कलयुग का कर्ण-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Kalyug ka Karn

Hindi Story: राकेश अपने ऑफिस से घर के लिए जा रहा था। उसके घर के रास्ते में एक पुल पड़ता था जिसके नीचे से गहरी नदी बहती थी। जब राकेश वह पुल पार कर रहा था तो देखता है कि एक आदमी पुल से नीचे कूदने वाला था। राकेश उसे जाकर रोकता है,” यह क्या कर रहे हो भाई? ऐसा क्या हुआ है?”
“मैं अपना सब कुछ लुटा चुका हूं। छोटा सा व्यापार था मेरा। वह बर्बाद हो गया है। कैसे अपने घर परिवार का पोषण करूंगा।” वह आदमी कहते कहते रोने लगता है।
“तो ठीक है मर जाओ और पीछे अपने परिवार को एक और दुःख दे जाओ। क्या करेंगे वह, तुम्हारा दुख मनाएंगे या लोगों के पैसे चुकाने के रास्ते ढूंढेंगे” राकेश ने उसे डांटा।
राकेश की डांट सुनकर हो आदमी थोड़ा संभला। तब राकेश ने उसके बारे में उससे सारी बात पूछी।
“मेरा नाम अजय है। मेरा कपड़ों का छोटा सा व्यापार था। पिछले महीने शहर में जो दंगे हुए थे उसमें मेरी दुकान और कारखाना जला दिया गया। समझ नहीं आता लोगों के पैसे कहां से चुकाऊंगा और कैसे अपना घर चलाऊंगा।” राकेश को अजय अपने बारे में सब कुछ बताता है।

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राकेश उसे सांत्वना देते हुए कहता है,”मेरा लकड़ी का बहुत बड़ा काम है। कईं जगह पर माल भी सप्लाई करता हूं। तुम मेरा व्यापार में हाथ बंटाओगे तो अपनी परेशानियों से बाहर निकल सकते हो और मुझे भी साथ मिल जाएगा। मैं जल्द ही तुम्हें अपने ऑफिस बुलाता हूं, अभी तुम अपने घर जाओ।”
पूरी कानूनी जांच पड़ताल के बाद राकेश अजय के साथ होने वाले अग्रिमेंट के कागज़ तैयार करवाता है और उससे बुलाता है।

अजय राकेश का साथ कारोबार में आ जाता है। दोनों का कारोबारी दिमाग और मेहनत उस कारोबार को बहुत तरक्की देती है। अजय ने धीरे-धीरे अपना सारा कर्ज़ा उतार दिया और राकेश की मदद से अपने व्यापार को फिर से खड़ा किया। अब वह राकेश के साथ सिर्फ विचार विमर्श का काम देखता था।
सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। उन दोनों की मित्रता परिवार के हर छोटे-बड़े समारोह में सबको दिख जाती थी। यूं तो दोनों एक दूसरे के अच्छे मित्र थे परंतु अजय के लिए राकेश भगवान का रूप था, वह एक तरीके से सब कुछ था उसके लिए।
लेकिन उस दोस्ती पर काली नज़र थी राकेश के भाई रमेश की। वो बिल्कुल नकारा और अय्याश आदमी था। राकेश की तरह ना तो कोई काम करता और ना ही भाई की कंपनी में हाथ बंटाता। वह तो बस यही चाहता था कि उसको हिस्सा मिलता रहे वह भी मुफ्त में। अजय के आने पर उसको बड़ा बुरा लगा था। उसने चालाकी से अपने एक वकील दोस्त के साथ मिलकर कंपनी के हर कागज़ात की नकली कॉपी बनवा रखी थी।
एक दिन रमेश को सही मौका मिल जाता है। राकेश किसी काम से शहर से बाहर गया था। अजय भी अब कंपनी में कम ही आता-जाता था। रमेश को सुनहरा मौका मिला और उसने फर्ज़ी कागज़ात कंपनी के असली कागज़ात के साथ बदल दिए। जब राकेश वापिस आता है तो रमेश सब कुछ अपने नाम दिखाकर उसे कंपनी से बाहर कर देता है।
राकेश को उधार रखना पसंद नहीं था। इसलिए उसने घर गिरवी पर रखकर लेनदारों का हिसाब चुकता किया। अजय भी शहर में नहीं था। जब उसे सारी बात पता चलती है तो वह सीधे राकेश के घर जाता है। उसे देखकर राकेश की आंखें भर आती हैं वह कहता है,” मैं यह घर छोड़कर कहीं और ठिकाना देखता हूं।”
अजय उसके पैरों में गिर कर रो पड़ता है,” मुझे इतना पराया समझ लिया। मेरे होते हुए आपको कहीं और जाना पड़े तो लानत है मुझ पर। मैं आपके लिए बेशक दोस्त हूं पर आप मेरे लिए भगवान का रूप हैं। मैं आपके लिए जो कुछ भी करूं वह बहुत कम है। चलिए भाभी जी और बेटे को लेकर अपने दूसरे घर।”
अजय का परिवार पूरे गर्मजोशी के साथ राकेश और उसके परिवार का स्वागत करता है। उनके रहने की बहुत अच्छी व्यवस्था भी कर दी जाती है। अब उन दोनों के बेटे एक साथ स्कूल जाते थे।
अजय और राकेश मिलकर सारी बातों का पता लगाते हैं। अपने कुछ विश्वास पात्र दोस्त जो पुलिस अफसर और वकील हैं, उनके साथ मिलकर दोनों को रमेश की सारी कारस्तानी समझ में आ जाती है। सबके साथ बातचीत के दौरान वह दोनों यह तो समझ गए थे कि असली कागज़ात का मिलना तो नामुमकिन है। रमेश में उन्हें खत्म कर दिया होगा।
लेकिन वह दोनों यह बात भी अच्छी तरह जानते हैं कि रमेश के बसकी कारोबार संभालना नहीं है। वह जल्द ही उसे बर्बाद कर देगा। वह दोनों अब सही मौके का इंतजार करते हैं। उसी बीच अब राकेश अजय के कारोबार में मदद करने लगता है। अजय को राकेश की मदद से अपने कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए कई तरीके पता चलते हैं और अब वह ज़्यादा अच्छा कमाने लगता है। इसी तरह से 6 महीने बीत जाते हैं।
एक दिन वह लोग अखबार में पढ़ते हैं कि रमेश की कंपनी को खासा नुकसान हो रहा है। अगले ही दिन दोनों उससे मिलने पहुंच जाते हैं।

” देखो रमेश तुमने जो करा मैं उसका कुछ नहीं कर पाया। उसके लिए तो मैं तुम्हें कभी माफ भी नहीं करूंगा। लेकिन आज मैं जो कहने जा रहा हूं उससे तुम अपने आप को लोगों और पुलिस से बचा सकते हो। तुम्हारी सारी धोखेबाजी के बारे में मुझे सब कुछ मालूम है। बेहतर यही है कि तुम मेरी कंपनी और पैसा मुझे वापस कर दो। मैं तुम्हें इतने पैसे दे दूंगा कि तुम अपने आप को बचा सकते हो।” राकेश ने कहा।
रमेश के पास और कोई चारा नहीं था, उसको राकेश की बात माननी पड़ी। अब अजय और राकेश के वकीलों द्वारा नए कागज़ात बनवाए गए और सारी कानूनी औपचारिकता पूरी करी गई।
राकेश ने रमेश को हमेशा के लिए अपनी ज़िंदगी से अलग कर दिया।
जिसके पास अजय और राकेश की तरह सच्ची मित्रता हो वह कभी डूब ही नहीं सकता। देर से ही सही उसे किनारा ज़रूर मिल जाता है।