प चाहे मानें या न मानें डीवीडी प्लेयर, होम थियेटर व गाड़ी की तरह कुत्ता पालना भी एक आवश्यकता बनता जा रहा है। यह हमारे जीवन स्तर की उच्चता का प्रतीक भी माना जाने लगा है। जब भी हाथ में चाय का कप लेकर बालकनी में बैठी तो देखा कि अधिकतर लोग कुत्ते की चेन पकड़े उसे घुमा रहे हैं। किसी-किसी के हाथ में 2-2 चेन होती।
तभी मन में विचार आया काश, मैं भी इन लोगों की तरह कुत्ते को घुमाने का आनंद उठा पाती। मेरे पास तो समय ही समय है। बच्चे बड़े हो चुके हैं और पति भी सुबह सात बजे घर से निकलते हैं, तो शाम सात बजे से पहले नहीं लौट पाते। सारा दिन इंतजार करते हुए घर में कैद रहो। जिनके पास कुत्ते हैं, उनको उन्हें घुमाने के बहाने कुछ देर ही सही खुली हवा का आनंद मिल ही जाता है। सो शाम को पति व बच्चों के सम्मुख भोजन के साथ-साथ कुत्ता पालने का विचार भी परोस दिया। मेरी बात सुनते ही वे तीनों कुछ ऐसे चौंके मानो कोई बम फट गया हो।
पर मैंने भी कोई कच्ची गोलियां नहीं खेली थी। उसी क्षण कहा, ‘मेरी भी कुछ इच्छाएं हैं, अरमान हैं। क्या मैं अपनी इच्छा से एक कुत्ता भी नहीं पाल सकती?’ मेरे त्रिया हठ के आगे पति ने ‘जैसी तुम्हारी मर्जी’ कह कर मुझे कुत्ता पालने की अनुमति दे दी। इस बाबत विस्तृत जानकारी हासिल करने के लिए मैंने अपनी सहेलियों से ही विचार-विमर्श करना उचित समझा। लेकिन उन्होंने कोई रुचि नहीं दिखाई।
मन ही मन बड़ी कोफ्त हुई। परंतु मुझ पर तो कुत्ता पालने का जुनून सवार था। अचानक याद आया कि कानपुर में रहने वाली मेरी सहेली नमिता ने भी एक कुत्ता पाल रखा है। पिछले दिनों जब मैं कानपुर में नमिता से मिली थी तो उसके दुष्ट कुत्ते ने लपक कर मेरी कीमती साड़ी फाड़ दी थी। मैंने तुरंत नमिता का नंबर डायल किया और कहा, ‘सुनो नमिता, मैं एक अच्छा सा कुत्ता पालना चाहती हूं। तुम इस में मेरी मदद करो, मुझे कुछ राय दो कि मैं कैसा व कौन सा कुत्ता पालूं।’
जवाब में नमिता ने देसी-विदेशी कुत्तों की जातियों के नाम गिनाने शुरू कर दिए, मानो उसने इस विषय पर पीएचडी कर रखी हो। फिर उसने कहा, ‘पेपर में कुत्ता खरीदने के लिए एड दे दो जैसे लोग वर, वधू खोजने के लिए देते हैं।’ नमिता की राय मुझे उपयुक्त लगी।
खैर, इन बातों में उलझ कर मैं अपना वक्त बर्बाद नहीं करना चाहती थी। सो मनपसंद कुत्ते के लिए पेपर में एड देने का आइडिया मुझे उपयुक्त लगा।
पेपर में एड देने के लिए मैंने एक अच्छा सा ड्राफ्ट बनाया और नजदीक की ही एड एजेंसी में गई, ड्राफ्ट देख कर वहां बैठे कर्मचारी ने कहा कि, मैडम आप तो कुत्ते के लिए इतना लंबा- चौड़ा ड्राफ्ट बनाकर लाई हैं। आपके इस एड में 3500 का खर्चा पड़ेगा। 3500 की बात सुन कर एक बार तो मेरे पैरों तले जमीन खिसकती सी लगी। महीने का आखिरी सप्ताह चल रहा था सो इस समय इतने रुपये घर में मिलने मुश्किल थे। फिर भी काफी खोजबीन के बाद अपने चोरी के छिपे खजाने से किसी तरह पेपर में एड दे दिया।
एड देने के 10-12 दिन बाद डाकिया लिफाफों का बंडल पकड़ा गया। आनन-फानन में मैंने एक-एक करके सारे लिफाफे खोल डाले। एक से एक बढिय़ा कुत्तों की वैराइटी व उनकी कीमत इनमें थी। साथ ही उनके पालन-पोषण के बारे में भी जानकारी थी कि अमुक नस्ल का कुत्ता सिर्फ गोश्त खाना ही पसंद करता है व अमुक सिर्फ दूध पर रहता है। इस ‘कुत्ता शास्त्र’ के चक्कर में समय का ध्यान ही नहीं रहा। जब पतिदेव शाम को आए तो बिखरे लिफाफों को देख, सवालिया नजरों से मेरी तरफ देखा। चाय की चुस्कियों के बीच मैंने अपने ‘कुत्ता पुराण’ का बखान करना शुरू किया कि मेरी सहेली नमिता ने बताया था कि अच्छे कुत्तों के लिए अखबार में विज्ञापन देना पड़ता है।
मुझे आग्नेय नेत्रों से घूरते हुए यह बोले, ‘लगता है तुम साठ से पहले ही सठिया गई हो। अरे, कभी भूले से भी तुमने अपने इन दो अदद बच्चों के पालन-पोषण के संबंध में इतनी गहराई से सोचा आज तक? लगता है इस कुत्ते के चक्कर में तुम मुझे दिवालिया बना दोगी।’
मेरे चेहरे के भाव देख कर यह कुछ नरम हुए और समझाते हुए बोले, ‘देखो, यों पागलपन में रुपया खर्चने की कोई जरूरत नहीं है। मैं तुम्हारे लिए एक कुत्ते का इंतजाम करवा दूंगा।’ अगले सप्ताह ही इनके दफ्तर का चपरासी आकर एक प्यारा सा कुत्ता हमारे घर पहुंचा गया।
घर में कुत्ता आ जाने से मेरे निष्क्रिय जीवन में जैसे बहार आ गई। सुबह-शाम उसे लघुशंका व दीर्घशंका के लिए घुमाने ले जाने में मुझे बहुत आनंद आने लगा। एक दिन शाम को रोज की तरह तैयार होकर जब मैं अपना कुत्ता घुमाने निकली तो देखा, सामने से मेरी एक पुरानी सहेली चली आ रही है। उन्हें देख कर कुछ गपशप करने की गरज से मैं थोड़ी देर को उसकेपास खड़ी हो गई। तभी मुझे महसूस हुआ कि कुत्ते की चैन कुछ खिंच रही है। मैं जब तक कुछ संभलती, तब तक कुत्ते के दौडऩे की गति में तेजी आ गई थी। अब इस उम्र में कुत्ते के पीछे दौड़ते हुए कहां तक उसका पीछा करती।
मैं इसी उहापोह में थी कि तभी जोरदार झटका लगा और मैं सडक़ पर चारो खाने चित्त हो गई। उसके बाद मुझे कुछ होश ही नहीं रहा कि कब कैसे व किसने मुझे अस्पताल पहुंचाया। होश आने पर पता चला कि झटका लग कर गिरने से मेरे दाएं पैर की हड्डी टूट गई है, जिसमें करीबन चार महीने प्लास्टर रहेगा। मन ही मन शॄमदा थी। पति ने मुझे ऐसे देखा, मानो पूछ रहे हों, ‘बोलो, पाल लिया जाय या छोड़ दिया जाए?’
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