Kahani in Hindi: घर भर में कोहराम मचा था,तारा जी सीढ़ी से गिर गई थी, सिर पर भारी चोट लगी थी, डाक्टर ने बताया कि शायद दिमाग की कोई नस फट गई थी,जो उन्हें यूं अचानक दुनिया को छोड़ अलविदा कहना पड़ा। यूं तो तारा जी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो चुकी थी, तीन बेटे थे, सभी की शादी हो चुकी थी और सभी अपने अपने परिवार में मस्त थे।
लेकिन तारा जी का यूं अचानक जाना उनके पति राधेश्याम जी पर पहाड़ टूटने जैसा था, क्योंकि राधेश्याम जी थोड़े से अस्वस्थ रहते थे, और उन्हें हर पल तारा जी के साथ की जरूरत महसूस होती थी, असल में यही वह उम्र होती है,जिसमें हमें अपने जीवनसाथी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, और जीवन साथी की जैसे आदत सी हो जाती है, इसी समय पर आकर हम जीवनसाथी का सही मायनों में अर्थ समझ पाते हैं,और फिर पूरी ज़िंदगी तो जिम्मेदारियों में निकलती ही है,ठहर कर जिंदगी जीने का आनंद तो अभी शुरु हो पाता है। अभी आकर हम एक-दूसरे के सुख-दुख में भागी होते हैं। पर ईश्वर के आगे क्या किसी की चली है ….?
राधेश्याम जी के दिमाग में हजारों सवाल चल रहे है कि अब उनकी जिंदगी किस प्रकार कटेगी, कौन उनके सुख दुख में उनके साथ होगा? क्योंकि तीनों ही बेटे शहर से बाहर रहते हैं। तारा जी तो जैसे सब कुछ इतनी आसानी से सब कुछ संभाल लेती थी। तीनों बेटे भी थोड़े बेफिक्र थे, क्यूंकि दूर शहर में रहकर वो ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकते थे और जब भी वे अपने मां-बाप को शहर चलने को कहते तो तारा जी अपने बेटों से कहती कि अभी उन्हें यहां कोई परेशानी नहीं है, यहां कस्बे में आस पड़ोस भी बहुत अच्छा है किसी चीज की कोई तकलीफ नहीं है तो तुम तीनों चिंता मत करो बस जल्दी जल्दी मिलने आते रहा करो। बेटों को भी पता था कि उनकी मां बहुत ही होशियार और मजबूत इरादों वाली है, इसलिए वे तीनों भाई भी पिताजी के स्वास्थ्य को लेकर ज्यादा चिंता नहीं करते थे।बस यथासंभव घर आकर मां पिताजी से मिल लिया करते।
Also read: सोच का फर्क
पर आज सभी सन्न थे तारा जी के अचानक जाने से ,ये तेरह दिन आने जाने वालों से मिलने करने में ही निकल गये। तीनों बहुएं घर चौंका संभालती रही। बड़ी बहू तो अक्सर आने जाने वालों के पास बैठती ,इस बीच दोनों छोटी बहुओं में पिताजी को कौन रखेगा और उनकी जायदाद और अन्य सामान को लेकर चर्चा चलती रहती। राधेश्याम जी को अपने साथ रखने के लिए कोई तैयार ना थी। क्यूंकि राधेश्याम जी को साथ में रखना मतलब उनकी सेवा तो उन्हें मन ना होते हुए भी करनी ही पड़ती, और अब तो वे आजाद पंछी का सा जीवन बिता रही थी,ना ही किसी की रोक-टोक,ना हीं किसी के लिए एक समय का भी भोजन बनाना। उल्टे अभी तक तो उनकी सासु जी ही उन सभी के लिए दस काम करती आई थी।अचार, जबे, पापड़ आदि सामान तारा जी सभी बच्चों को देती रहती थी। कुछ काम वो खुद कर देती तो कुछ कस्बे में ही पैसे देकर तैयार करवा देती।
सर्दियों में पोते पोतियों के लिए गर्म कपड़े तैयार कराती। बच्चों के लिए गोलगप्पे ,मठरी, लड्डू शक्करपारे बनवाती। हर किसी की पसंद का ख्याल रखती। उनसे जब बच्चे इतना काम करने के लिए मना करते तो कहती, इतना बड़ा दिन होता है कि काटे नहीं कटता,दो प्राणियों का काम ही कितना होता है, और अपने बच्चों के लिए कुछ करके जो सुकून मिलता है बता नहीं सकती।
पर आज तारा जी की तेरहवीं है,हवन के बाद पंडितों का ब्रह्म भोज है,सभी काम धीरे-धीरे होते जा रहे हैं, उधर राधे श्याम जी का मन बहुत बैचेन है।शाम को सभी मेहमानों के जाने के बाद सभी बच्चे एक साथ बैठे हैं। तारा जी का सारा सामान बांटा जा रहा है ।तारा जी के पास सोने के काम (कढाई ) की दो बहुत भारी साड़ियां है, जिनका मूल्य आज बहुत अधिक होगा, और शायद आज तो ऐसा काम साड़ीयों पर मिले भी नहीं।
मंछली और छोटी बहू झट से कहती हूं कि मां ने ये साड़ी उन्हें देने का वादा किया था, राधेश्याम जी कहते हैं अगर ऐसा है तो तुम रख लो, और थोड़ी ही देर में तारा जी के सारा सामान चीज जेवर, कपड़े आदि का बंटवारा हो जाता है, लेकिन अफसोस किसी ने भी अभी तक इस बारे में जिक्र नहीं किया कि राधेश्याम जी अब किसके साथ रहेंगे और कहां रहेंगे?
ये सोचकर राधेश्याम जी की आंखें नम हो जाती हैं, वो पूजा घर की तरफ जाते हैं, तभी उनकी बड़ी बहू सुनिधि आकर उनसे कहती है, पापा एक चीज का देने का वादा तो मां ने मुझसे भी किया था,क्या आप मुझे वो दोगे?
राधेश्याम जी की आंखें सजल हो जाती है,वो अपनी मन की व्यथा को छिपाते हुए कहते हैं, जो कुछ था तुम्हारे सामने है बड़ी बहू,अब क्या ही दे सकता हूं? तुम्हारी मां होती तो शायद सही फैसला ले पाती मै जानता हूं आज तुम्हें मैं कुछ खास नहीं दे पाया, जबकि देखा जाये तो सबसे ज्यादा इस घर को तुमने ही बांध कर रखा है, तुम्हारे बच्चे भी अब सयाने हो चलें है,पर मैं तुम्हें क्या दूं बड़ी बहू…..कहकर राधेश्याम जी वही कुर्सी पर निढाल से बैठ जाते हैं।
तब सुनिधि कहती है आपका स्नेह और प्यार पापा। मां ने एक बार कहा था कि उन्हें सबसे ज्यादा फिक्र आपकी है, कहा था यदि उन्हें कुछ होता है तो मैं आपकी सेवा करूं, हां पापा आपका आशीर्वाद आपकी छत्रछाया देने का मां ने मुझसे वादा किया था ,तो पापा आप मुझे ये दोगे ना… इतना सुनना था कि राधेश्याम जी कुछ कह तो नहीं पाते पर उन्होंने अपना कपंकपाता हुआ आशीर्वाद भरा हाथ अपनी बहू सुनिधि के सर पर रख दिया और लगा जैसे मानो सही मायनों में बंटवारा अब पूरा हुआ।
हमारे बुजुर्ग तो वो छांव है दोस्तों,
जो जीवन में आने वाली हर आंधी तूफान से हमें बचाते हैं ।
वहीं घर घर है जहां उनके आशीर्वाद है मिलते,
और बच्चों संग बुजुर्ग भी मुस्कुराते पाये जाते हैं।
