सोचती हूँ—गृहलक्ष्मी की कविता
Sochti Hu

Hindi Poem: सोचती हूँ
यदि स्त्रियाँ
देवी या माया न होतीं
नर्क –स्वर्ग का द्वार
अथवा अबला या
नीर भरी दुःख की बदली न होतीं
तो क्या होतीं……?
तब सम्भव है
वे भी मनुष्य होतीं
सिर्फ मनुष्य……
न कम न अधिक।
तब वे अपने कमजोर पँखो से
उड़ने का अभ्यास करने के स्थान पर
आसमान की ऊँचाई और गोलाई नाप रही होतीं
ग्रह,नक्षत्रों से बातें कर रही होतीं
और तो और
इंद्र की सभा में जाकर
नृत्य कर रही अप्सराओं
और सहमी हुई इंद्राणी को बतातीं
कि हमें ऐसे स्वर्ग की कामना नहीं है
जहाँ स्त्रियाँ ,रति का साधन मात्र हैं
पुरुष के संकेत पर
नृत्य करती हैं और गाती हैं
बिना थके आठों पहर।
हम मृत्युलोक की स्त्रियां हैं
जो स्वाभिमान और सम्मान से जीती हैं
पुरुष की सेविका नहीं,सहयोगी बनकर।
यह बात क्षीर सागर पर लेटे
विष्णु के पैर दबा रही लक्ष्मी
और माता सरस्वती तक भी पहुँचती।
वह देखती चकित होकर एक दूसरे को
कि मजबूर स्वर्गलोक की देवियाँ हो सकती हैं
मृत्युलोक की स्त्रियाँ नहीं।

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