जीजी-21 श्रेष्ठ नारीमन की कहानियां मध्यप्रदेश: Jija Maa Story
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

Jija Maa Story: “अरे सुन, बेटा ये लाइट यहाँ लगा और ये फूलों की झालर ऊपर ले जाकर लगा दे और सुमनिया तू तो सज-धज कर अभी तक यहीं खड़ी है, अरे जल्दी जाकर देख हरीश भैया तैयार हुआ कि नहीं? पांडे जी की खुशी उनके हर काम से मानो छलक-छलक कर बाहर आ रही थी। खुशी की तो बात थी ही आखिर कई सालों बाद कोई बारात “पांडे भवन” से निकल रही थी, अपने बेटे हरीश की बारात को लेकर पांडे जी बड़े उत्साहित थे।

“बाउजी हम भी चलेंगे भैया की बारात में जीजी को समझाइए ना आप”, सुमन ने लगभग ठुनकते हुए बाउजी से कहा। लड़कियां भी बारात में जाने कि जिद कर रही थीं, किन्तु जीजी का सख्त विरोध था और अल्टिमेटम भी कि हमारे घर में आज तक कोई लड़की बारात में गई ही नहीं, अगर लड़कियां गई तो ठीक नहीं होगा, लेकिन लड़कियां नहीं मानी और चुपचाप तैयार हो गई थीं जाने को, पर्दे के पीछे उनका साथ राघव भैया, छोटे ताऊजी और देवास वाले फूफाजी दे रहे थे। जीजी यानी पांडे जी कि 80 वर्षीय माताजी, झुकी कमर, छोटा कद, मुंह में लगभग सभी दांत सलामत, घेरदार घाघरा लुगड़ा और रोबदार आवाज उनकी पहचान थी। जीजी ने अपने पोते-पोतियों को अपनी छाती से लगाकर सगी माँ की तरह पाला-पोसा और बड़ा किया था। पांडे जी कि पत्नी तो उम्र के 40वें पड़ाव में ही स्वर्ग सिधार गई थी। तब से इन बच्चों कि माँ वही थी। स्वभाव से बहुत कठोर लेकिन सबका ध्यान बहुत अच्छे से रखती थी। बच्चों को कभी माँ की कमी महसूस नहीं होने दी। परम्पराओं को शिद्दत से निभाने वाली जीजी के सामने किसी की नहीं चलती थी, यहाँ तक कि बा साब की भी कभी नहीं चली उनके आगे। बहू के सामने दिनभर बैठक में बैठकर हुकुम चलाने वाली जीजी में उसके गुजरने के बाद जाने कहाँ से इतना दम आ गया था कि 6-7 लोगों का सारा काम खुद ही करने लगी थी।

27 बरस पहले सबसे छोटे काका जी की बारात निकली थी, उसके बाद कोई बारात न निकाल पाई थी इस घर से। कहने को तो हरीश के दो बड़े भाई सुरेश और सतीश भी हैं, लेकिन दूसरे नंबर के सुरेश ने किसी विजातीय लड़की से कोर्ट विवाह कर लिया था इसलिए जीजी ने उसे घर निकाला दे दिया था, बहुत हंगामे हुए थे उस वक्त। जीजी ने पूरा घर सिर पर उठा लिया था। बेटे के बिगड़ने का आरोप लगाकर बेचारे पांडे जी को कई दिन कोसती रही थी। सबसे बड़ा बेटा सतीश कुछ सालों पहले घर से गायब हो गया था। पांडे जी ने बहुत तलाशा एक-एक रिश्तेदार, दोस्त, पुलिस, कोर्ट सब जगह आखिर कहीं से पता चला कि हरिद्वार मे उन्हें साधुओं की टोली के साथ देखा गया था, बेचारे पांडे जी तुरंत ट्रेन पकड़ कर हरिद्वार पहुंचे, चप्पा-चप्पा छान मारा, हरिद्वार का लेकिन नहीं मिला सतीश। थक कर बैठ गए और फूट-फूट कर रोने लगे। फिर किसी ने बताया कनखल में साधुओं के बड़े टोले ने पड़ाव डाला है। बेचारे बस पकड़ कर वह पहुंचे सतीश मिल गया। पहले तो उसने पिता को पहचानने से ही इंकार कर दिया लेकिन बाद में बोला कुछ भी कर लो, मैं आपके साथ नहीं जाऊंगा। क्या करते बेचारे पांडे जी बुझे मन से घर आ गए। आते ही जीजी ने दहाड़े मार कर रोना और पांडेजी को कोसना शुरू कर दिया और बेटे के घर छोड़ने का कारण तक कह दिया पांडे जी को।

बहरहाल, बारात सज गई थी। द्वारचार की रस्में काकी-भाभियाँ निभा रही थीं। जाते समय लड़कियों को तैयार देखकर जीजी ने फिर लड़कियों को डांटा और कलाप करने लगी, लेकिन कुछ महिलाओं ने जीजी को समझाया कि पुराना जमाना गया। आजकल तो बारात में लड़कियां भी जाती हैं। जीजी भुनभुनाती रह गई और बारात रवाना हो गई। तीन घंटे में बारात लड़की वालों के घर पहुँच गई थी, वहाँ सारी रस्में बहुत अच्छे से हो गई थीं। फेरों के बाद बारात विदा भी हो गई। बस अपनी गति से चल रही थी। सब लोग थक कर सो गए थे। तभी अचानक बस झटके से रुक गई। एक भैंस को बचाने के चक्कर में गाडी रोड से नीचे जाकर एक पेड़ से टकरा गई थी। ड्राईवर सीट के पीछे ही दूल्हा-दुल्हन बैठे थे। बस रुकते ही चीख पुकार मच गई थी। सबसे ज्यादा दूल्हे को लगी थी, माथे से खून की धार बह रही थी, किसी ने रुमाल लगाकर खून रोका, कुछ लोगों को मामूली खरोचे आई थीं। बहू सुरक्षित थी, बस को तुरंत पास के गाँव में प्राथमिक चिकित्सालय में ले जाया गया, जहां मरहम पट्टी कर दी गई थी। कोई गंभीर बात नहीं लग रही थी। लेकिन सबके मन में एक ही भय रह-रह कर घूम रहा था कि घर पहुँचते ही जीजी तो घर सर पर उठा लेगी और बेचारी नई बहू को इस दुर्घटना का दोषी मानेगी। भारी मन से बस रवाना हुई, सब भगवान से प्रार्थना करते जा रहे थे। दुल्हन भी बेचारी बहुत घबराई हुई थी। आखिर बारात द्वार पर पहुँच ही गई। द्वराचार-नेग के लिए बुआ और बहने तैयार खड़ी थीं, बारात से लौटी लड़कियों ने भी झटपट देहरी के भीतर जाकर मोर्चा संभाल लिया। जैसे ही दूल्हा-दुल्हन बस से उतरे, दूल्हे के सिर पर बंधी पट्टी देखकर सब काना-फूसी करने लगे थे। उन्हें काकाजी ने इशारे से चुप रहने को कहा और जीजी को बाहर बुलाने के लिए आवाज दी लेकिन जीजी बाहर कैसे आती? बिल्कुल परंपरागत महिला जो थी, उन्होंने भी वही किया जैसा कि आमतौर पर पुराने जमाने की महिलाएं करती हैं। विधवा होने का सारा दोष खुद के सर मढ़ लेती हैं और खुद को शुभ कार्यों से दूर कर लेती है। हालांकि ऐसा करके वह खुद को बड़ी मुश्किल से रोक रही थी। जीजी नई बहू को देखने को आतुर थी। नेगचार की रस्म अदायगी के बाद घर की महिलाओं ने एकी-बेकी खिलवाई और कांकण डोरे छुड़वाए, उसके बाद जैसे-तैसे जीजी को बाहर बुलाया गया, सबको किसी बड़े हंगामे कि आशंका या यूं कहिए इंतजार ही था। लाल छींट वाले लुगड़े के पल्लू से मुंह पोंछती जीजी बाहर निकली। ताईजी ने नई बहू और हरीश को पैर छूने का इशारा किया और उसी के साथ एक चुप्पी-सी छा गई। सब के सब जीजी की प्रतिक्रिया के इंतजार में सहमे से बैठे थे। लेकिन जीजी बहुत शांत दिखाई दे रही थी, उन्हें देख कर प्रतीत हो रहा था कि शायद उन्हें किसी से हादसे की खबर मिल चुकी थी। जैसे ही दोनों ने पैर छुए जीजी की आँखों से आंसुओं की धार बह निकली।

सिर पर हाथ फेरकर गले लगा लिया हरीश को। तब तक नई बहू सहमी-सी खड़ी रही। फिर नई बहू की बलैया लेकर कहा, “अखंड सौभाग्यवती रो बेटा, पीलो पेरो ने मीठों जीमो, बेटी थारा चूड़ा में भोत बल है जो नानो बची गयो। भगवान की दया से इतरा पेज उतरी नी तो कई भी हुई सकतों थो। थारे तो नी लगी नी? चल अबे तू आराम करे ले थकी गई होगी, ले छोरी संगीता भाभी के कमरा में ली जा।” भीषण तूफान आते-आते रह गया था। सब हतप्रभ थे साथ ही खुश भी।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’