एक छत के नीचे-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Grehlakshmi Story in Hindi
Grehlakshmi Story in Hindi

Grehlakshmi Story in Hindi: अरे भई सुबह के साढ़े सात बज चुके हैं,अभी तक ब्रेकफास्ट नहीं बना क्या ? मुझे ऑफिस भी जाना है ऑफिस के लिए मुझे लेट हो रहा है , दिव्यांशी तुम सुन भी रही हो क्या ? पता नहीं कहां खोई रहती हो। सारा दिन घर में ही तो रहती हो , फ़िर भी मैनेजमेंट नहीं कर पाती हो घर का तुम, पता नहीं क्या करती रहती हो ? मुझे देखो मैं कितना कुछ हैंडल करता हूं। सचिन डाइनिंग टेबल पर बैठकर ब्रेकफास्ट में हो रही देरी की वजह से दिव्यांशी से नाराज़ हो रहा था।

दिव्यांशी किचन में सचिन का मनपसंद ब्रेकफास्ट बनाने में लगी हुई थी और साथ ही मैं उसकी सभी बातों को चुपचाप सुन भी रही थी। थोड़ी देर बाद दिव्यांशी डाइनिंग टेबल पर सचिन के लिए ब्रेकफास्ट लगा देती है। सचिन दिव्यांशी से कहता है – अरे यार तुम मुझे बहुत लेट कर देती हो,यह तुम्हारा हर दिन का हो गया है। दिव्यांशी सचिन से कहती है – ” सॉरी सचिन”। सचिन कहता है -” अरे यार अब तुम रोना मत शुरू कर देना”। सचिन ब्रेकफास्ट खत्म करके दिव्यांशी को रात आठ बजे आफिस की पार्टी के लिए अच्छे से तैयार होने के लिए कहते हुए घर से ऑफिस के लिए निकल जाता है। 

दिव्यांशी कुछ देर तक घर की चौखट पर सचिन को जाते हुए एक चित्त देखते ही रही, फ़िर घर के कामों में लग गई। रात के आठ बजे ऑफिस की पार्टी के लिए दिव्यांशी अच्छी- सी  साड़ी पहनकर अच्छे से  तैयार हो गई। शीशे में खुद को देखकर दिव्यांशी के होठों पर एक हल्की – सी मुस्कान आ चुकी थी,तभी दिव्यांशी की नजर शीशे में उसकी वकालत की डिग्री की छवि पर पड़ती है, जिसे देखकर वो मायूस हो जाती है। उसे अपने सभी सपने याद आने लग जाते हैं। तभी कमरे में सचिन दाखिल हो जाता है,

सचिन को देखकर दिव्यांशी मुस्कुराती है मगर सचिन उसकी मुस्कान को अनदेखा कर देता है और कुछ पलों के बाद सचिन दिव्यांशी के साथ  अपनी गाड़ी में पार्टी में शामिल होने के लिए चल पड़ता है , पूरे सफ़र में दिव्यांशी अपने सपनों की दुनिया में ही खोई रहती है और मीठी सी हसीं अपने चेहरे पर बनाए रखती है,वहीं दूसरी ओर सचिन बार – बार अपनी घड़ी में समय ही देखता रहता है, और सोचता रहता है कि कहीं मुझे पार्टी में शामिल होने के लिए देरी ना हो जाए। वह दिव्यांशी के चेहरे की हसीं और उसके सपनों की दुनिया के बारे में अभी भी अजनबी ही बना हुआ था। यह सफर अब दो हिस्सों में विभाजित हो गया था, पहला हिस्सा दिव्यांशी जो अपने सपनों को पूरा ना कर पाने का दुःख किसी से बयां नहीं कर पा रही थी उसे अपनी मुस्कान और हसीं के पीछे छुपाए रखती है। दूसरा हिस्सा सचिन जो अपनी नौकरी अपने दोस्त और समाज में अपनी एक छवि बनाने के लिए अपने जीवनसाथी के सपनों को पूरी तरह से भूल चुका था। सफर अपनी चरमसीमा पर था ठंडी हवाओं का झोंका गाड़ी के अंदर के वातावरण को खुशनुमा बनाए रखने के लिए पूरी कोशिशें कर रहा था। 

कुछ देर बाद दोनों पार्टी में शामिल हो गए थे। पार्टी में सचिन सभी से मिल रहा था और  सभी का अपनी पत्नी दिव्यांशी से परिचय भी करवा रहा था। सचिन सभी से एक ऑफिस बॉस के रुप में मिल रहा था, मगर अपनी पत्नी दिव्यांशी को एक गृहणी के रूप में ही मिलवा रहा था। वह जब भी किसी से मिलता तो स्वयं को प्रतिभावान और प्रतिभाशाली दिखाता और दिव्यांशी को कमज़ोर , लाचार , एक गृहणी जिसका काम सिर्फ घर में खाना बनाना और घर की रखवाली करना ही होता है। दिव्यांशी को यह सबकुछ सुनकर बहुत दुःख होता है, दिव्यांशी अपने मन ही मन में स्वयं को कठघरे में खड़ा पाती है और उन सभी अपराधों को स्वीकार करती है जिन्हें उसने कभी किए भी नहीं थे। 

पार्टी से दोनों घर की ओर अपनी गाड़ी में बैठकर चल पड़ते हैं। इस बार दिव्यांशी गुस्से में थी। दिव्यांशी का आत्मविश्वास आज इस पार्टी में पूरी तरह से टूट चुका था। 

दिव्यांशी की आंखों में आंसू बस निकलने के लिए एक बहाने की तलाश में थे। घर आकर दिव्यांशी और सचिन दोनों अपने कपड़े बदलकर कुछ समय तक टेलीविजन देखते हैं और फिर सो जाते हैं। घर में इस प्रकार की ख़ामोशी कोई नई चीज नहीं थी , मगर इस बार की ख़ामोशी कुछ अलग थी क्योंकि इस बार किसी के आत्मसम्मान की नीलामी शहर के बीचों- बीच सभी के सामने हुई थी। 

सुबह की शुरुआत हर रोज की तरह ही थी सचिन का दिव्यांशी पर ब्रेकफास्ट के लिए गुस्सा करना और फ़िर सबकुछ नॉर्मल हो जाना, मगर ब्रेकफास्ट के साथ में आज दिव्यांशी का एक ख़त भी था। जिसमें दिव्यांशी ने लिखा था – ” प्रिय सचिन, मैं आज तुमसे अपनी दिल की बात कहना चाहती हूं,जिसकी वजह से मैं आज आपको यह ख़त लिख रही हूं। मैं आज अपनी जिंदगी की नई शुरुआत करने जा रही हूं , मैं अपनी वकालत को आज फिर से अभ्यास में ला रही हूं। सचिन मैं एक अच्छी गृहणी के साथ – साथ में एक अच्छी वकील भी बन सकती हूं। मैं तुम्हारी पत्नी हूं इसलिए मैं तुम्हें यह ख़त लिख रही हूं…”। सचिन इतना पढ़कर ख़त को रख देता है ओर दिव्यांशी से कहता है -” मैं तुमसे इस बारे में बाद में बात करूंगा”।  दिव्यांशी कहती है – सचिन मैं अपना इरादा बना चुकी हूं। अब मैं रुकने वाली नहीं हूं। 

सचिन अचंभित रह जाता है,उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। दिव्यांशी के इस व्यवहार ने सचिन को बैचेन कर दिया था। सचिन को समझ नहीं आ रहा था कि दिव्यांशी यह सबकुछ क्यों कर रही है ? दिव्यांशी कुछ पलों के लिए अपने होठों पर ख़ामोशी रखती है और फिर सचिन से कहती है – “सचिन सम्मान पाने के लिए हमें मेहनत करनी होती है,आत्मा का सम्मान करना ही ईश्वर का सम्मान करना होता है। सचिन  हम दोनों एक ही छत के नीचे रहते हैं। तुमने मेरा अपमान नहीं बल्कि मेरा आत्मसम्मान किया है”। 

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