holi ka tyohaar
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

मंकू बंदर व उसका टोला एक बार जंगल में मौज मस्ती कर रहा था। अचानक उधर से हाथियों का एक दल अपनी मस्ती में झूमता हुआ आ पहुंचा। सभी जानवर अपना-अपना बचाव करते हुए उनके रास्ते से दूर चले गए। परंतु बंदरों का वह दल अपनी ही धुन में सवार उन हाथियों को तंग करने लगा। कभी कोई उनकी पीठ पर चढ़ जाता, कभी कोई पूंछ खींचता, कोई कान खींचता तो कोई किसी के लंबे दांतों पर चढ़ जाता। जब वह हाथी उन्हें डराने की कोशिश करते तो वे आस-पास खड़े पेड़ों की चोटियों पर जा चढ़ते। इस प्रकार वे हाथियों को तंग करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे।

सभी हाथी अपनी मस्ती में निकल रहे थे। परंतु गज्जू नाम के एक हाथी के बच्चे को क्रोध आ गया। उसने आव देखा न ताव, बंदरों के दल के मुखिया मंकू को अपनी सूंड से एक हल्का-सा झटका दे मारा जिससे वह दूर जाकर छिटक गया। यदि वह झटका थोड़ा भी जोर से लगता तो उसको अपनी जान से हाथ धोना पड़ जाता। किसी तरह बचता-बचाता मंकू हाथियों के दल से दूर चला गया। वह और उसका दल भी उनके ही पीछे-पीछे वहां से भाग निकला।

तब से मंकू बंदर गज्जू हाथी से खार खाए बैठा था और वह उससे बदला लेने की योजना बनाने लगा। वह एक अदना-सा बंदर और गज्जू एक भारी-भरकम हाथी। भला वह उससे बदला कैसे ले सकता था? शरीर की बनावट व डीलडौल से बंदर और हाथी का क्या मुकाबला। परन्तु बलवान प्रतिद्वंदी से तो केवल बुद्धि द्वारा ही बदला लिया जा सकता है। मंकू बंदर हमेशा गज्जू हाथी से बदला लेने की सोचता रहता था।

लंबी व ठंडी सर्दी के बाद मौसम बदल गया तथा बसंत का मौसम आ गया था। हर तरफ हरियाली छाने लगी थी। सभी जानवर मौसम बदलने के उपलक्ष्य में कोई मौज-मस्ती वाला उत्सव मनाना चाह रहे थे। मंकू बन्दर, गज्जू हाथी, लौमू लोमड़, गिदू सियार, भोलू भालू, चंकी हिरण आदि सभी जानवर होली मनाने की तैयारियों में लग गए। गज्जू हाथी तो खुश था क्योंकि उसे अपनी सूंड से रंग भरकर सभी जानवरों को रंगों से भिगाने का मौका मिल गया था। मंकू बंदर तो मौके की तलाश में था ही। उसने सोचा कि गज्जू हाथी से बदला लेने का यही समय उचित है।

होली के लिए सभी जानवरों ने जंगल में जहां-तहां खिले फूलों और पत्तियों को मसलकर कुदरती रंग बनाए, जिससे किसी को कोई नुकसान न हो। परंतु मंकू बंदर गज्जू हाथी से बदला लेना चाहता था। वह ऐसे रंगों की तलाश में था जिससे गज्जू हाथी को नुकसान पहुंचे। घूमते-घूमते वह जंगल से शहर की ओर निकल गया। शहर में भी होली की तैयारियां चल रही थीं। बाजार में जहां खाने-पीने की कई प्रकार की चीजें थीं वहीं तरह-तरह के कृत्रिम रंग भी उपलब्ध थे। मंकू बंदर एक ठेले वाले की दुकान के सामने से निकल रहा था। वहां पर कई प्रकार के कृत्रिम रंग उपलब्ध थे। मंकू बंदर ने उन्हें खाने की सामग्री समझकर चुपके से रंगों की कुछ थैलियां झपट ली। जैसे ही ठेले वाले ने उसे देखा तो वह भाग खड़ा हुआ। जंगल के नजदीक पहुंचकर वह उसे खाने की वस्तु समझकर उसे खाने के लिए उद्यत हुआ। जैसे ही उसने थैली फाड़ी तो उससे एक तीखी सुगंध वाला पाउडर निकला जो कि कृत्रिम रंग था। उसने उसे अपनी मुट्ठी में भरकर खा लिया। जैसे ही उसने उसे खाया उसके रंग से उसके हाथ मुंह में वह रंग चढ़ गया। थोड़ी देर बाद उसके हाथ व मुंह में खुजली होने लगी तथा साथ ही उसका जी भी मितलाने लगा। अपनी परेशानी भूलकर वह यह सोचकर खुश हो गया कि इस रंग से रंगे पानी को जब गज्जू हाथी अपनी सूंड में भरेगा तो उसको भी ऐसी ही परेशानी होगी। यह सोचकर वह उछलता-कूदता हुआ जंगल की ओर भाग गया।

होली के दिन सभी जानवर अपने-अपने प्राकृतिक रंगों के साथ एक खुले स्थान पर आ गए। मंकू बंदर भी अपने कृत्रिम रंगों के साथ उछलता-कूदता वहां आ पहुंचा। उसने एक बड़ी नांद में वह कृत्रिम रंग घोल लिया और अन्य जानवरों के साथ होली खेलने में मस्त हो गया। तब तक गज्जू हाथी भी अपनी मस्ती में झूमता हुआ आ पहुंचा। गज्जू हाथी को आया देख मंकू बंदर फूल कर कुप्पा हो गया। उसने उससे बदला जो लेना था। वह अन्य जानवरों के बजाए गज्जू हाथी को अपने कृत्रिम रंग को सूंड में भरकर सभी जानवरों पर फेंकने के लिए उकसाता रहा।

गज्जू हाथी भी मंकू बंदर के उकसाने पर कृत्रिम रंगों को अपनी सूंड में भर-भर कर अन्य सभी जानवरों पर फेंकने लगा। होली की मौज-मस्ती में सभी खुश थे। परन्तु उनकी यह खुशी अधिक समय तक नहीं टिक सकी। सभी जानवरों के शरीर में एक अजीब-सी खुजली होने लगी जिसके कारण सभी जानवर परेशान होकर इधर-उधर भागने लगे। गज्जू हठी का तो कहना ही क्या? उसकी सूंड व आंखें इत्यादि में सूजन आ गई और अत्याधिक खुजली होने लगी। गज्जू हाथी परेशान होकर इधर-उधर भागने लगा। उसे परेशान देखकर मंकू बंदर वहां से खिसक गया और दूर जाकर एक बड़े वृक्ष की पत्तियों के बीच छुप कर सारा तमाशा देखता रहा। सभी जानवर पास के तालाब में जाकर खूब डुबकी लगा-लगाकर नहाने लगे जिससे उनके शरीर की खुजली धीरे-धीरे कम होती गई और सभी अपने-अपने ठिकाने की ओर चल दिए। गज्जू हाथी की परेशानी दूर होने का नाम नहीं ले रही थी। कृत्रिम रंगों के अत्याधिक प्रयोग के कारण उसकी सूंड, आंख, नाक, कान इत्यादि में कुछ संक्रमण हो गया था जो तालाब में नहाने या डुबकी लगाने से दूर नहीं हो सकता था। इसके लिए केवल कुशल चिकित्सा व लम्बे समय की आवश्यकता थी। गज्जू हाथी मारे दर्द के तड़पने लगा। उसकी यह हालत देखकर सभी जानवर चिंतित हो गए। मंकू बंदर तो पहले ही खिसक गया था। इसलिए सभी जानवरों को यह समझते देर नहीं लगी कि यह सब करतूत मंकू बन्दर द्वारा चुराकर लाए गए कृत्रिम रंगों के कारण ही हुई है। अन्यथा वह वहां से खिसकता ही क्यों?

आखिर मामला वनराज सिंह के पास चला गया। वनराज सिंह ने सारे मामले को ध्यान से सुना व मंकू बंदर को दरबार में हाजिर होने के लिए आदेश दे दिया। मंकू बंदर डर के मारे थरथर कांपता हुआ वनराज सिंह के दरबार में पहुंचा। इससे पहले कि वनराज सिंह उससे कुछ पूछते, मंकू बंदर जोर-जोर से रोने व गिड़गिड़ाने लगा तथा अपने किए पर क्षमा मांगने लगा। उसके गिड़गिड़ाने व क्षमा याचना के कारण वनराज सिंह व अन्य जानवरों का दिल पसीज गया। पर उसे उसके किए की सजा देना तो आवश्यक था।

वनराज सिंह ने उसे सजा सुनाते हुए आदेश दिया कि जब तक गज्जू हाथी पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाए, मंकू बंदर उसकी पूरी सेवा सुश्रुषा करे। वह उसके चारे पानी का भी प्रबंध करे अन्यथा उसे भेड़िए या लकड़बग्घे के पास फेंक दिया जाएगा। साथ ही सभी जानवरों को यह भी आदेश दिए कि मानव द्वारा बनाई गई बनावटी चीजें इस्तेमाल न करके कुदरत द्वारा प्रदान की गई चीजों का ही प्रयोग करें। ताकि हम ऐसी कई परेशानियों से बचे रह सकें।

मरता क्या नहीं करता? मंकू बंदर रात-दिन गज्जू हाथी की सेवा में जुट गया।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’