''अंतिम इच्छा"-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Antim Iccha

Hindi Story: सुबह से यह चौथा फोन था। फोन उठाने का बिल्कुल मन नहीं था पर माँ…अंततः नेहा ने फोन उठा ही लिया।
“हेलो !”

“हाँ माँ बोलो !”
“बोलना क्या है,घर में सभी तुम्हारे जवाब का इंतजार कर रहे हैं।तुम जवाब क्यों नहीं देती।”
“माँ इतना आसान नहीं है,मुझे सोचने का मौका तो दो।”
नेहा ने बुझे स्वर में कहा
“सोचना क्या है इसमें… तुम्हारी बहन की अंतिम इच्छा थी।क्या तुम्हें उन बच्चों पर बिल्कुल भी दया नहीं आती?”
” माँ पर…!”
“पर क्या?माँ की तरह पाला था तुम्हारी बहन ने तुम्हें… आज जब उसके बच्चों को माँ की जरूरत है तो तुम्हें सोचने का समय चाहिए।”
“माँ इस तरह कोई कैसे फैसला ले ले।”
“ठीक है,अगर तुम्हें उन बच्चों की छीछालेदर मंजूर है तो फिर क्या कहे।”
“माँ!इस तरह की बातें क्यों कर रही हो ?”
माँ का गला भर आया
“जब माँ बनोगी तब औलाद का दर्द समझोगी।फूल से बच्चे माँ के बिना कलप रहे हैं और तुम सब दरवाजे बंद करके बैठी हो।”

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नेहा का मन खराब हो चुका था।चार भाई-बहनों में सबसे छोटी थी वो…. सबसे छोटी,सबसे लाडली पर जिंदगी उसे इतने कड़वे और कठिन मोड़ पर लाकर खड़ा कर देगी, उसने कभी नहीं सोचा था।
दीदी की शादी के वक्त महज सत्रह साल की नाजुक उम्र थी उसकी…दीदी की शादी में पहली बार साड़ी पहनी थी।कितना उत्साह था,जीजा जी का जूते चुराऊंगी।दस हजार से एक रुपये कम न लूँगी। जीजाजी उसकी हर शरारत पर मुस्कुरा कर रह जाते। वह सिर्फ उसकी बहन के पति ही नहीं नेहा की हर बात के हमराज़ थे।
समझदार और सुलझे हुए दामाद को पाकर पूरा परिवार बहुत खुश था।बहुत सारी ऐसी बातें… जो दीदी को भी पता नहीं चल पाती थी …वह जीजा जी से डिस्कस करती थी। जीजा जी के उत्साहित करने पर ही उसने सिविल सर्विसेज की तैयारी करना शुरू की थी… नहीं तो वह भी दीदी की तरह घर -गृहस्थी देख रही होती।
बाबा की अंतिम इच्छा का मान रखने के लिए दीदी बलि का बकरा बन कर रह गई।गृहस्थी के आगे वह कुछ भी न सोच सकी।
याद है… उसे आज भी वह दिन…दीदी की कैंसर की रिपोर्ट आई थी… कैंसर थर्ड स्टेज पर था घर में कोहराम मच गया था। माँ का रो-रो कर बुरा हाल था और दीदी दीवार का कोना पकड़े बुत पड़ी थी। नेहा को समझ में नहीं आ रहा था किस-किस को संभाले और क्या समझाए।
समझते सभी थे… पर झूठी दिलासा एक-दूसरे को देते रहे। प्रवीण जीजा जी का सुदर्शन चेहरा अचानक से बूढ़ा लगने लगा था। अपने जीवन संगिनी की दुर्दशा उन से बर्दाश्त नहीं हो रही थी ।कितने सुखी थे वे… राम सीता जैसी जोड़ी थी उनकी…न जाने किसकी नजर लग गई थी उस खुशहाल परिवार पर…।
जीजा जी ने दीदी को बचाने के लिए हर संभव कोशिश की ।कहाँ-कहाँ नहीं दौड़े।किस-किस के आगे हाथ नहीं जोड़ें पर पत्थर का भगवान भी पत्थर हो चुका था। जीजा जी की आलीशान कोठी ,रुपया-पैसा सब धरा का धरा रह गया और दीदी हमें रोता-बिलखता छोड़ कर चली गई।
घर मेहमानों और रिश्तेदारों से भरा हुआ था। नन्ही परी माँ के लिए बिलखते-बिलखते नेहा की गोदी में ही सो गई थी।दीदी की चचिया सास कनखियों से नेहा को बार-बार घूर रही थीं।
“बहुत देखा-देखा चेहरा लग रहा है।तुमsss”
“मैं परी की मासी हूँ…”
चाची जी ने सोती हुई परी के सर पर हाथ फेरते हुए बड़े व्यंग्यात्मक ढंग से कहा…
“हाँ भाई परी के लिए तुम मा$$$सी हो।”
नेहा गुस्से से तिलमिला गई।वो पैर पटकते परी को लेकर कमरें में चली गई।इन तेरह दिनों में हर आने-जाने वालों की निग़ाहों में उसने यही सवाल तैरते देखा था कितना रोई थी वो उस दिन ….
“माँ!दीदी को गए चार दिन नहीं हुए और लोग जीजा जी की दूसरी शादी के बारे में भी सोचने लगे?”
वो माँ के गोद में सर कर रख कर सिसकने लगी,
“ये दुनिया ऐसी ही है…जानती हो आज एक महिला आई थी।मुझ से ही तुम्हारे जीजा जी के लिए अपनी तलाकशुदा बेटी के रिश्ते की बात कर रही थी।”
नेहा आश्चर्य से देखती रह गई।
“नेहा दुनिया ऐसी ही है। एक अच्छा जीवन जीने के लिए आलीशान मकान, नौकर-चाकर और रुपया-पैसा किसको नहीं चाहिए।”
नेहा का मन खिन्न हो गया,दीदी के सपनों का महल यूँ आहिस्ता-आहिस्ता ढह रह था।
धीरे-धीरे सारे मेहमान चले गए।नेहा भी सामान पैक कर रही थी।तभी…
“मासी आप जा रही हैं ?”
“हाँ बेटा ऑफिस भी तो जाना है न।तुम उदास क्यों हो।हम रोज वीडियो कॉल से बात करेंगे। अपना होमवर्क रोज करना।”
बच्चे चुपचाप सुनते रहे।दीदी के बच्चे बहुत समझदार थे पर फिर भी बच्चे ही थे।तभी माँ कमरे में आ गई…
“नेहा!सामान पैक हो गया?”
“हाँ माँ ,आप लोग कब निकल रहे ?”
“मैं अभी कुछ दिन यही रहूँगी।बच्चे एकदम अकेले पड़ गए हैं।”
नेहा सर झुकाए माँ की बात सुनती रही।
“तुझसे एक बात कहनी थी?”
“मैं सुन रही हूँ।”
“यहाँ मेरे पास बैठो…”
” माँ ऐसी भी क्या बात है…”
“नेहा इस घर के हालात तुम भली-भांति समझती हो।तुम्हारी दीदी के जाने के बाद हमारी जिम्मेदारी और भी बढ़ गई है।तुम्हारी दीदी ने मरने से पहले मुझ से एक वायदा लिया था…वो चाहती थी कि उसके मरने के बाद तुम उसके बच्चों की जिम्मेदारी संभालों… तुम …तुम प्रवीण जी से शादी कर लो।”
“माँ तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो?”
गुस्से और वितृष्णा से नेहा का चेहरा लाल हो गया।
“देखा-भाला परिवार है। बच्चों को माँ मिल जाएगी वैसे भी एक लड़की को क्या चाहिए आलीशान घर,नौकर-चाकर ,रुपया-पैसा… तुम्हारे पापा की भी यही इच्छा है।”
नेहा आश्चर्य से माँ को देखती रह गई।
“तुमने जीजा से भी एक बार पूछा है ?”
“पूछना क्या है उनके माता-पिता तो है नहीं चाचा-चाची से बात हो गई है उन्हें भी ये रिश्ता मंजूर है।”
“रिश्ता ?”
“माँ दीदी की चिता की आग अभी ठंडी भी नहीं हुई और तुम… ?”
माँ का चेहरा गम्भीर हो गया…
“हो सकता है आज तुम्हें मेरी बातें अच्छी न लगे पर तुम्हारी दीदी के जाने के बाद प्रवीण जी और उनके बच्चों की जिम्मेदारी भी मुझ पर है।तुम सोच-विचार कर जल्द मुझे जवाब दे दो…कहते हैं मरने वाले कि अंतिम इच्छा न पूरी की जाए तो उसकी आत्मा को कभी शांति नहीं मिलती…”
माँ की आँखों मे तैर रहे हजारों सवाल को वह झेल नहीं पाई।
एक हफ्ते में माँ ने पचासों बार फोन कर दिया था।नेहा एक ही जवाब देती…
“माँ मुझे सोचने का वक्त दो…”
सबको मरी हुई दीदी की अंतिम इच्छा की चिंता थी पर किसी ने एक बार भी उससे नहीं पूछा कि उसकी इच्छा क्या है।मरने वाला तो मरकर चला गया पर लोग उसे जिंदा लाश बनाने पर क्यों तुले है।
शनिवार की रात थी।नेहा हाथ में कॉफी का मग लिए छत पर सुकून के चंद पलों की तलाश में आकर बैठी थी।
आसमान में चाँद अकेला था वो भी तो आज कितनी अकेली थी।सब अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होना चाहते हैं और वो… वो आखिर क्या चाहती थी।
नेहा की आँखों के सामने जीजा जी परी और गोलू का मासूम चेहरा उभर आता। नेहा ने आँखे मूद ली।आखिर एक लड़की को क्या चाहिए एक खुशहाल परिवार, रुपया-पैसा,घर बस…
बस…बस क्या यही चाहिए था उसे अपनी जिंदगी से।आज अगर वो माँ की बात मानकर शादी कर लें…तो उसे इस रिश्ते से क्या मिलेगा दीदी की परछाई होने का दर्जा …दूसरी पत्नी …दूसरी माँ…नेहा मन ही मन मुस्कुराने लगी …दूसरी माँ नहीं… सौतेली माँ।
लोगों के ताने …समाज का हर कदम पर तुलना… बड़ी बहन ज्यादा सुंदर थी…दूसरी तो ऐसी ही आएगी।बच्चे पैदा करने की क्या जरूरत है पहली से दो पहले ही है…. जिंदगी गुजर जाएगी एक अच्छी माँ बनने और सिद्ध करने में…उसके बाद भी इसकी कोई गारण्टी नहीं कि वो ये सिद्ध कर भी पाएगी या नहीं। प्रवीण की निगाहें हर चीज़ में…हर रंग में..हर त्योहार में… हर स्वाद में दीदी को ढूढेंगी। तिनका-तिनका जोड़कर अरमानों से सजाया हुए दीदी के उस घर में एक फूलदान सजाने में भी उसके हाथ काँपेगें।हर पार्टी… हर उत्सव में लोगों की सवालिया निगाहें उसे तार-तार करेंगी …देखने मे तो ठीक लगती है फिर ऐसी क्या गरज पड़ी थी दो बच्चे के बाप से शादी करने की…अकेली आई है या बच्चे भी।

नेहा ने घबरा कर आँखे खोल दी और आसमान में तारों के बीच दीदी को ढूढने लगी….दीदी मुझे माफ़ कर देना शायद तुम्हें लगे मैं स्वार्थी हूँ पर …मैं इतनी मजबूत नहीं कि जीवन भर लोगों के सवालों का जवाब दे सकूँ… पर मैं आज तुमसे ये वायदा करती हूँ कि एक मासी के तौर पर हमेशा तुम्हारे बच्चों के साथ खड़ी रहूँगी…हफ़्तों से घुमड़ते सवालों का मानो उसे जवाब मिल गया था…नेहा माँ को फोन करने के लिए छत से नीचे उतर गई।