Poem in Hindi: जब छतों पर मिलकर
सभी दिल का हाल सुनाते थे,
बातों ही बातों में दिल के,
हर जख्मो पर मरहम लग जाया करते थे।
कभी जो छत थीं, मिलती थी आपस में,
जहां प्रेम की सीढ़ियों पर रिश्ते चढ़ा करते थे,
एक दूसरे के सुख दुख के फूल,
जब हर दिल में खिला करते थे ।
मिलते थे गर्मियों में,
छतों पर छिड़काव करके,
जान लेते थे एक दूसरे के दिल का हाल,
बस जरा सी ही बात करके ।
सर्दियों की धूप में सलाईयों संग,
बातें भी बुना करती थी,
जब एक दूसरे के अचार पापड़ की निगरानी,
सबकी जिम्मेदारी बनती थी ।
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जब एक के घर अचानक,
कोई मेहमान आता था,
सिर्फ उसका ही आंगन नहीं महकता,
हर घर पड़ोस का व्यंजनों की महक से भर जाता था।
चाची के करेले तो, ताई के कढ़ी चावल,
बातों बातों में ही ढेर सारे पकवान इकठ्ठे हो जाते थे,
वो भी क्या दिन थे जब,
मेहमान नवाजी भी बड़े ठाट से निभाते थे ।
मां कहती थी देख ये शरबत,
पड़ोस की चाची के घर दे आना,उनका भाई आया है,
मामा कहकर नमस्ते करना,
और अच्छे से पांव छूकर उनसे मिल आना ।
मोहल्ले की बेटी की शादी में सब,
घराती कहलाते थे,
पड़ोसी तो बाद में थे,
पहले चाचा ताऊ के संबंध निभाते थे ।
किसी के घर जच्चा बच्चा के लिए,
पात पंजीरी तो बातों ही बातों में बन जाती थी,
बच्चे तो यूं ही पल जाते थे,
क्रेच और आया तक बात ही नहीं आती थी ।
यदि घर किसी के कोई बीमार हो जाता था,
पूरा मुहल्ला मिलकर उसका हाथ बंटाता था,
ना ही किसी के घर नौकर थे,ना ही कोई आया थी,
फिर भी जिंदगी सबकी मस्ती में जिया करती थी ।
