gile-shikave
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Hindi Story: बसन्ती ने अपने पति वीरू से पूछा कि मुझे एक बात पर बहुत हैरानगी होती है कि तुम्हें अपने जन्मदिन की तारीख तो कभी याद नहीं रहती, परंतु तुम आज तक अपनी शादी की सालगिरह कभी नहीं भूले। वीरू ने भी थोड़ी चुस्की लेते हुए कहा कि कोई भी समझदार आदमी कभी भी अपने बुरे दिनों को नहीं भूलता। इसी के साथ वीरू ने अपनी पत्नी से कहा कि मुझे सबसे पहले तो यह बताओ कि तुम हमेशा मुझ से यह मूर्खों जैसे उल्टे सवाल क्यूं पूछती रहती हो? बसन्ती ने भी तुरंत जवाब देते हुए कहा कि मैं यह सब कुछ तुम्हारे फायदे के लिये करती हूं ताकि तुम्हें मेरी सारी बातें आसानी से समझ आ जाये।

बसन्ती ने अपनी बात जारी रखते हुए अपने पति से कहा कि क्या तुमने कभी सोचा है कि अगर मेरी शादी किसी और से हो जाती तो तुम क्या करते? वीरू ने बिना सोचे-समझे कहा कि मैं इतना स्वार्थी नहीं हूं कि दूसरे लोगों का खामख्वाह बुरा सोचूंगा। बसन्ती ने कहा कि अब तो सारा दिन तुम्हारे गिले-शिकवे ही खत्म नहीं होते जबकि शादी से पहले तो दिन-रात बस एक ही राग गाते थे ‘आइ लव यू जानेमन। अभी मत जाओ। मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं, अच्छा यह बताओ कि फिर मिलने कब आओगी।’ वीरू ने भी करारा जवाब देते हुए कहा कि तुम भी तो शादी के समय मुझे हीरो नंबर-1 कहती थी और अब कुली नंबर-1 बना कर रख दिया है। मैं इस बात से इंकार नहीं करता कि शादी से पहले मैं तुम्हें ’आइ लव यू’ कहता था लेकिन अब क्या तुमने खुद को कभी ढंग से आईने में देखा है। जिसे मैं आइ लव यू कहता था वो एक बहुत ही खूबसूरत और हसीन लड़की थी। आज तो तुम आलुओं से भरी हुई बोरी की तरह दिखती हो। अब ऐसी औरत को कोई भी अच्छा इंसान यह तो नहीं कह सकता कि फिर कब आओगी। हां इतना जरूर कहेगा कि मायके कब जाओगी?

बसन्ती ने कहा कि मैं तो आज भी उतनी ही खूबसूरत हूं, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हारी ही नज़र कमजोर हो गई है जो तुम्हें मुझ में अब सिर्फ कमियां ही कमियां दिखाई देती है। वीरू ने एक लंबी सांस लेते हुए कहा कि मुझे भी लगता है कि मेरी नज़र कमज़ोर हो गई, सोचता हूं एक बढ़िया सा चश्मा लगवा ही लूं। बसन्ती तुम्हें चश्मा लगवाने का कोई फायदा नहीं होने वाला। इसलिये चश्मा लगवा कर क्यूं अपने पैसे बरबाद करने की सोच रहे हो, क्योंकि हमारे इलाके में मुझ से सुंदर दूसरी कोई औरत है ही नहीं। आज तो वैसे भी मैं ब्यूटी पार्लर में 3-4 घंटे लगा कर आई हूं। वीरू ने बसन्ती के चेहरे की ओर गौर से देख कर कहा कि क्या आज भी तुम्हारी बारी नहीं आई जो बिना अपने चेहरे का मेकअप करवाये ही वापिस आ गई हो। अपने पति के इस व्यवहार से झल्ला कर बसन्ती ने उससे कहा कि तुम अपने आप को इंजीनियर कहते फिरते हो, मुझे तो समझ नहीं आ रहा कि तुम इंजीनियर बन कैसे गये? वीरू ने बसन्ती को जवाब देते हुए कहा कि इंजीनियर बनने के लिए बहुत पढ़ाई-लिखाई और दिमाग की जरूरत होती है। बसन्ती ने कहा-‘हां यह तो मैं अच्छे से जानती हूं, इसलिये मुझे समझ नहीं आ रहा कि तुम इंजीनियर कैसे बन गये? तुम्हें तो न घर- बाहर की और न ही दुनियादारी की कुछ समझ है।

अभी वीरू बसन्ती के यह आपसी गिले-शिकवे चल ही रहे थे कि बनवारी काका नाश्ते की ट्रे लेकर कमरे में दाखिल हुए। घर के माहौल की गर्मी को महसूस करते हुए बनवारी काका ने वीरू से कहा कि आप लोगों ने जितनी पढ़ाई-लिखाई की हुई है उसके सामने मेरी इतनी औकात नहीं है कि मैं तुम्हें कुछ भी परामर्श दे सकूं। लेकिन आप दोनों के बीच में होने वाले हल्के-फुल्के गिले-शिकवे अब एक बड़े तूफान के आने की चेतावनी देने लगे हैं। बेटा मैं बचपन से इस घर में एक सदस्य की तरह रहा हूं। अब इस घर के बुजुर्ग तो रहे नहीं, लेकिन मैं खुद को तुम्हारा बड़ा मानते हुए तुम से कुछ कहना चाहता हूं। यदि तुम्हें मेरी बात बुरी लगे तो फिर चाहे मुझे तुम काला पानी भेज देना। वीरू ने बनवारी काका को अपने पास सोफे पर बिठाते हुए कहा कि आपको पूरा हक बनता है, आपके
मन में जो कुछ भी है आप उसे खुले दिल से कह सकते हैं।

बनवारी काका ने इतनी इज्जत देने के लिये शुक्रिया अदा करने के साथ अपनी बात कहनी शुरू की। उन्होंने वीरू और बसन्ती से कहा कि मनुष्य जीवन में भागते-भागते कई बार इतना थक जाता है कि उसे वो जीवन भी भारी लगने लगता है जिसने उसे सब कुछ दिया होता है। अधिक से अधिक खुशियां पाने के लिये वो अपनी उन खुशियों को भी अनदेखा कर देता है जो उसके पास पहले से ही होती है। भगवान ने केवल मनुष्य को ही ऐसी शक्ति दी है कि वो अपने अंदर और बाहर के व्यवहार दोनों को समझते हुए अच्छे-बुरे का अंतर कर सके। जब तक हम लोग किसी से प्यार करने की बजाए उसके प्रति अपने मन में द्वेश की भावना रखते हैं, उस समय तक हमारे मन को शांति नहीं मिल सकती। मैं कुछ समय से देख रहा हूं कि आप दोनों ही बात-बात पर आगबबूला होने लगते हो। मसला चाहे कोई भी हो आप दोनों ही अलग-अलग खिचड़ी पकानी शुरू कर देते हो।

बेटा अब तो मेरी भी उम्र ढलने लगी है, इसलिये मैं केवल दिखावे के लिये नहीं बल्कि सच्चे दिल से यह कहता हूं कि किसी से मित्रता या शत्रुता हमारे व्यवहार पर ही निर्भर करती है। क्योंकि हम अक्सर उस व्यक्ति को अपना मित्र मान लेते हैं जो हमारी बात का समर्थन करते हुए हमारा साथ देता है, जो हमारी बात का जरा-सा भी विरोध करता है उसे हम अपना दुश्मन मानने लगते हैं। किसी भी रिश्ते को अच्छे या बुरे तरीके से निभाना हर व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है, लेकिन हर कर्म के फल उसे ही भोगने पड़ते हैं। बनवारी काका की राय को दिल से कबूल करते हुए जौली अंकल इस बात को अच्छे से समझ गये हैं कि यदि आप समय रहते फालतू की शिकायतों को खत्म नहीं करते तो फिर यही छोटी-छोटी बातें आपको खत्म कर देती है। पति-पत्नी के गिले-शिकवों में यदि थोड़ा-सा प्यार का रंग भी शामिल हो जाये तो फिर यह हमारे गम कम करने के साथ-साथ हमारी खुशियां को भी कई गुणा बढ़ा देते हैं। उतावलापन कभी भी नहीं दिखाना चाहिए, क्योंकि सामने वाला आपका भेद जान जाता है।

ये कहानी ‘कहानियां जो राह दिखाएं’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं

Kahaniyan Jo Raah Dikhaye : (कहानियां जो राह दिखाएं)