गृहलक्ष्मी की कहानियां: अरे! मुकुट तुझे पता है कि नहीं? बड़े साहब मेडिकल कॉलेज में आईसीयू में एडमिट हे। सीरियस कंडीशन में हे।
अरे! यार कौन जाए उनसे मिलने?
उम्र भर तो उन्होंने रिश्वतखोरी की। छोटे बड़े सभी को दोनों हाथों से लूटा। उनका तो उम्र भर यही सिद्धांत था,कि पहले टेबल पर पैसा,फिर काम दूजा। उनके तो यही सिद्धांत था कि खुद खाओ, उपर भी खिलाओ। वो इसीलिए उम्र भर पकड़े जाने से बचे भी रहे। नेताओं से,ऊपर वालों से भी पहचान और सांठगांठ थी।
जिसने भी उनको समझाया,वो ही उनका कोपभाजन बना। तुमने,हमने जिसने भी उनको समझाया,उसका दूरदराज ट्रांसफर करा दिया, और एक पोस्ट रिवर्ट करा दी। अपने तो कहते भी थे कि ऊपर से ईश्वर देख रहा हे, कुछ उससे डरो? वो हंसी में टाल जाते थे?
अरे! भाई,वो आईसीयू में हे?
वो अपने दोनों से मिलना भी चाह रहे हे। उन्होंने मिलने बाबत जय के साथ समाचार भी भेजा हे।
लेकिन आईसीयू में हैं तो वहां तो मिलने नहीं देते हैं।
वहां जाकर पता चला कि वो आज ही स्पेशल वार्ड में शिफ्ट हुए हैं।उनको पता चला तो उन्होंने हमें अंदर विशेष अनुमति से बुला लिया।
उनको देखकर हमें लग ही नहीं रहा था कि ये बड़े साहब हैं।
हमने उन्हें देखा,वो सूख कर कांटा हो गए थे।
बड़े साहब ने हमारे हाथों को कस कर पकड़ा,और रुआंसे होकर बोले।
मुझे तुम दोनों माफ कर दो। तुम मुझे सही मार्ग बता रहे थे, किंतु मैं स्वयं ही गलत था।
मेरे कर्मों का प्रतिफल वापस लौट कर आया है। मेरे कर्मो की सजा मुझे यही मिल रही है।देखो मेरा शरीर कैसा हो चुका है।
श्रीमती जी पहले ही स्वर्ग सिधार चुकीं हैं। तीनों लड़कों की पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। सो वो अपना छोटा-मोटा धंधा करते हैं।उनका खुद के परिवार का ही खर्चा नहीं निकलता हे, सभी अपने-अपने अलग-अलग घरों में रहते हे।
मैंने भी तो अपने मां पिता की सेवा नहीं की थी। उनका समय—समय पर दिल दुखाया था। ये दिन तो मुझे देखने ही थे। मुझे तुम दोनों माफ कर दो। उस समय बस मुझे पर रिश्वत लेने का नशा चढ़ा हुआ था। अतएव तुम दोनों को भी मैंने बहुत परेशान किया। उस समय तो मैं स्वयं ही ईश्वर बना हुआ था। तुमने सच ही कहा था,मुझे मेरे कर्मो की सजा इसी जन्म में मिलेगी। मेरे कर्म लौट कर आए हैं। जैसे मैंने पैसा कमाया था, उसी रास्ते से तेजी से पैसा जा भी रहा है।
अब तो मैं शरीर से भी बहुत कमजोर हो चुका हूं। हे भगवान ! ये मुझसे क्या हो गया। मैं पैसे से तो जा ही रहा हूं,अब शरीर भी खोखला हो चुका है। बच्चे और परिवार को तो मुझे मिलने या देखने का समय भी नहीं है। कभी कभार कोई मिलने आता है।
हे भगवान मुझसे अब सहा नही जाता,मुझे उठा ले।मुझे मेरे कर्मो की बहुत ज्यादा सजा मिल चुकी है। सभी कुछ यहीं छुटा जा रहा है, मैं कुछ भी तो साथ नहीं ले जा पा रहा हूं। सब यहीं छूटता जा रहा है। हे भगवान!
अब हम भी बुझे—बुझे मन से कमरे से बाहर आ रहे थे। कर्मों का प्रतिफल जो सामने दृष्टिगोचर था।
