकर बड़ी राहत मिली। जब दिलीप उसे इतना महत्व देता है तो उसे भी दिलीप के करियर के लिए सहयोग करना होगा। बोली, ‘बस कल तक का समय दे दो, सबेरे तक स्पष्ट कर दूंगी। अब वह काफी हद तक सामान्य हो गई थी।
दोनों खाना खाकर वापस आ गए।
दूसरे दिन दोनों अपने अपने ऑफिस के लिए निकले। दीपा के मन में हमेशा यही खयाल कौंधता रहता था कि क्या चार साल के लिए दिलीप का विदेश जाना उचित होगा। उसने कई दंपतियों के जीवन पर विचार किया। कई लोग साथ रहने के बावजूद एक-दूसरे से झगड़ते रहते थे तो कई दूर-दूर रहकर भी बड़ी समझदारी के साथ जीवन जी रहे थे। वह अंत में इसी निष्कर्ष पर पहुंची कि उसका दिलीप के साथ इतना बढिय़ा तालमेल रहा है कि दूरी से कोई फर्क पडऩे वाला नहीं है। थोड़ी बहुत परेशानी होगी तो उसे झेल लिया जाएगा।
उस दिन शाम को जब दिलीप घर आया तो दीपा ने चहककर कहा, ‘आज फिर चलेंगे बाहर, पार्टी करेंगे तुम्हारे प्रोमोशन का, जश्न मनाएंगे क्योंकि कल मैं ठीक से इसका आनंद नहीं ले पाई थी।
‘मतलब निर्णय पक्का? दिलीप भी खुश हो गया।
‘पक्का। दिलीप के ऑफिस बैग को नियत स्थान पर रखने के लिए ले जाती हुई वह बोली।

Also read: मन की एकाग्रता – कहानियां जो राह दिखाएं