Grehlakshmi Ki Kahani: विद्याचरण जी एक हाथ में चाय की प्याली और दूसरे हाथ में अखबार लिए हुए बाहर बरामदे में आए। देखा पल्लवी झूले पर बैठी हुई कोई किताब पढ़ रही थी और हंसती जा रही थी। विद्याचरण जी उसके समीप ही बैठ गए। पल्लवी जब चुप हुई तो उन्होंने बड़े गंभीर स्वर में उससे कहा, ‘पल्लवी तुमने विकास से बात की।’ ‘पापा बार-बार आप एक ही बात क्यों कहते हैं? विकास से मुझे कुछ भी पूछने की जरूरत नहीं है। समझिए उसकी तरफ से हां है।’ पल्लवी ने झल्लाते हुए कहा। ‘मैं कैसे समझूं कि उसकी तरफ से हां है। उसने कभी तुमसे कुछ कहा है?’ विद्याचरण जी चिंतित होकर बोले।
तभी विद्याचरण जी की पत्नी सविता भी बरामदे में आई और कहा, ‘मैं भी कब से इस लड़की को समझा रही हूं कि शादी-ब्याह की उम्र हो चली है विकास से बात करो या फिर कहीं और हम बात करते हैं।’ पल्लवी ने कुछ नहीं कहा और फिर से अपनी किताब में तल्लीन हो गई और उसका हंसना जारी रहा। विद्याचरण जी और सविता की इकलौती संतान पल्लवी की तुलना किसी से नहीं की जा सकती थी। कहते हैं भगवान कभी किसी को इतना कुछ दे देते हैं कि उसे फिर से कुछ मांगने की जरूरत ही नहीं होती है। पल्लवी के साथ भी कुछ ऐसा ही था।
पिता का बहुत बड़ा कारोबार, शिक्षित मां, आलीशान बंगला, सुख-सुविधा वैभव में पली-बढ़ी पल्लवी को किसी चीज की कमी नहीं थी। देखने में इतनी सुंदर मानो भगवान ने उसे फुर्सत की घड़ी में तराशा हो। दुख, तकलीफ, अभाव को उसने जाना ही नहीं। जीवन उसके लिए बहुत ही सरल और आसान था। तेज दिमाग की पल्लवी के पास ज्ञान का भंडार था।
उच्च शिक्षा के लिए माता-पिता ने उसे विदेश भेजा और वहीं पर उसकी मुलाकात विकास से हुई। मुलाकात दोस्ती में बदल गई। विकास भी पल्लवी की तरह ही था, वैभव और सौंदर्य का मालिक।
समय गुजरा और पल्लवी ने ठान ली कि उसे विकास के साथ ही जिंदगी गुजारनी है। दोनों अपनी शिक्षा पूरी करके अपने देश लौटे मगर दोस्ती बनी रही। पल्लवी जितनी उच्छृंखल थी, विकास उतना ही मृदुभाषी, शांत और गंभीर था। पल्लवी के लिए जीवन एक पतंग की तरह थी, जिसे वह उड़ाती चली जा रही थी। ना कटने का भय, ना गिरने की चिंता। किंतु इसके विपरीत रोहित के लिए जीवन अथाह समंदर था। भावनाओं के जल से भरे विशाल समंदर में वह हर पल, हर क्षण गोते लगाने की कोशिश करता रहता था। रिश्ते-नाते, सगे-संबंधी पल्लवी के लिए एक पुरानी किताब जैसे थे, जिसे एक बार पढ़कर किसी अलमारी में रख दिया। वहीं विकास के लिए कोई भी रिश्ता एक डोर की तरह था, जिसका हर छोर वह मजबूती से पकड़ना चाहता था। पल्लवी के लिए समय रेत के समान था, जो हर क्षण मु_ी से फिसलता चला जा रहा था। किंतु विकास प्रत्येक क्षण, प्रत्येक पल को मूल्यवान और यादगार बनाने में जुटा रहता था।
एक दिन पल्लवी ने देखा विद्याचरण जी चिंतित होकर बैठे हुए थे। उसने हंसते हुए पूछा, ‘क्या बात है पापा?’ ‘तुम्हारे विवाह को लेकर चिंतित हूं। कुछ लोगों से मैंने तुम्हारे रिश्ते की बात की है, किंतु अभी तक कहीं से भी हां नहीं हुई है।’ विद्याचरण जी ने कहा। इस पर पल्लवी ने खिलखिलाते हुए बड़े दंभ से कहा, ‘पापा दुनिया में मुझे कोई नापसंद कर ही नहीं सकता है। मेरे जैसी लड़की उन्हें कहीं नहीं मिलेगी, मुझ में कोई कमी है ही नहीं सुंदर और शिक्षित, मेरे पास ज्ञान की कमी नहीं है, दौलत है और क्या चाहिए लड़के वालों को। विद्याचरण जी उसका मुख देखने लगे। पल्लवी थोड़ी देर के लिए चुप हो गई फिर उसने कहा, ‘वैसे पापा आपको किसी से बात करने की जरूरत नहीं है, मैंने सोच लिया है कि मैं विकास से ही विवाह करूंगी।’
विद्याचरण जी बोल उठे, ‘यह तुम चाहती हो परंतु क्या विकास भी तुम से विवाह करना चाहता है?’
‘नहीं चाहने का तो कोई प्रश्न ही नहीं उठता है।’ पल्लवी ने बड़े दंभ से कहा। विद्याचरण जी ने पुन: कहा, ‘पल्लवी बचकानी हरकत मत करो, तुमने कभी विकास से पूछा है?’ ‘नहीं’ पल्लवी ने कहा।
‘फिर कैसे जानती हो कि वह तुमसे विवाह करेगा ही।’ विद्याचरण जी ने गुस्से में भरकर कहा।
‘मेरी तरह उसे कोई मिल ही नहीं सकता है।’ यह कह कर वह अपने कमरे में चली गई।
तब तक सविता भी आ चुकी थी। विद्याचरण जी ने उसकी तरफ मुड़ते हुए कहा, ‘समझाओ अपनी बेटी को इतना दंभ अच्छा नहीं है।’ उस दिन पल्लवी अपने कमरे में बैठी कोई गेम खेल रही थी तभी सविता ने उसे पुकारा, ‘पल्लवी देखो विकास आया है।’
पल्लवी दौड़ती हुई गई। विकास ने हंसते हुए उसे एक गुलाब का फूल दिया और कहा, ‘जन्मदिन मुबारक हो पल्लवी।’ पल्लवी भी हंस पड़ी और कहा, ‘अरे मैंने तो सोचा था कि तुम कोई कीमती उपहार मेरे लिए लाए हो।’ विकास ने कुछ नहीं कहा सिर्फ उसे देखता रहा। तभी सविता आई और कहा, ‘पल्लवी विकास को बैठने के लिए नहीं कहोगी?’ विकास ने सविता का अभिवादन किया और कहा, ‘कोई बात नहीं आंटी मैं स्वयं ही बैठ जाऊंगा।’ दोनों देर तक गप्पे मारते रहे, अचानक पल्लवी उठी और कहा, ‘चलो विकास बाहर चलते हैं।’ उठने के क्रम में वह गुलाब का फूल नीचे गिर पड़ा और पल्लवी का पांव उस पर पड़ गया।
विकास ने उत्तेजित होते हुए उसे हाथों में उठा लिया और कहा, ‘पल्लवी तुमने इतने कोमल फूल को मसल दिया।’ पल्लवी ने बड़े बेपरवाह होकर कहा, ‘कोई बात नहीं विकास फूल ही तो है दूसरा ला देना।’ यह कहकर वह आगे बढ़ गई। उसने फिर कहा, ‘वैसे भी तो यह कल तक मुरझा ही जाता फिर उसका मैं क्या करती।’ विकास अपलक उसे देखता रहा। उसी दिन रात को जब विकास सो रहा था, अचानक नींद खुलने पर उसने देखा कि मोबाइल फोन की घंटी बज रही थी। विकास नींद में था फिर भी उसने आंखें खोली, देखा, पल्लवी का फोन था। ‘इतनी रात को फोन क्यों किया? क्या बात है पल्लवी?’ विकास ने पूछा। ‘विकास कल सुबह हम लोग लॉन्ग ड्राइव पर चलेंगे।’ पल्लवी ने कहा।
‘यह बात तुम सुबह भी तो कर सकती थी पल्लवी, तुमने मेरी नींद खराब कर दी।’ विकास ने अलसाते हुए कहा। आज दो दिन हो चुके थे। विकास ने पल्लवी से बातें करने की कोशिश की, किंतु पल्लवी ने फोन नहीं उठाया। पल्लवी अनमनी होकर बरामदे में बैठी थी, तभी विकास आया। पल्लवी ने कुछ नहीं कहा, उठकर अंदर चली गई। विकास भी पीछे-पीछे गया, सामने विद्याचरण जी खड़े थे पूछा, ‘कैसे हो बेटा? क्या बात है, बहुत चिंतित हो?’
‘क्या करूं अंकल, पल्लवी मुझसे नाराज है।’ विकास ने कहा, ‘क्यों?’ विद्याचरण जी ने पूछा।
विकास ने अपनी पूरी कहानी सुनाई। वास्तव में विकास के माता-पिता बाहरी दुनिया में इतने व्यस्त थे कि उन्हें अपने बेटे की परवरिश के लिए एक नौकरानी रखनी पड़ी थी, जिसका नाम शीला था। उसने विकास को इतना प्यार दिया कि वह विकास के लिए शीला से ‘शीला मां’ बन गई। साल बीत गए विकास बड़ा हो गया, किंतु आज भी वह विकास के घर में रहती है। विकास ने उसे इज्जत, सम्मान और प्यार दिया। हमेशा अपने परिवार के सदस्य की तरह उसके साथ व्यवहार किया। पल्लवी ने जिस दिन विकास को लॉन्ग ड्राइव के लिए बुलाया था, उस दिन अचानक शीला मां बीमार हो गई थीं, जिसके कारण वह जा नहीं पाया था। विकास ने फोन किया था लेकिन पल्लवी ने गुस्से में फोन नहीं उठाया था।
‘अरे इसमें परेशान होने की क्या बात है, तुमने ठीक ही तो किया।’ विद्याचरण जी बोले। इतने में पल्लवी अपने कमरे से दौड़कर आई और चिल्लाती हुई बोली, ‘बीमार हो गई तो क्या, है तो वह घर की एक नौकरानी, उसे इतना महत्व देने की क्या जरूरत है।’ विकास और विद्याचरण जी दोनों चौंक उठे। ‘तुम्हारी सोच और मेरी सोच में बहुत अंतर है पल्लवी।’ कहते हुए विकास तेजी से बाहर निकल गया। समय की आंधी चलती रही। विकास और पल्लवी दोनों फिर से सामान्य हो चले थे। आज विकास बहुत खुश था, कंपनी से उसका प्रमोशन लेटर आया था। पल्लवी को उसने जैसे ही यह खबर सुनाई, वह उछलते हुए बोली, ‘तब तो आज पार्टी मिलेगी।’ वह फिर बोली, ‘विकास आज हम कौन से होटल में जा रहे हैं?’
‘होटल हम बाद में चलेंगे, पहले हम लोग मंदिर चलेंगे।’ विकास ने शांतिपूर्वक कहा। पल्लवी ने मुंह बना लिया। ‘क्यों तुम खुश नहीं हो?’ विकास ने पूछा। ‘भगवान सिर्फ मंदिर में ही होते हैं, हम ऐसा क्यों सोचते हैं? भगवान तो सभी जगह होते हैं। क्या मंदिर में जाने पर भगवान खुश हो जाते हैं और नहीं जाने पर हमें दंड देंगे? परमपिता के बारे में हमारी सोच ऐसी क्यों है?’ पल्लवी ने उत्तेजित होते हुए कहा। ‘तुम सच कह रही हो पल्लवी, तुम्हारी सोच कि मैं आदर करता हूं, परंतु हमारे जीवन में कुछ चीजें ऐसी होती हैं जो हमारी भावनाएं, आस्था और प्रेम से जुड़ी होती है। वहां तर्क का कोई स्थान नहीं होता है।’ यह कह कर विकास चुप हो गया। कुछ समय बीतने के बाद एक दिन…
आज सुबह से ही विद्याचरण जी के घर में भूचाल आया हुआ था। पल्लवी पर तो मानो खून सवार था। विद्याचरण जी बोले जा रहे थे, ‘मैं शुरू से कहता था कि पल्लवी विकास से एक बार अपने दिल की बात कह दो, मगर इस लड़की ने तो मेरी एक बात नहीं मानी। आज विकास विवाह करने जा रहा है, लेकिन अभी भी इस लड़की को इतना घमंड है कि उससे एक बार इसने बात तक नहीं की।’ पास खड़ी सविता भी विद्याचरण जी की हां में हां मिला रही थी।
पल्लवी ने दहाड़ते हुए कहा, ‘मुझे उससे कोई मतलब नहीं है, उससे कोई बात नहीं करनी है।’
दो दिनों के बाद विकास स्वयं विवाह का निमंत्रण देने विद्याचरण जी के यहां आया। इस बीच विद्याचरण जी ने फोन पर विकास को सब कुछ बता दिया था। विकास सीधे पल्लवी के कमरे में गया और पल्लवी के करीब बैठ गया। पल्लवी ने उसे देख कर मुंह घुमा लिया।
विकास ने थोड़ा झिझकते हुए कहा, ‘मुझे माफ कर दो पल्लवी, मैं तुमसे विवाह करने के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकता था। तुम मुझसे विवाह करना चाहती हो, यह भी मैं समझ नहीं पाया क्योंकि हमारे विचार बिल्कुल नहीं मिलते हैं। हम अच्छे दोस्त हो सकते हैं मगर पति-पत्नी नहीं।’
‘विचार से क्या होता है? मुझ में किस चीज की कमी है? दौलत, सौंदर्य और ज्ञान में मेरा कोई मुकाबला नहीं कर सकता है। तुम्हें अपना निर्णय बदलना होगा विकास।’ पल्लवी ने गुस्से में कहा।
‘नहीं पल्लवी रिया मुझे बहुत पसंद है।’ विकास गंभीर होते हुए बोला।
‘आखिर उस लड़की में है क्या, जो तुम मुझे ठुकरा रहे हो?’ पल्लवी ने उत्तेजित होते हुए कहा।
‘तुम स्वयं आकर उससे मिल लेना मैं क्या बताऊं।’ कहकर विकास चला गया।
विवाह में पल्लवी नहीं गई लेकिन उसे उत्सुकता जरूर थी रिया से मिलने की। दो दिन बीत चुके थे। पल्लवी सीधे विकास के घर पहुंची। विकास पौधों में पानी डाल रहा था। पल्लवी को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ।
उसने पल्लवी को बाहर ही रोकते हुए कहा, ‘देखो ना पल्लवी मेरे अपने ही मेरे विवाह में नहीं आए। तुम्हारी तरह मेरे माता-पिता को भी रिया पसंद नहीं थी इसलिए वे अमेरिका से इंडिया आए ही नहीं।
‘अपनी पत्नी से नहीं मिलाओगे?’ पल्लवी ने बिना लाग-लपेट के बिल्कुल सपाट सा सवाल किया।
विकास ने हंसते हुए कहा, ‘मिलाना क्या है तुम स्वयं जाकर मिल लो। वैसे रिया तुम्हारे बारे में सब कुछ जानती है। वह समझदार है तुमको पहचान लेगी।’
पल्लवी अंदर गई देखा शीला मां बिस्तर पर लेटी थी। रिया उनके पांव दबा रही थी, साथ ही उसकी आंखों से आंसुओं की धार बह रहे थे। शीला मां उसे समझा रही थी। ‘बेटी चुप हो जाओ, तुम्हारा हृदय कितना निर्मल और कोमल है, जरा सी मेरी दुख भरी कथा सुनी और रोने लगी। सच कहूं रिया बेटी, मेरा विकास दिल का सच्चा और बहुत ही भावुक है। उसने जो मुझे सम्मान और प्यार दिया उतना मुझे किसी ने नहीं दिया। मैं घर की नौकरानी थी, किंतु उसने मुझे मां का दर्जा दिया। मेरी सबसे बड़ी इच्छा यही थी कि मृत्यु से पहले विकास को किसी ऐसे हाथों में सौंप दूं जो उसकी तरह ही निर्मल और भावुक हो और जिसका हृदय सच्चा हो। तुम उस पर खरी उतरी बेटी। अब मैं चैन से मर पाऊंगी।’
‘ऐसा मत कहिए मां। आपके बिना हम दोनों अकेले हो जाएंगे। जीवन की हर छोटी-बड़ी बातें आप से ही तो सीखनी है।’ यह कहकर रिया ने उनके होंठो पर अपने हाथ रख दिए। पल्लवी उन लोगों के पास नहीं गई। दरवाजे पर खड़े होकर उसने जो देखना था देख लिया, जो समझना था समझ लिया। वह उल्टे पांव लौट गई। विकास अब भी पौधों में पानी दे रहा था। पल्लवी को देख कर चौंक गया।
‘अरे पल्लवी इतनी जल्दी जा रही हो? रिया ने तुम्हें चाय नहीं पिलाया? मैं देखता हूं।’ यह कहकर विकास अंदर जाने लगा।
‘रहने दो विकास मैं जा रही हूं लेकिन जाते-जाते कुछ शब्द कहना चाहती हूं। आज मैंने अपने आप को रिया के आईने में देखा। मेरे पास सब कुछ है लेकिन वह नहीं है जो रिया के पास है। वह तुम्हारे लायक है विकास मैं नहीं।’ कहकर पल्लवी विकास के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही तेजी से निकल गई। ‘
