एक छतरी और हम भी दो !-गृहलक्ष्मी की लघु कहानी
Ek Chatri aur Hum Bhi Do

Hindi Short Story: आकाश में काले बादल घिरे हुए थे,और ऐसा प्रतीत हो रहा था बारिश जम कर होगी, लेकिन मन ही मन ये भी लग रहा था,अभी शुरू तो नही हुई  है, क्यों न  मार्केट जाकर राशन का सामान ले आए, क्योंकि मेरे पति ऑफिस के काम से बहुत व्यस्त हो गए थे, जिसके कारण वो घर सही वक्त पर नही आ पा रहे थे,और न ही घर के सामान ला पा रहे थे, मेरी भी नई ..नई शादी हुई थी,और मै उस शहर के लिए।

नई ही थी,इसी वजह से  मार्केट जाने में मुझे  हिचकिचाहट होती हैं,लेकिन आज घर में सारे राशन सामान खतम थे,और हरी सब्जी भी खत्म थी ,इसलिए मैने सोच लिया था,मैं  अभी ही मार्केट जाऊंगी और मैं बारिश के बारे में नही  सोची ,तथा तैयार होकर घर पर ताला लगा कर चलती बनी ,जल्दी-जल्दी तेज रफ्तार से मार्केट पहुंची ,और वहां पर मैने सारे राशन के समान और हरी सब्जी खरीदी ,जैसे ही मैं सामान खरीद कर आगे बढ़ी,बारिश तेज रफ्तार से होने लगी, और मुझे समझ नहीं आ रहा था, मैं क्या करूं? तभी मेरे पति का फोन  आया और वो बोले तुम कहां हो मैं घर पहुंच चुका हूं ,मैने उन्हे सारी  बात बताई ,और कहा आप जल्दी से छाता लेकर आ जाइए,नही तो मेरा घर आना मुश्किल हो जायेगा, वो मेरा बात सुने और जल्दी से छाता लेकर मार्केट पहुंच गए मुझे तो इनको देखकर जान में जान आई , फिर इन्होंने कहा तुम मुझे सामान दे दो ,और छतरी पकड़ो तुम ,मैने ऐसा ही किया, इधर बारिश के झटके हम-दोनो को पड़ रहे थे,पानी के तेज बूंद हम दोनो के चेहरे और कपड़े पर पड़ रहे थे, इसलिए हम दोनो को ठंड  भी बहुत लग रही थीं, यही वजह थी कि हम दोनो एक दूसरे के बहुत करीब आ गए थे,और हमारे बीच प्रेम के अंकुर भी फूट रहे थे, दोनो एक दुसरे को देख -देख कर खुश थे,इन्होंने मेरी तरफ देखा ,और कहा मजा आ रहा है,मैने कह हां, इन्होंने कहा मजा तो आयेगा ही क्योंकि एक छतरी और हमभी दो, भींगने दो जरा भींगने दो ।

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