Adhuri Mohabbat Story: तभी टन – टन – टन की आवाज आती है सभी लोग एक – दूसरे की तरफ हंसते हुए देखते हुए कहते हैं चलो आ गई, हां चलो आ गई। सिटी बस बस स्टॉप पर आकर रूक जाती है ,सभी बस स्टॉप पर खड़े लोग बस में बैठने लगते हैं, कुछ ही पल के बाद बस चलने लगती है। तभी एक आवाज आती है अरे रुको , रुको, रोको कोई बस रोको, एक लड़की बस को पकड़ने के लिए आवाज देते हुए भागती है तभी एक हाथ उसकी तरफ बढ़ता है जिसे पकड़कर लड़की बस में दाखिल हो जाती है और खाली सीट पर जाकर बैठ जाती है।
लड़की के बगल में लाल साड़ी पहने 27- 28 साल की एक बेहद खूबसूरत युवती चेतन भगत की सुप्रसिद्ध उपन्यास हाफ गर्लफ्रेंड पढ़ रही थी, तभी यह लड़की उस युवती से मजाक में कहती है , कि आप किसकी हाफ गर्लफ्रेंड हैं ? युवती कहती है – थी। उस लड़की के चेहरे की हसी एक पल में गायब हो जाती है और निराशा अपना घर बना लेती है। वह उस युवती से पूछती है- थी ????? का मतलब। थोडी देर बाद युवती बताती है – मेरा नाम अनामिका है। उस लड़की ने कहा – ज्योति , जी मेरा नाम ज्योति है। अनामिका ने आगे बताया – मैं दिल्ली विश्वविद्याल में फिलोसॉफी की टीचर हूं। मेरी जिंदगी में मेरा एक खूबसूरत – सा पल था आलोक।
जिसके साथ मैने अपनी पूरी जिंदगी के सपने संजोए हुए थे। मैं आलोक से इंट्रोडक्टरी लेक्चर के दौरान ऑडिटोरियम में मिली थी,आलोक बहुत ही हसमुख और दिलफेंक था,सभी से हस कर बोलना और मजाक मस्ती करना उसका स्वभाव था। इसके विपरित मैं शर्मीली और एकांत में रहना पसंद करने वाली लड़की थी, मुझे मजाक मस्ती करना पसंद नहीं होता था। मगर फ़िर भी हमारा मिलना चुंबक के धुर्वों की तरह ही था, जो होते तो साथ में हैं मगर विपरीत दिशा में।
ज्योति ने थोड़ी उत्सुकता से पूछा – तो आपस में प्यार , मेरा मतलब है आपका और आलोक का रिश्ता कैसे बना ?
अनामिका ने कहा – हमारे कॉलेज में सीनियर्स को एक फेयरवेल पार्टी दी जानी थी, इसके लिए आलोक को चुना गया था, और मुझे उसका असिस्टेंट ,बस यहीं से हमारी नजदीकियां बढ़ने लगीं और हम एक – दूसरे के करीब आने लगे। फिर धीरे – धीरे हम कब एक – दूसरे से प्यार करने लगे यह हमें मालूम ही नहीं हो पाया था,मगर पूरे कॉलेज में हमारे रिश्ते की बातें आम सी हो गई थीं।
फिर किसी बॉलीवुड पिक्चर की तरह ही हम एक – दूसरे के साथ समय बिताने लगे। एक – दूसरे के साथ फिल्म देखना और शाम को पुरानी दिल्ली की पुरानी पराठे वाली गली में जाकर डिनर करना। यह सब कुछ! मगर , शायद हमारा यह रिश्ता बस यहीं तक ही था।
ज्योति ने पूछा – रिश्ता यहीं तक मैं कुछ समझी नहीं…।
अनामिका बताती है ,आलोक के माता – पिता का व्यवसाय था, वह चाहते थे, कि आलोक भी उनका व्यवसाय संभाले और उनके सपनों को पूरा करे,मगर आलोक अभिनेता बनना चाहता था, इसी वजह से उसने यह कॉलेज चुना ताकि वह यहां पर रहकर अपने एक्टिंग करियर और एमबीए दोनों पर अपना कार्य कर सके। और दोनों सपनों को पूरा कर सके।
ऐसे ही किसी शाम को हम दोनों पार्क में एक – दूसरे के साथ में बाहों में बाहें डालकर बैठे थे। तभी आलोक के फोन की रिंग बजती है,वह फोन में पापा का नाम देखकर मेरी तरफ चिंतित अवस्था में देखता है और कहता है,पापा का फोन .. है। मैं उसे फोन उठाने के लिए कहती हूं।
( तभी अचानक बस एक जोरदार ब्रेक के साथ में रूकती है ,कुछ यात्री उतर जाते हैं तो कुछ बस में चढ़ जाते हैं)
अनामिका आगे कहती है – आलोक मुझे वहीं अकेले छोड़कर , रिक्शे में बैठकर हॉस्पिटल चला गया।
मैं कुछ ही पल बाद वहां से चली जाती हूं। कुछ दिनों बाद आलोक मुझे कॉलेज कैंटीन में एक कोने में बैठा हुआ मिलता है। मैं उसके पास जाती हूं, और पूंछती हूं- क्या हुआ आलोक ? पिताजी .. ठीक हैं ना। आलोक मुझसे कहता है,पापा को हार्ट अटैक आया है, और …। मैने पूंछा – और क्या ? आलोक। आलोक ने कहा – पिताजी ने करियर के बारे में पूछा है । मैने पूंछा – तुमने क्या कहा आलोक ? मैने आलोक की पहली बार इतना सीरियस देखा था। आलोक ने अपना पूरा समय केवल अपने एक्टिंग करियर को ही दिया था, इसलिए एमबीए की अंतिम परीक्षाओं में उसका पास होना बहुत मुश्किल था। एक तरफ आलोक और दूसरी ओर मैं स्वयं, फिर मैने आलोक से दूरियां बनाना शुरू कर दिया, मैं आलोक को नजरंदाज करने लगी,उसके फोन को उठाना बंद कर दिया, उसके मैसेजेस का रिप्लाई करना भी बंद कर दिया था। एक दिन कॉलेज के कैंपस में उसने मेरा हाथ पकड़कर मुझसे पूंछ ही लिया , आखिर क्यूं ,क्यों मैं उसके साथ ऐसा कर रही हूं। उसके बार – बार ऐसे मुझसे पूछने की वजह से मैने उससे झूठ बोला – मैं तुमसे प्यार नहीं करती , नहीं करती मैं तुमसे प्यार, तुम बस मेरे टाइम पास हो,सिर्फ मेरे टाइम पास,एक खिलोने की तरह जब तक मन था तो खेला जब मन भर गया तो खेलना बंद कर दिया। यह सब कुछ पूरा कॉलेज देख रहा था,मेरे इस व्यवहार से सभी दंग रह गए थे। कोई भी समझ नहीं पा रहा था, कि मैं आलोक से बहुत प्यार करती हूं, तो फिर यह सब …..। मैने शहर बदल लिया,ताकि मैं आलोक से नहीं मिल सकूं।
(तभी कंडक्टर आवाज देता है -“दिल्ली यूनिवर्सिटी वाले निकल जाओ। )
अनामिका अपना पर्स अपने कंधे पर रखकर बस से निकल जाती है,
ज्योति सोच में पड़ जाती है, आखिर अनामिका क्यों? आलोक की नजरों में गिरी? आखिर क्यों??? तभी ज्योति को अनामिका की सीट पर वही उपन्यास हॉफ गर्लफ्रेंड रखी हुई दिखती है। वह उसे उठाकर कुछ ही पल बाद पढ़ने लग जाती है।
फिर बस का ड्राइवर रेडियो चालू कर देता है।
और इसी के साथ बस चल पड़ती है, और इस बस स्टॉप पर बहुत सारे सवालों को छोड़ जाती है।