Hindi Kahaniya: आज फिर से काजोल ने मेरे साथ जाने का आग्रह किया। मेैं हमेशा की तरह ना कर सका। गोरी चिट्टी, इकहरे बदन की काजोल की उम्र तकरीबन पच्चीस साल की होगी। नाक नक्ष आर्कशक थे। खास तौर से उसके अधर ,जिसके दोनेा कोर धनुशाकार थे और सुर्ख गुलाबी रंग से नहाये रहते। लगता था ईश्वर ने बडे सलीके से उसे तराशा था।
‘‘बस बस यही उतरना है,’वह आहिस्ता से मेरे पीछे की सीट से उतरी। दबे स्वर में धन्यवाद दिया। फिर निकल ली। सड़क के उसपार उसका गली में घर था। मैंने आजतक उसके घर के बारें में नहीं पूछा। पूछूं भी तो क्येां? वैसे भी मेरी किसी की निजी जिंदगी में दिलचस्पी कम ही रहती हेै। एक दिन मेरे मन में ख्याल आया कि क्यों मेै उसपर इस तरह की इनायत करता हूं। वह मेरी लगती ही क्या है। कामकाजी संबंधेां को निजी नहीं बनाना चाहिए। बहरहाल कुछ सवाल ऐसे होते है जिसका जवाब इंसान के वश में नही होता। वह महसूस जरूर करता है मगर कह नहीं पाता। तो क्या मैं ऐसे ही विकार का शिकार हो गया था?
आरती से मेरी आज फिर से कहा सुनी हो गयी। कितनी बार कहा कि आफिस जाते समय मुझसे उलझा न करे तिसपर वह नहीं मानती। पूरा दिन खराब हो जाता।
पहले तो काजोल को मैने संजीदगी से नहीं लिया। मगर आहिस्ता आहिस्ता वह मेरे दिल में उतरने लगी। बेमेल प्यार, वह भी एकतरफा। पता नहीं मुझे क्या हो गया। आरती का रूखा व्यवहार तो इसके लिए नहीं जिम्मेदार था। जो भी हो यह सब सोचकर मैं अपने मन को तिक्त नहीं करना चाहता था। काजोल खुशनुमा हवा का झोंका थी जिसके स्पर्श मात्र से ही मेरा रोम रोम पुलक उठता। मेै उसका भरपूर लुफ्त उठाना चाहता था। वह मेरे नींद की वह हसीन ख्वाब थी जिसके टूटने मात्र से ही मेेै सिहर उठता। कल तक उसे गरज थी आज मुझे थी। वह जैसे ही जाने का आग्रह करती मै बिना एक पल गवांए हां कर देता। अब वह अक्सर जाने लगी। मुझे अच्छा लगता। एक दिन नहीं आयी। मेरा जी उदास हो गया। समय मिला तो फोन लगाया।
‘‘पापा की तबीयत खराब हो गयी थी। परसो आउॅगी,’’काजोल का स्वर बुझा हुआ था। एक दिन बाद आयेगी यह सोचकर ही मेरा दिल डूबने लगा।
‘‘हुआ क्या है?’’गुफ्तगू बढाने के नीयत से पूछा।
‘ब्लड प्रेशर लेा हो गया था,‘‘काजोल का जवाब था। अब इसके आगे क्या पूछूं। हमउम्र होता तो हो सकता है वह खुद पहल करती। मेरे सेवाओं की तलब होती उसे। इसी बहाने मेेै उसे अपने हाले दिल बयां भी कर देता। पर यहां तो उम्र का फासला था कि कुछ कहते नहीं बना। मोबाइल कटा तो मैं फिर से उसके रूप रंग की कल्पित दुनिया में खेा गया।
‘‘किससे बात कर रहे थे?’आरती का कर्कष स्वर गूंजा। इसी के साथ मेरी कोमल भावनाएं बिसर गयी। बहाने बना कर मामले को टाला।
मैं सोचने लगा आखिर इस उम्र में काजोल की तरफ क्यों आकर्षित हुआ?यह सत्य है कि काजोल नयी उम्र की नयी फसल थी। पर मेरा क्या उस फसल पर हक है?जाहिर है बिल्कुल नही। उसे युवाओं की क्या कमी। जब से काजोल मेरे जेहन में बसी, आरती से बात करना तो दूर उसकी तरफ देखने तक की इच्छा नहीं होती। काजोल जेठ की दुपहरी में सावन की फुहार की तरह थी। उसके एहसास मात्र से ही मैं तरोताजा महसूस करता। अब मैंने सोच लिया था कि आरती को जो कहना है कहे, मैं काजोल को खुद से विस्मृति नहीं करूंगा। मैं तनावमुक्त होकर जीने लगा। एक खुषहाल,स्फूर्ति,जोषपूर्ण दिनचर्या के साथ। आरती लाख चिल्लाती रहे मैंने उसकी परवाह करनी छोड़ दी। जब उसे अपने पति की भावनाओं का ख्याल नही तो भला मैं क्येां उसकी परवाह करूं। मुझे जीने का बहाना मिल गया।
धीरे धीरे उसके पिता की तबीयत संभलने लगी। वही मेरी बेचैनी बढती गयी। काजोल पर मैं बुरी तरह फिदा हो गया था। कलतक जो मेरे लिए कोई मायने नही रखती थी आज उसकी एक झलक न मिले तो दिल डूबने लगता। आफिस में उसके आने का बेसब्री से इंतजार रहता। जैसे ही उसके उन्मुक्त कदम आफिस में पड़ते एक मदहोश कर देने वाली खुशबू चारों तरफ बिखर जाती। उसके उन्मादित यौवन की उर्जा पाकर मैं दुगने जोश से काम पर लग जाता। काम के दरम्यान भी मैं उसे जब तब चोर नजरों से देख लेता। ऐसा करते हुए मुझे असीम आनंद की अनुभूति होती। कभी कभी तो मन इससे आगे निकल कर उसे बाहों में भर लेने के उतावला हो जाता। तब एक ऐसे एकांत की तलब होती जहां मेरे और उसके सिवाय कोई न हो। हम दोनों जी भर एक दूसरे पर प्यार उडेलते रहे। तभी मन का दूसरा पक्ष हावी हेाता। ये कैसा प्रेम? कैसी अकुलाहट? कैसा भटकाव। मुझे इस भटकाव का पूरा एहसास था। इसकी क्या वजह हेा सकती हैं। यही कि मुझे आरती से वह भावनात्मक सहारा नहीं मिला जिसकी मुझे जरूरत थी। उसे प्रेम के मायने ही नहीं मालूम थे। क्या घर गृहस्थी इतनी निर्मम होती है जो पति पत्नी के आपसी प्रेम को बेरहमी से कत्ल कर देती है? मेरे साथ तो ऐसा ही था। इसे अपवाद भी कह सकते है।
एक रोज उसने यह कहकर अचरज में डाल दिया कि अगले महीने शादी करने जा रही है। सुनकर मेरा सारा उत्साह ठंडा पड गया। लगा जैसे जिस्म से सारा खून निचोड लिया गया हो। किसी तरह खुद को संभाला।
मैं सोचने लगा,‘‘प्रेम केा उन्मुक्तता क्यों पसंद है? क्या बंधकर वह मुरझा जाता है। मेरा इशारा मेरी बीवी की तरफ था। मैंने खुद को यह सोचकर मनाने की कोशिश कि कुछ महीनों के लिए ही सही गुलाब कांटों के बीच ही खिलता है। काजोल उस जख्म के लिए मरहम की तरह थी जो मुझे आरती से मिलती रही।
