Sahmati Grehlakshmi ki Kahani: घंटे भर से बादलों के संग चलती हुई सुकन्या में विचित्र सा स्फुरण प्रस्फुटित हो रहा था । पहाड़ों की खूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं जब बादल बिल्कुल पास से गुजरते हों या साथ-साथ चलते हों । वह चली जा रही थी । समय व्याकुल सा था , लम्हे स्तब्ध थे , लंबे चिनार के दरख़्तों ने उसे झुककर देखने की कोशिश की थी , पत्ता-पत्ता सवाल कर रहा था ………..सुकन्या तुम्हारे पैर किस ओर जा रहे हैं …? मंदिर की घंटियां और मदहोश करने वाली वह आवाज……… नजदीक आती जा रही थी । अभी एक कदम और आगे बढ़ाने वाली ही थी कि शाश्वत ने उसके कंधे को झकझोरते हुए कहा……“ सुकन्या तुम कहां चली गई थी ? घंटे भर से मैं ढूंढ रहा था , सामने पड़ा वह चट्टान तुम्हें दिखाई नहीं पड़ रहा था अगर एक कदम भी आगे बढ़ती तो गिर पड़ती ।” सुकन्या अचानक होश में आई ।
“वह आवाज ……. शाश्वत देखो ना ! कोई बहुत ही सुंदर भजन गा रहा है , क्या तुम्हें सुनाई पड़ रही है ? ”
“हां ! मैं भी सुन रहा हूं । मंदिर के ऊपर स्पीकर लगा हुआ है , इस कारण से यह आवाज चारों तरफ गूंज रही है ।”
“चलो ना उस मंदिर में । मैं वहां जाना चाहती हूं ।” सुकन्या ने कहा ।
“कल चलेंगे । अभी हमें एक सप्ताह यहां रहना है । जल्दी ही शाम ढलने वाली है । पहाड़ों पर दिन जितने ही खूबसूरत होते हैं शाम उतनी हीं भयावह होती है ।” शाश्वत ने कहा ।
दूसरे दिन शाश्वत और सुकन्या दोनों मंदिर गए । उन्होंने देखा , सामने मंच पर एक लड़की माइक पर भजन गा रही थी । उसने अपनी आवाज से सभी को मंत्रमुग्ध कर रखा था । भजन खत्म होने के बाद सुकन्या आवाक रह गई । श्याम वर्ण की , साधारण सी उस लड़की को कुछ लोगों ने सहारा देकर उसे मंच से उतारा और फिर व्हील चेयर पर बैठा कर उसे ले गए ।
सुकन्या रात में सो नहीं पाई । उस लड़की की आवाज और चेहरा उसके मन-मस्तिष्क में बार-बार घूम रहा था । दूसरे दिन उसने फिर जिद किया शाश्वत से , मंदिर जाने के लिए । एक सप्ताह बीत चुका था । दोनों को लौटना था । जाने से पहले पता नहीं उस दिन सुकन्या को क्या हुआ कि वह उस लड़की से मिलने चली गई । जब यह जाना कि पास में ही वह अपने पिता के साथ रहती है तो वह औपचारिकतावश उस लड़की के साथ उसके पिता से मिलने उसके घर चली गई ।
चेहरे पर झुर्रियां पड़ चुकी थी । शरीर भी पहले से क्षीण हो चला था । कुर्सी पर बैठे उस वृद्ध व्यक्ति को पहचानने में शाश्वत और सुकन्या को एक पल भी नहीं लगा । यह वही डॉक्टर था , जिसकी देखरेख में उसकी बेटी पैदा हुई थी और जिसके केबिन के बाहर उसे छोड़कर दोनों चले गए थे । दोनों का शरीर शिथिल पड़ चुका था , चेतना शून्य हो चली थी । वह वृद्ध व्यक्ति भी अवाक था । उसकी यादाश्त अभी कमजोर नहीं हुई थी ।
परंपराओं और रूढ़िवादिता में जकड़े गांव के एक संभ्रांत परिवार में सुकन्या का विवाह हुआ था । विवाह के पांच सालों तक कोई संतान ना होना और फिर यकायक गर्भ ठहर जाना , सुकन्या के जीवन में यंत्रवत चल रहा था । ससुराल के तानों और पुत्र की अपेक्षा ने सुकन्या के जीवन को अभिशप्त बना डाला था । मानसिक यंत्रणा झेलते-झेलते वह जर्जर हो चुकी थी । शाश्वत अपनी हजार अच्छाइयों के बाद भी परिवार का विरोध नहीं कर पाया था । …….. और फिर नौ महीने के बाद , वह अंतहीन रात आई जब डॉक्टर ने बताया कि बेटी हुई है , यह सुन सुकन्या का शरीर अभी कांप ही रहा था कि नर्स बच्ची को लेकर केबिन में आई । उसे देखकर सुकन्या और शाश्वत होश खो बैठे । एक तो बेटी ऊपर से अपंग और कुरूप …….!
इस क्रूर माता-पिता को देख उस दिन बादल भी चित्कार कर बैठा । प्रकृति भी विलाप कर रही थी …….तेज बारिश और आंधी- तूफान में , केबिन के बाहर , उस बच्ची को छोड़ शहर से गांव भाग जाना और सभी को यह बताना कि…… मरा हुआ बेटा पैदा हुआ था ।
यह देखकर विधाता भी हतप्रभ थे अपने द्वारा गढ़े इन दो मानवों को देखकर ।
साथ हीं वह कैसा वहशी परिवार होगा ? जिसका सीना ‘मरे हुए बेटे’ के लिए भी गर्व से चौड़ा हो गया ।
…..… और फिर उस दिन से लेकर आज तक सुकन्या की हर रातें उसी रात की तरह हर रोज तूफान लेकर आती है । मानसिक रूप से बीमार सुकन्या को डॉक्टर की सलाह से शाश्वत हमेशा उसे पहाड़ों पर घुमाने ले जाता था।
“तुम लोग तो इस बच्ची को छोड़कर चले गए किंतु मैं इस बच्ची का रुदन नहीं झेल पाया । मेरी भी कोई संतान नहीं थी , किंतु मुझ में और तुम लोगों में यही अंतर है कि मैंने इसे ईश्वर का वरदान समझा और
तुम लोगों ने शाप समझ कर इसे त्याग दिया । तुम लोगों को तो मैं कभी भूल ही नहीं सकता था । भगवान ने इसे अपंग बनाकर दुनिया में भेजा मगर एक सुंदर आवाज भी दी । मैं और मेरी पत्नी ने इसे पाला-पोसा , पढ़ाया-लिखाया । आज यह डॉक्टर बन चुकी है लेकिन उसके साथ हीं यह इतना अच्छा गाती थी कि आसपास के लोग इसे जानने-सुनने लगे । आज इस उम्र में ही इसकी इतनी ख्याति हो गई है कि देश-विदेश के मंच पर इसे भजन गायन के लिए बुलाया जाता है । पांच साल हो चुके हैं , मेरी पत्नी का देहांत हो चुका है । अब सिर्फ हम दोनों ही हैं एक दूसरे के लिए । यहां के मंदिरों में बुलाया गया था इसी कारण मैं इसे लेकर यहां आया । मैंने इसके जन्म की कहानी इससे छुपाया नहीं है । यह सब कुछ जानती है ।
शाश्वत और सुकन्या दोनों बिलख उठे । सुकन्या उस डॉक्टर के पैरों पर गिर पड़ी ………
“मैं माफी के लायक नहीं हूं । हम दोनों ने बहुत ही घिनौना अपराध किया है । इसकी सजा ईश्वर मुझे आज भी दे रहे हैं । इस अपराध के बाद मैं एक रात भी सो नहीं पाई । मैं किस अधिकार से आपसे अपनी बेटी मांगूं ……?”
“आपको मांगना भी नहीं चाहिए ।”
अचानक उसकी आवाज गूंजी ।
“आप लोगों को पता है मेरा नाम क्या है…….? मेरा नाम यामिनी है ….. अर्थात रात्रि ……. आप लोगो के जीवन की मैं रात्रि थी और आप लोगों ने मुझे रात्रि में हीं मेरा त्याग किया था । आपने अपमान किया था उस कुरूप और अपंग बेटी कि नहीं , बल्कि विधाता के अंश का आपने अपमान किया था । फिर विधाता आपको कैसे माफ कर सकते है । आज मेरे लिए मेरे पिता , गुरु , ईश्वर सब कुछ यही हैं । उसने डॉक्टर की तरफ इशारा करते हुए कहा । मुझे भूलकर भी कभी बेटी मत कहिएगा ।”
“हां ! मैने विधाता का अपमान किया है। ”
कहती हुई सुकन्या धरती पर गिर पड़ी । शाश्वत भी होश में नहीं था ।
कई दिनों तक पहाड़ों पर रहने के बाद सुकन्या और शाश्वत अपने घर लौट आए थे । वे माता-पिता के अधिकार से वंचित हो चुके थे , उन्हें यामिनी के द्वारा माफी भी नहीं मिली । किंतु आज जिंदगी ने उन्हें बस इतना ही सुकून दिया था की यामिनी ने ‘बेटी’ कहने का अधिकार उन्हें दिया था , साथ हीं उसने अपनी सहमति दी , की सुकन्या और शाश्वत कभी भी आकर उससे मिल सकते हैं ।
पहाड़ों पर बादलों की क्षीण सी हंसी दिखी थी , चिनार के दरख़्तों में दृढ़ता थी , और पतों ने सवाल करना बंद कर दिया था ।
सहमति-गृहलक्ष्मी की कहानियां
