sakaaraatmak badalaav
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Hindi Story: आज सुबह राधेश्याम जब पार्क में सैर करने आये तो कुछ करीबी दोस्तों को उनके हाथ में अखबार देख कर बड़ी हैरानगी हुई। राधेश्याम जी के एक दोस्त ने बिना कोई इंतजार किये उनसे पूछ ही लिया कि आपको तो अखबार पढ़ना अच्छा नहीं लगता फिर आज सुबह-सुबह अपनी बगल में कौन-सी गर्मागर्म खबर छिपाये हुए घूम रहे हो। राधेश्याम जी ने कहा कि कुछ समय पहले तक तो डाकू-लुटेरों द्वारा लूटपाट की खबरें समाचार पत्रों में छपती थी।

धीरे-धीरे इन खबरों में दोस्त और रिश्तेदारों के किस्से आने शुरू हो गये। आज की खबर पढ़ कर आपको ऐसा झटका लगेगा कि आप हर किसी रिश्ते से तौबा कर लोगे। राधेश्याम जी के दोस्त ने कहा कि आये दिन तो हम पढ़ते रहते हैं कि इस जहां में कोई किसी का नहीं रहा। लेकिन आप इन बातों को छोड़ो और ठीक से बताओ कि आज का खास किस्सा क्या है? राधेश्याम जी ने अखबार आगे बढ़ाते हुए कहा कि यह लो खुद ही पढ़ लो। उनके दोस्त ने जैसे ही मुखपृष्ठ पर नज़र डाली तो वो भी हक्का-बक्का रह गया। उसने अपने बाकी साथियों को बताया कि एक सास अपनी बेटी का घर उजाड़ कर अपने दामाद के साथ रफूचक्कर हो गई। राधेश्याम जी ने कहा कि न जाने जमाने को क्या होता जा रहा है कि हर कोई वफादारी के मायने भूल कर सभी रिश्तों की पवित्रता को तार-तार कर रहा है। कल तक जहां प्यार और दोस्ती के नाम पर लोग जान तक देने को तैयार हो जाते थे, वो सभी रिश्ते-नाते अब सिर्फ किताबों और बातों तक सिमट कर रह गये हैं।

राधेश्याम जी के एक दोस्त ने मजाक करते हुए कहा कि इसमें परेशानी की क्या बात है, यह सब तो जमाने की तरक्की का ही नतीजा है। वैसे आपने तो सारी उम्र कॉलेज में बच्चों को पढ़ाने का काम किया है। आपको क्या लगता है कि आज के इंसान में ऐसी क्या तब्दीली आ गई जो वो कोई भी पाप करने से नहीं डरता। कुछ समय पहले तक जहां लोग अपनी जरूरत पूरी करने के लिये एक-दूसरे से हक से चीज मांग लेते थे, आज उसी चीज को मांगने में शर्म और डरा-धमका कर छीनने पर गर्व महसूस करते हैं। बरसों एक साथ रहने के बावजूद जहां कहीं किसी व्यक्ति के ऊपर लक्ष्मी मां अपनी कृपा की बरसात करती है तो वो अपने गरीबी के दिनों के साथ-साथ गरीब दोस्तों को भी भूलने लगते हैं।

राधेश्याम जी ने अपने मित्र से कहा कि यह सच है कि दुनिया के साथ-साथ हमारे देश ने भी बहुत तरक्की की है। लेकिन उस तरक्की ने हमें यह सब कुछ तो नहीं सिखाया, जो कुछ आज हम देखने को मजबूर हो रहे हैं। क्या इस तरह के गिरते सामाजिक स्तर को तरक्की का नाम देकर हम अपनी जिम्मेदारी से बच सकते हैं। हजारों साल के इतिहास पर कभी कोई गौर करे तो सिर्फ इतना ही फर्क समझ आता है कि पहले का युग पत्थरों का था जबकि आज के दौर में लोग पत्थरों की तरह हो गये हैं। हमने ऊंची-ऊंची इमारतें तो बनानी सीख ली है, परंतु इसी के साथ अपने दिलों को उतना ही छोटा करते जा रहे हैं। हम लोगों ने हर तरफ सड़कें और रास्ते तो बहुत बड़े बनाने सीख लिये हैं, लेकिन एक-दूसरे को देखने का नजरिया पहले से कहीं अधिक तंग कर लिया है। कल तक जहां दोस्ती-यारी के मायने लोगों के लिये ईमान और जिंदगी होता था, आज सबसे अधिक धोखा अपने सगे ही देने लगे हैं। सैर करने वाले कुछ अन्य दोस्तों में से एक ने कहा कि यदि इंसान के पास अच्छा पद और प्रतिष्ठा है तो उसके सभी गलत काम छिप जाते हैं। दुनिया वाले भी ऐसे लोगों के आगे कुछ भी बोलने की बजाए उनके आगे सिर झुकाते हैं। इस माहौल में कोई अकेला कर भी क्या सकता है? घर-परिवार से लेकर समाज के हर वर्ग में बुराई की जड़ें इतनी मजबूत हो चुकी है कि एक आम आदमी चाह कर भी इसे खत्म नहीं कर पायेगा।

राधेश्याम जी ने अपने दोस्त की सभी नकारात्मक बातें सुनने के बाद उससे कहा कि आज हमारे आसपास बुराई इसलिए नहीं पनप रही क्योंकि बुरा करने वाले लोग बढ़ गये हैं। बल्कि बुराई समाज में इसलिये तेजी से फैल रही है कि उसे सहन करने वाले आप जैसे लोग बढ़ते जा रहे हैं। चारों तरफ हर तरह का गलत काम देखते हुए भी न तो आप जैसे लोगों के मन में कोई टीस उठती है और न ही किसी मजबूर और लाचार के लिये हमदर्दी के दो बोल निकलते हैं। हर व्यक्ति रिश्तों की अहमियत को भूल कर दिखावा करने में जुटा है। जीते जी जिस इंसान की हम शक्ल देखना पसंद नहीं करते, उसी के मरने पर उसके घर घंटों बैठ कर उसकी याद में आंसू बहाते और तारीफ करते नहीं थकते। जिस व्यक्ति को हमने कभी एक चाय का प्याला तक नहीं पिलाया, उसी की मौत पर उसके मुंह में घी डालते हैं। यह जानते हुए भी अब इस लाश को किसी प्रकार का कपड़ा नहीं चाहिये, हम उसके ऊपर कीमती शाल और कपड़े डालते हैं। इन सभी बातों को देख कर आपको नहीं लगता कि हम बेवजह क्यूं जिये जा रहे हैं? जहां तक पुराने दोस्तों और रिश्तों का सवाल है तो उन्हें कभी नहीं भूलना चाहिये, क्योंकि जो काम एक सूई कर सकती है वो बड़ी से बड़ी तलवार भी नहीं कर सकती।

राधेश्याम जी के मित्र को उनकी बात अच्छी नहीं लगी तो उसने तल्खी भरे लहजे में कहा कि आप तो बहुत बड़े विद्वान हो, आप ही हमें समझा दो कि हमारे पास जादू की ऐसी कौन-सी छड़ी है, जिससे हम सारे समाज का कायाकल्प कर सकते हैं। इस बात का जवाब देते हुए राधेश्याम जी को मजबूरन कहना पड़ा कि इस दौर को बदलने के लिये किसी जादू की नहीं केवल अच्छे विचारों के आदान-प्रदान करने की जरूरत है, उसी से अच्छी सोच को मजबूती मिलती है। बुराई के अवसर तो हमें आये दिन मिलते हैं, लेकिन भलाई का अवसर जीवन में कभी-कभार मिलता है इसलिये उसे कभी भी हाथ से न जाने दो। राधेश्याम जी की राय से इत्तफाक रखते हुए जौली अंकल अपने भाव व्यक्त करते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार हम अपने घर, कपड़े और शरीर की सफाई के महत्त्व को समझते हैं, उसी तरह यदि हमें अपने रिश्तों को ताजमहल की तरह खूबसूरत बनाना है तो हमें अपने अंदर सकारात्मक बदलाव लाना ही होगा।

नकारात्मक सोच की अपेक्षा सकारात्मक सोच से आप हर काम बेहतर तरीके से कर सकते हैं।