जन्मों का कर्ज़-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Janmo ka Karz Story in Hindi
Janmo ka Karz

Story in Hindi: कहा जाता है इंसान को उसका कर्ज़ा इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में ज़रूर उतारना पड़ता है।

ऐसे ही हुआ उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में रहने वाले रघुनाथ और बृजभूषण के साथ। वह दोनों मेरठ के एक आम से मोहल्ले में रहते थे। उन दोनों की दुकान सदर बाज़ार में आसपास थी। रघुनाथ की कपड़ों की दुकान थी जहां हर तरीके की हर उम्र के लोगों की पोशाकें मिलती थीं। बृजभूषण का फर्नीचर का काम था। वह बना बनाया फर्नीचर बेचता और लोगों की फरमाइशों के आधार पर उनके लिए फर्नीचर बनाता भी था।

दोनों के काम अलग थे और घर तो दूर अलग मोहल्ले में थे। परंतु एक बात को लेकर उन दोनों में हमेशा झगड़ा होता था और वह था गाड़ी खड़ी करने की जगह को लेकर। बाज़ार में दुकानें तो क‌ईं थीं पर पार्किंग की जगह बहुत कम। इसलिए कभी तो रघुनाथ को तो कभी ब्रजभूषण को गाड़ी खड़ी करने की परेशानी झेलनी पड़ती थी। उसे दुविधा के लिए दोनों एक दूसरे पर इल्ज़ाम लगाते रहते और अक्सर बात बढ़ जाती।

एक बार तो झगड़ा बहुत बढ़ गया था जब ब्रजभूषण की कार रघुनाथ की कार से थोड़ी टकरा गई थी। बात मार पीट पर उतर आई थी। बाज़ार वालों ने बीच बचाव करा वरना तो न जाने क्या हो जाता। उसके बाद तो दोनों एक दूसरे की शक्ल से भी नफ़रत करने लगे थे। लोगों के समझाने पर अब वह दोनों कार की जगह स्कूटर से दुकान आने लगे थे।

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उन दोनों के बीच की दुश्मनी और बाज़ार रोज़ की तरह चल ही रहा था कि अचानक एक दिन बाज़ार वालों को खबर मिली के पास के मोहल्ले में सामुदायिक दंगे भड़क उठे हैं। बाज़ार बंद करने का फटाफट निर्णय लिया गया। सब लोग जल्दी-जल्दी अपनी दुकान बढ़ाकर घर की तरफ चल दिए। शाम तक दंगों का शोर पूरे शहर में फैल गया। अपनी दुकानों के बारे में सोचकर हर आदमी परेशान था, “ कब तक यह झगड़ा चलेगा? जल्दी काबू में आ जाएगा या और बढ़ेगा? घर कैसे चलेगा? अगर बात ज़्यादा बढ़ गई तो क्या होगा?” हर आदमी के दिमाग में एक ही चिंता थी।
परंतु उस वक्त शायद सभी का वक्त उलटी दिशा में चल रहा था। दंगे बढ़ते बढ़ते रघुनाथ के मोहल्ले के करीब आ गए। लोगों के ऊपर एक जुनून सा सवार था। क्या और क्यों कर रहे हैं उन्हें कोई होश जैसे था ही नहीं। मार काट करना, दुकानों और वाहनों को आग लगाना यह सब वह कर रहे थे।
उनके पास आने की खबर सुनते ही रघुनाथ ने पत्नी और बच्चों को अपने साले के घर दिल्ली भेज दिया। पड़ोस की एक गाड़ी दिल्ली जा रही थी। किसी तरह जगह बनाकर उसने उन्हें तो गाड़ी में बिठा दिया और पत्नी से कहा, “ मैं घर बंद कर दूसरे ज़रिए से वहां पहुंचता हूं।” उनके निकलने के बाद वह घर में से कुछ ज़रूरी सामान एक बैग में रखता है और घर में ताले लगाने लगता है कि दंगाई उसके मोहल्ले में आ जाते हैं।

जान बचाने के लिए वह तेज़ी से वहां से भागा और छिपता छिपाता ब्रजभूषण के मोहल्ले में आ गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वहां से कैसे खुद को बचाता हुआ दिल्ली पहुंचे। तभी ब्रजभूषण वहां से निकल रहा था। उसकी नज़र रघुनाथ पर पड़ती है, “ रघुनाथ, तुम यहां छिपे क्यों बैठे हो? क्या हुआ?” रघुनाथ ब्रजभूषण को पूरी बात बताता है। ब्रजभूषण का रघुनाथ से झगड़ा ज़रूर था परंतु इंसानियत के नाते वह रघुनाथ को अपने घर ले आता है।
“तुम यहां आराम से बैठो, मैं तुम्हारी पत्नी से तुम्हारी बात करा देता हूं।” रघुनाथ अपनी पत्नी को अपने सकुशल होने की खबर देता है। ब्रजभूषण के यहां रघुनाथ आराम से रात बसर करता है।
प्रभु की कृपा से अगले दिन खबर मिलती है कि दंगों पर लगाम कस दी गई है। फिलहाल एक दिन का कर्फ्यू रखा गया था। ब्रजभूषण के यहां रघुनाथ सुरक्षित हो जाता है और यह बात उसके मन में बैठ जाती है। कर्फ्यू हटने पर वहां से जाते वक्त वह ब्रजभूषण से कहता है, “ मैं तुम्हारा कर्ज़दार हूं, तुमने मुझे मौत के मुंह से बचाया। जिंदगी भर मैं तुम्हारा एहसानमंद रहूंगा, धन्यवाद!”

कुछ वक्त बाद अपने व्यापार के चलते ब्रजभूषण मेरठ से कहीं और चला जाता है। समय बीतता है और रघुनाथ और ब्रजभूषण अपने अपने वक्त पर स्वर्ग सिधार जाते हैं।

कुछ समय बाद…….
गुजरात के घने जंगल में बड़े छोटे कईं तरीके के खतरनाक पशु पक्षी रह रहे थे। झरने, नहर और पेड़ पौधे थे उसे सुंदर से जंगल में। एक हिरनी अपने बच्चे को जन्म देने वाली थी। वह अपने साथियों के साथ बहुत खुश थी। जंगल अपने कानून के चलते अच्छे से पल रहा था तभी एक दिन कुछ शिकारी जंगल में आए और उन्होंने सभी जानवरों और पक्षियों को मारना शुरू किया। अपनी जान बचाने के लिए सब जानवर इधर-उधर भागे।
हिरनी भी जान बचाने के लिए भागी और एक गुफा में घुस गई। वह बेचारी घायल हो गई थी और अपने परिवार से बिछड़ भी गई थी। तभी उसको प्रसव पीड़ा शुरू होती है। वह तकलीफ में ज़ोर से चीखने लगती है। गुफा के अंदर एक शेरनी रहती थी। आवाज़ सुनकर वह हिरनी के पास आती है और उसे खाने की सोचती है। तभी हिरनी एक बच्चे को जन्म देती है। बच्चे को जन्म देती ही हिरनी मर जाती है।

शेरनी बच्चे को ध्यान से देखने लगती है पर आश्चर्यजनक बात होती है कि वह उसे कुछ नहीं कहती उल्टा वह उस बच्चे को चाटने लगती है। कुछ समय बाद जब बच्चे में खड़े होने की ताकत आती है तो शेरनी उसे पानी के पास तक ले जाती है। कुछ दिन तक अपने बच्चे की तरह उसकी देखभाल करती है। बच्चा बड़ा होगा सुन्दर सा हिरन बन जाता है और अपने झुंड के पास जाने लगता है।
जाते-जाते वो पलट कर शेरनी को प्रश्न भरी नज़रों से देखता है जैसे पूछ रहा हो, “तुमने मुझे खाया क्यों नहीं, बल्कि मेरा ध्यान भी रखा? “शेरनी भी उसकी तरफ देखती है और जैसे बता रही हो, “ तुम्हें शायद याद नहीं पर मुझे याद है। पिछले जन्म में तुम ब्रजभूषण नाम के आदमी थे और मेरा नाम रघुनाथ था। तुमने मेरी जान बचाई थी और ध्यान भी रखा था। आज कुदरत ने इस जन्म में हमें इस हालात में खड़ा किया है। तुम्हारी जान बचाकर और ध्यान रखकर आज मैंने जन्मों का कर्ज़ अदा किया। अब हम दोनों हर ॠण से मुक्त हैं।” कह कर शेरनी गुफा के अंधेरे में खो जाती है और हिरन अपने परिवार के पास चला जाता है।