आखिरकार, मैं अपने घर लौट आया। सबने हमारी मदद करने से इंकार कर दिया, यहां तक कि मिश्रा अंकल ने भी जिनको मैंने अपने पिता समान समझा था। क्या हुआ विवेक जी? कोई हमारी मदद करने को तैयार नहीं है… तो अब हम क्या करें, क्या पता। कोई किसी का नहीं है इस दुनिया में। सही कहते हैं सब सिर्फ सुख के साथी हैं। मीता कैसी है अभी? नींद की गोली देकर सुलाया है। कैसी हालत हो गयी है हमारी बेटी की… पूरे मोहल्ले वालों के हर सुख-दुख में हम हमेशा साथ रहे और आज जब हमें उनकी ज़रूरत पड़ी तो सबने मुंह मोड़ लिया। कोई बात नहीं… हर एक दिन एक जैसा नहीं होता… आप चिंता मत कीजिये… कोई साथ न दे पर भगवान तो है न… उनके घर देर है पर अंधेर नहीं, आप मुंह हाथ धो लीजिये… मैं खाना लगती हूं। नहीं मत लगाओ… बस एक कप चाय दे दो… सर भारी हो रहा है।

आपने आज कुछ भी नहीं खाया। कोई बात नहीं, बस एक कप चाय दे दो। अभी लाई। सुषमा चाय में तो चीनी नहीं है। लगता है भूल गयी…अभी देती हूं। बेचारी कुछ बोलती नहीं है पर दिल ही दिल में जल रही है।

विवेक जी तो सो गए पर मेरी आंखो में नींद ही नहीं थी, ये क्या हो गया हमारे घर किसी की नज़र लग गयी। कितनी मन्नतों के बाद भगवान ने मुझे मां बनाया और मुझे मीता जैसी बेटी दी, शादी के 16 साल बाद मेरी गोद हरी हुई… उसके बाद हमने भगवान जी से कुछ भी नहीं मांगा। हमारी मीता इतनी सुशील और गुणी थी कि हम हमेशा भगवान को धन्यवाद बोलते थे। विवेक हाइस्कूल के टीचर थे और ईमानदारी तो उनमें कूट- कूट कर भरी थी। वही सारे गुण मीता में भी थे। मीता अभी बीए फ़ाइनल इयर में थी। पढ़ाई के साथ साथ वो बच्चों को भी पढ़ाती थी। विवेक जी तो 3-4 साल पहले ही रिटायर्ड हो चुके थे, इसलिए वो भी घर में ही बड़ी क्लास के बच्चों को पढ़ाते थे।

हमारी ज़िंदगी बहुत अच्छे से चल रही थी कि उस दिन…।

मां, मां कहां हो आप? मैं कपड़े धो रही हूं , आ गयी तुम? हां मां, आप जल्दी से खाना दो… ज़ोरों की भूख लगी है, बच्चे भी पढ़ने आते होंगे। अभी परोसती हूं। आज सब्जी क्या बनाई? तुम्हारी पसंद की है, मिक्स सब्जी। वाह… पता है मां आज क्या हुआ। क्या? अरे हम कॉलेज से जैसे ही निकले कि 3- 4 आवारा लड़के पीछे पड़ गए और कैसी गंदी गंदी बातें करने लगे, फिर भी हम चुप रहे फिर उनमें से एक ने ज्योति को पीछे से हाथ मार दिया। कौन वो पाठक जी की बेटी? हां मां वही। फिर? फिर क्या मैंने ज़ोर का थप्पड़ रसीद कर दिया उसके गाल पर। क्यूं करती है तू ये सब, इन गुंडों से पंगा लेना ठीक नहीं है बेटा। तो ये सब देख कर मैं चुप रहती मां, फिर कल वो वही सब मेरे साथ करता तो ? ठीक ही तो कह रही है मीता। बोलो पापा…

अब मां को कौन समझाये कि अब लड़कियां कमजोर नहीं हैं। मुझे तो चिंता होने लगी। कभी कभी तुम देर सवेर बाहर जाती हो। तो क्या हुआ मां? तुम खाना खा लो पहले। बहुत निडर थी मीता और उसके पापा भी वेसे ही थे पर मैं हमेशा डरी डरी रहती थी, आखिर है तो लड़की ही ना और वो लोग गुंडे। आखिर उस थप्पड़ का बदला उन गुंडों ने ले ही लिया। इसी मोहल्ले के बीच चौराहे पर मेरी बेटी के साथ तीन लड़कों ने दुष्कर्म किया, पर कोई बचाने नहीं आया तब विवेक जी भी घर पर नहीं थे सबने सिर्फ तमाशा देखा।

मोहल्ले वालों को धमका दिया गया कि अगर किसी ने भी पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई तो तुम्हारी बेटियों के साथ भी यही होगा, समझ लेना। गुंडे चले गए और सभी ने अपने अपने घर का दरवाजा लगा लिया। उस हालत में मैं अपनी बेटी को घर लायी और किसी ने मेरी मदद नहीं की। जैसे ही कॉलबैल की आवाज़ आई, मेरी तंद्रा भंग हुई। आज तो आंखों में ही सुबह हो गई, पर अभी इतनी सुबह कौन हो सकता है। मिश्रा अंकल आप इस वक़्त? कौन है? अंकल जी आए हैं, आइये अंकल। मुझे माफ कर दो, मैंने आपकी आपकी मदद करने से मना कर दिया। हमारी किस्मत ही खराब है अंकल, जिन लोगों के हर सुख दुख में हमेशा खड़े रहे… आज वही लोग….. । नहीं बेटा ऐसी बात नहीं है, सब पुलिस और कानून से डरते हैं, सब परिवार वाले हैं इन झंझटों में नहीं पड़ना चाहते। जानते हो बेटा जब ज़मीन पर तेल गिरा होता है न, तो पानी भी अपना रास्ता बदल कर देता है। मेरा क्या है पत्नी है नहीं, दो बच्चे हैं जो बाहर रहते हैं… मुझे किस बात का डर… चलो पुलिस स्टेशन।

क्या बात है? सिर रिपोर्ट लिखवानी है। किस बात की? जी बलात्कार हुआ है मेरी बेटी के साथ। कब? दो दिन पहले। तो तभी क्यों नहीं आए, कोई गवाह है? जी हां ये मिश्रा अंकल। और कोई? नहीं। तो मैं रिपोर्ट नहीं लिख सकता। क्यों नहीं लिख सकते, आपका काम है रिपोर्ट लिखना और गवाह की ज़रूरत कोर्ट में पड़ती है अभी नहीं। आप मुझे कानून मत सिखाइये… जाइये यहां से और दो चार गवाह लेकर आइये तभी रिपोर्ट लिखूंगा। हार कर हम अपने घर आ गए। अब हमने किस्मत से समझौता कर लिया है, मीता में भी आहिस्ता आहिस्ता सुधार आने लगा। मोहल्ले के जो बच्चे आते थे पढ़ने वो भी आने बंद हो गए। इतने भरे पूरे समाज मे रहते हुए भी हम एकदम अकेले थे।

फिर एक दिन वही हुआ जिसका हमें डर था। उन्हीं गुंडों ने रमेश पाठक जी की बेटी ज्योति के साथ भी….. इतनी हिम्मत बढ़ गयी उनकी और ये हिम्मत हमने ही दी है उन्हें। हम पाठक जी के घर गए तो वे बोले, आप क्यों आए हैं यहां, यह सब आपकी ही बेटी की वजह से हुआ है। कब तक आंखों पर पट्टी बांध कर रहेंगे हम लोग, क्यों सच्चाई से मुंह मोड रहे हैं आप? कल मेरी बेटी के साथ हुआ, आज आपकी बेटी के साथ और परसों…… । जो भी है हमें कोई रिपोर्ट नहीं लिखवानी है। पर मुझे लिखवानी है पापा मेरी वजह से ही मीता ने उन गुंडों के साथ झगड़ा मोल लिया था और आपने…… । जैसे ही मैं जाने के लिए मुड़ा। रुकिए विवेक जी हम सब मिल कर रिपोर्ट लिखवाने जाएंगे। उन गुंडों के खिलाफ सारे मोहल्ले वाले बगावत के लिए उठ खड़े हुए। इंसानियत की जीत हुई और बुराई की हार हुई। जब तक इंसान चुप रहता है, तभी तक बुराई जीतती है जिस दिन इंसानियत उठ खड़ी होगी, बुराई चार खाने चित हो जाएगी। ऐसा नहीं कि मेरी बेटी के साथ कुछ हो, तभी हम जागें दूसरों की बेटी के लिए भी दिल में दया और इंसानियत की भावना रखें।

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