man kee ekaagrata
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Hindi Story: एक दिन वीरू और बसन्ती जब घर से घूमने के लिये जाने लगे तो बसन्ती ने वीरू से कहा कि आज कार मैं चलाऊंगी। वीरू ने कहा- फिर तो हम जायेंगे कार में और आयेंगे अखबार में।’ वीरू ने बसन्ती को समझाने की कोशिश करते हुए कहा कि कार चलाना इतना आसान नहीं जितना कि तुम सोच रही हो। कार चलाते समय आदमी को अपने आगे-पीछे और दायें-बायें चारों तरफ पूरा ध्यान रखना होता है। दोनों हाथों के साथ पैरों से भी कई चीजें कंट्रोल करनी पड़ती है। कार चलाना कोई दाल-सब्जी बनाने जैसा नहीं है, इसमें बहुत एकाग्रता की जरूरत होती है। वीरू का यह भाषण सुनते ही बसन्ती ने कहा कि मेरी किस्मत तो उसी दिन फूट गई थी जब मैंने तुमसे बिना देखे ही शादी की थी। माहौल को गंभीर होने से बचाने के लिये वीरू ने मजाक करते हुए अपनी पत्नी से कहा कि तुम मेरी हिम्मत देखो, मैंने तो तुम्हें देख कर भी तुम से शादी कर ली।

कुछ ही देर में यह नोक-झोंक इतनी बढ़ गई कि वीरू अपनी पत्नी को बिना कुछ भी कहे गुस्सा करते हुए घर से बाहर चला गया। देर रात उसने अपने मोबाइल से फोन मिला कर पूछा कि तुम कौन? बसन्ती ने कहा कि तुम पागल हो गए हो क्या, अपनी पत्नी को भूल गए हो? वीरू ने कहा कि जब दिमाग में परेशानी हो तो कुछ समझ ही नहीं आता कि आदमी को क्या बोलना और क्या नहीं बोलना चाहिए। बसन्ती ने गुस्सा करते हुए कहा कि फालतू की बातें छोड़ो और यह बताओ कि इस समय फोन क्यूं किया है? वीरू ने जवाब दिया कि मैंने सोचा एक कॉल ही कर लूं, हो सकता है कि शायद तुम मुझे मिस कर रही होगी। बसन्ती ने कहा- अब इतनी हमदर्दी आ रही है और अभी थोड़ी देर पहले जो मुझ से इतना झगड़ा करके गये हो, वो सब क्या था? वीरू ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा कि ओये फिट्टे मुंह फिर से घर का नम्बर मिल गया।

अब यदि यह कहा जाये कि यह सब कुछ सिर्फ पति-पत्नी के झगड़े का नतीजा है तो गलत होगा। आज के इस दौर में जन्म, मृत्यु, कष्ट, बीमारियों को छोड़ कर बाकी सभी दुःख हमारी अपनी मनोदशा यानी एकाग्रता के अभाव के कारण होते हैं। असल में आज का समय ही एकाग्रता में कमी का युग है। अधिक से अधिक धन कमाने और सुख पाने की लालसा ने हर व्यक्ति को दिशाहीन बना दिया है। आज अधिकांश लोग बिना सोचे-विचारे, कोई लक्ष्य तय किये ही जीवन जिये जा रहे हैं। ऐसे लोग अच्छे पढ़े-लिखे होने के बावजूद अक्सर चौराहे पर खड़े होकर यह सवाल कर देते हैं कि यह रास्ता किस ओर जाता है? जब ऐसे लोगों से पूछा जाये कि तुम्हें जाना कहां है तो वो बगलें झांक कर कहते हैं कि यह तो मालूम नहीं।

इस तरह के लोगों को फिर यही सुनने को मिलता है कि तुम कोई भी रास्ता पकड़ लो, तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इस बात की गहराई को समझा जाये तो एक बात खुल कर सामने आती है कि जब तुम्हें मालूम ही नहीं कि तुम्हें जाना कहां है तो फिर कोई भी रास्ता पकड़ लो वो तुम्हें कहीं न कहीं तो ले ही जायेगा। रेलगाड़ी में भी सफर के दौरान आपने कई बार जरूर देखा होगा कि दो किस्म के ऐसे लोग भी सफर कर रहे होते हैं जिन्हें अपनी मंजिल का पता नहीं होता। उनमें से एक होता है संन्यासी साधु और दूसरा भिखारी। इस प्रवृत्ति के लोग अनेक प्रकार के विचारों में उलझे होने के कारण अपने आप को एकाग्र नहीं कर पाते। एक ही समय में ध्यान कई जगह भटकने के कारण इनका मन नियन्त्रण में नहीं रह पाता। जबकि जो लोग मन को विभाजित होने से रोकने में कामयाब हो जाते हैं, वह अपने कर्म को एकाग्रचित्त से पूरा करते हुए मंजिल तक पहुंच जाते हैं।

जो लोग एक बार ध्यान से काम करने का अभ्यास बना लेते हैं फिर चाहे उनके आसपास कितनी ही घटनायें क्यूं न होती रहें, कोई उनकी तारीफ या आलोचना क्यूं न करता रहे, वो उनकी परवाह नहीं करते और अपने ही काम में रमे रहते हैं। हमारे जीवन में कोई भी काम हमारे हौसलों से बढ़ कर नहीं होता, एक बार जो व्यक्ति एकाग्रचित्त होकर अपने इरादे बुलंद कर ले तो फिर हर सफलता खुद ब खुद उसकी ओर चुंबक की भांत खिंची चली आती है। हमारी जिंदगी में एकाग्रता का महत्त्व इसलिये भी अधिक है क्योंकि जब तक हम एकाग्रचित्त होकर कोई काम नहीं करते उसके बिना सभी बातें व्यर्थ होती हैं। जीवन में बात हार-जीत की हो या सफलता-असफलता की, हर जगह फर्क सिर्फ एक हल्की-सी रेखा का ही होता है और उस रेखा का नाम है एकाग्रता। मन को एक जगह केंद्रित करके इंसान चाहे तो जीवन में किसी भी ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है।

अब यदि वीरू और बसन्ती के झगड़े की बात की जाये तो वीरू की बात में सच्चाई तो बहुत बड़ी छिपी हुई है, परंतु उसके बात कहने के तरीके को सही नहीं कहा जा सकता। वीरू चाहता तो बसन्ती को इस तरह से भी कह सकता था कि किसी भी कार्य में सफल होने के लिये हमें सौ प्रतिशत लगना पड़ता है। वैसे भी एकाग्र मन से कार्य करने के कई फायदे होते हैं। इससे हमारे मन में शक्ति उत्पन्न होने के साथ हमारा आत्मविश्वास बढ़ता हैं और हम और अधिक साहस से आगे कार्य करने के लिये तैयार हो जाते हैं। अपनी पत्नी को समझाने के साथ वीरू को भी यह समझना चाहिए कि अपने मार्ग में आने वाले किसी भी विघ्न से घबराएं नहीं, हर विघ्न को उन्नति की ओर ले जाने वाली सीढ़ी समझें। यदि मन में दृढ़ निश्चय व विश्वास है तो विजय निश्चित तौर पर मिलती है, अगर संकल्प कमजोर है तो पराजय होगी। वीरू-बसन्ती की बातों से ध्यान हटा कर अपने मन को एकाग्र करते हुए जौली अंकल इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि बिखरे-बिखरे विचारों वाले व्यक्ति कभी शांत नहीं रह सकते और मन की शांति के बिना खुशी संभव नहीं है? अब यदि आपको मानसिक शांति का आनंद प्राप्त करना है तो कभी भी मन को व्यर्थ की उलझनों में फंसने की बजाए सदैव एकाग्रचित्त रखे।

जल्दबाजी में किया गया कार्य कभी भी सफलता नहीं दिलाता, एकाग्रता से ही कामयाबी मिलती है।

ये कहानी ‘कहानियां जो राह दिखाएं’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं

Kahaniyan Jo Raah Dikhaye : (कहानियां जो राह दिखाएं)