अक्सर मानसून के समय ही बादल फटने जैसी दुर्घटना होती है। उत्तराखंड में एक बार फिर बादल फटने से भारी तबाही मच गई है। भारी बारिश और लैंडस्लाइड से चमोली-पिथौरागढ़ जिलों में अब तक 30 लोगों की मौत भी हो चुकी है और कई लापता हैं। अलकनंदा, सरयू और मंदाकिनी सहित करीब 10 नदियां भी खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। पुलिस के साथ रेस्क्यू टीमें मलबा हटाने में लगी हुई हैं।

वहीं दूसरी ओर चारों धाम की यात्रा पर निकले हजारों यात्री भी केदारनाथ और यमुनोत्री हाईवे पर फंसे हुए हैं। जिसके चलते बद्रीनाथ, केदारनाथ समेत कई हाईवे बंद कर दिए गए हैं।

आखिर क्यों फटते हैं बादल ?

प्रकृति में समय-समय पर उथल-पुथल होती रहती है और कभी-कभी ये कहर का रुप भी लेती है। जैसे भूस्खलन, बाढ़, भूकंप, चक्रवात और बादल फटना आदि। मौसम वैज्ञानिक बतातें हैं कि भारी मात्रा में बरसात होने को ही ‘बादल का फटना’ कहा जाता है। समझ लीजिए जैसे कि किसी पानी से भरे गुब्बारे में छेद हो जाना। लेकिन यह घटना आपदा बन जाती है। जिसमें हर साल हजारों लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं। आइए जानते हैं कैसे और क्यों फटते हैं बादल –

  • जब बादल बड़ी मात्रा में पानी के साथ आसमान में चलते हैं और उनकी राह में कोई बाधा आ जाती है, तब वे अचानक फट पड़ते हैं।
  • वातावरण में दबाव कम होने के कारण बादल आपस में या फिर पहाडों से टकरा जाते हैं।
  • जब इन बादलों को ऊपर की ओर धकेलने वाली वायु कमजोर पड़ जाती है तभी बादलों से मूसलाधार बारिश शुरू हो जाती है।
  • देखते ही देखते 100 मिलीमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से बारिश होने लगती है।
  • बादल फटने के दौरान आमतौर पर गरज और बिजली चमकने के साथ तेज आंधी के साथ भारी बारिश होती है।
  • हालात बाढ़ और तूफान की तरह के हो जाते हैं।
  • अक्सर पहाड़ी क्षेत्रों में ही बादल फटने का खतरा बना रहता है।
  • यह पूरी प्रकिया बहुत ज्यादा ऊँचाई पर नहीं होती है ये हमेशा धरती से लगभग 15 किलोमीटर की ही ऊंचाई पर घटती है।
  • बादल जरा सी भी गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाते।
  • यदि गर्म हवा का झोंका इन बादलों को छू भी जाए, तो उनके फट पड़ने की आशंका बन जाती है।

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