सुमन की अधूरी गृहस्थी-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Houshold Story
Suman ki Adhuri Grehsthi

Houshold Story: यह कहानी बहुत पुराने समय की नहीं है। यह आज के जमाने की है। एक तरफ जहां देश तरक्की की सीढ़ियां चढ़ रहा था वही दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के बहुत छोटे से गांव में सुमन अपने मां-बाप और सात भाई बहन के साथ रहती थी। गांव ज़्यादा बड़ा तो नहीं था लेकिन सोच में उससे भी छोटा था। वहां लड़कियों को पढ़ाने लिखाने, आत्म सम्मान से जीने के तरीके नहीं सिखाए जाते थे। उनको तो बचपन से बस घर में रहकर सब की सेवा और जी हुजूरी सिखाई जाती थी। सुमन ने बचपन से अपनी मां को इसी तरीके से जीते हुए देखा था। उसके पिताजी हमेशा या तो अपने काम में रहते या फिर घर के बड़ों के बीच बैठ जाया करते थे। अपने पिताजी को अपनी मां से काम के लिए ही बात करते सुना था; खाना दे दो या कुछ और काम के लिए। उसने बचपन से देखा था कि मां अलग कमरे में सब बच्चों के साथ सोती थी और पिताजी घर के बाकी मर्दों के साथ आंगन में चारपाई पर सोते थे। छोटी उम्र में उसको कभी इस बात का एहसास नहीं हुआ था की मां को कैसा लगता होगा। मां के साथ बाकी सब औरतों को ऐसे ही देखा था।
सरकारी कानून की मजबूरी के कारण सुमन के पिता ने उसे गांव के विद्यालय में भेज तो दिया था लेकिन उनको उसकी कोई खुशी ना थी। वह अपनी पत्नी पर ही ज़ोर देते कि वह सुमन को पढ़ाई से दूर रखें और घर के कामकाज में ही हाथ बंटवाएं। वह अक्सर बहाने से उसकी छुट्टी करा दिया करते थे। सुमन को पढ़ना लिखना अच्छा लगता था। पिता से बचकर जितना हो सकता था वह पढ़ लेती थी और स्कूल का सारा काम पूरा कर लेती थी। मां को उसने प्यार से मना लिया था। उसने मां को वचन दिया था कि वह उनकी हर बात मानेगी।
विद्यालय में मास्टर जी सुमन से बहुत खुश थे उन्होंने उसको पढ़ने के लिए और भी किताबें लाकर दे दी थी। सुमन ने किसी तरीके से अपनी आठवीं कक्षा पार कर ली। गांव में क्योंकि देर से स्कूल भेजा जाता था इसलिए आठवीं कक्षा पार करते करते सुमन अब 17 साल की हो गई थी।
एक दिन पिताजी ने दुकान से आकर घर में खबर दी के गांव के बहुत बड़े रईस ठेकेदार ने सुमन की खूबसूरती देखकर उसको अपने बेटे से शादी के लिए पसंद कर लिया है। “अगले महीने इसकी शादी है समझी सुमन की मां”, पिताजी ने कहा।
सुनकर सुमन धक से रह गई, पढ़ाई तो छोड़ो अब उसको अपने अंदर अपनी मां दिखाई देने लगी। उसी गांव के ठेकेदार मतलब वही दकियानूसी सोच; यही सब सोचते किसी तरीके से उसने अपने मन को समझा लिया। उसने सोचा कि क्या पता पति बहुत अच्छे हो और मैं उनके प्यार के सहारे जिंदगी बसर कर लूंगी। सब रस्मों रिवाजों को अच्छी तरह निभाते शादी करके सुमन ससुराल पहुंची।
वहां दो-चार दिन तो रीतियों को पूरा करने में निकल गए। उसके बाद पति का साथ पाने का उसका पहला दिन आया। पहली बार उसे बहुत अलग सा प्यार और रोमांच महसूस हुआ था। उसको यही लगा कि चलो पढ़ाई जितनी कर पाई कोई नहीं। पति के प्यार के साथ आगे की पढ़ाई और अपनी गृहस्थी शुरू करूंगी। सुमन को यही लगा कि उसके पति मायके और ससुराल के बाकी मर्दों से अलग है। वह उससे बहुत प्यार करते हैं और हमेशा उसका साथ देंगे। लेकिन सुमन की गलतफहमी को टूटते हुए बहुत वक्त नहीं लगा…
अगले दिन रात में जब सोने जाने लगी तो सुमन का पति घनश्याम आंगन में जाने लगा। सुमन को लगा शायद उनका वहां कुछ काम है। लेकिन उसका पति वहां पड़ी चारपाई पर घर के बाकी मर्दों के साथ सो गया। इससे पहले के सुमन कुछ समझ पाती कि उसकी सास ने कहा,”यहां क्यों खड़ी हो? अपने कमरे में जाओ, श्यामू सबके साथ वहीं सोएगा। इस घर की यही रीत है। जब जरूरत होगी तो वह तुम्हारे पास आ जाएगा”। सुमन सोच में पड़ गई..”सिर्फ जरूरत, प्यार नहीं?” वह बेचारी तो एक तरीके से कुंए से निकल कर खाई में आ गिरी थी।
अब हर रोज यही होता। उसका पति सारा दिन दुकान पर रहता, रात को खाना खाके आंगन में चारपाई पर सबके साथ सो जाता। जब उसका मन करता वह सुमन के कमरे में आ जाता था। सुमन को शर्म भी आती कि कोई देख ले आते जाते तो कितना अजीब लगता है। साथ ही उसे घिन सी आती कि जैसे वह कोई इस्तेमाल की चीज़ है।
इसके अलावा वह यही सोचती कि दांपत्य जीवन का आधार क्या सिर्फ आदमी का सुख है या बच्चे पैदा करना? औरत के दैहिक सुख की कोई कीमत नहीं है? और क्या सिर्फ साथ सोना ही दैहिक सुख है? हर वक्त की छोटी मोटी नोंक-झोंक, रूठना मनाना, साथ में कुछ खास वक्त बिताना और इन सब के बीच प्यार…. यह सब उतना ही जरूरी है एक सुखी पति पत्नी के रिश्ते के लिए।
सुमन इन छोटे-छोटे दैहिक सुख से खुद को वंचित पाती थी। वह अपने पति का हाथ पकड़ना चाहती थी, उनको गले लगाना चाहती थी और कंधे पर सिर रखना या गोदी में सर रख कर सो जाना चाहती थी। शायद उसके पति को भी किसी दिन यह एहसास हो जाएगा, यही सोचते सोचते बरस बीत गए और अब सुमन दो बेटों की मां थी। ( यह तो प्रभु कृपा थी उस पर नहीं तो अपने और ससुराल वालों की बाकी घर की औरतों की तरह उसकी भी बच्चों की फौज बन जाती )
जो सुख की लालसा उसको पहले दिन से थी उसके अभाव ने सुमन को कुछ हद तक चिड़चिड़ा बना दिया था। उससे कहीं ज्यादा वो अंदर से खत्म हुई थी। ना कोई शौक न किसी बात का उस पर कोई असर। बस एक मशीन की तरह घर के काम करती रहती।
जब उसके बेटे बढ़े होने लगे तो फिर एक बार प्रभु कृपा से उसके पति को अपने कारोबार के कारण पास के छोटे शहर में रहने की जरूरत आन पड़ी। अपने परिवार को साथ लेकर घनश्याम शहर आ गया। बच्चे स्कूल जाने लगे तो उनको पढ़ाने लिखाने में सुमन ने अपने आप को खुश रखना शुरू किया। घनश्याम अभी भी वही ढाक के तीन पात। वो न सिर्फ अलग कमरे में सोता बल्कि अब तो जो थोड़ी बहुत दैहिक सुख सुमन को देता था उसके लिए भी बहुत ही अटपटा सा जवाब देता,” 2 बच्चे हो तो गए। डॉक्टर ने कह दिया ना अब कोई और बच्चा नहीं हो सकता तो क्या जरूरत है पास आने की”। सुमन की समझ में नहीं आया कि उसको कैसी सोच मिली है। फिर भी वह इंसान ही तो है कभी उसका मन पति को छूने या पास आने का करता तो घनश्याम बहुत ही घटिया जवाब देता,” तुम्हें तो बस यही सब छिछोरापन पसंद है। दो बच्चों की मां हो शर्म नहीं आती”।
एक नहीं कई बार यह सब बातें सुनते सुनते सुमन का मन अब अंदर से हताश हो चुका था। उसके लिए घनश्याम अब सिर्फ उसके बच्चों का पालनहार था और कुछ नहीं।
सुमन की जिंदगी बाहर से देखने में अच्छी लगती थी। अच्छा पैसा, अच्छे बच्चे और जिम्मेदार पति। लेकिन वह खुद कितनी अधूरी थी यह कोई नहीं समझ सकता था। बाहर वालों को तो समझा भी नहीं सकते। उसने भी तो अपनी मां और अपनी भाभियों को इसी तरह से जिंदगी बिताते देखा था। चाह कर भी कभी अपनी मां से कुछ कह नहीं पाती थी और गलती से अगर कभी उसने बहुत परेशान होकर अपनी मां से अपने मन की बात कही तो उसकी मां यही कहती,” दामाद जी ठीक ही तो हैं, तू ही फालतू की बातें सोचती है। सारी औरतें ऐसे ही रहती हैं। मुझसे तो तू बेकार की बातें ना करा कर”।
अपनी मां और पति के व्यवहार से सुमन जितनी अंदर से टूट गई थी उतनी ही अब अंदर से मजबूत हो गई थी। उसने अपने जीवन में अब सिर्फ तीन बातों को अपना उद्देश्य बना लिया था:
पहला, वह आगे की पढ़ाई करेगी और उसके बाद कुछ काम करके खुद को सफल बनाएगी और व्यस्त रखेगी; दूसरी, अपने बेटों को अच्छी पढ़ाई के साथ अच्छे संस्कार देना। उसमें खासतौर से किसी लड़की की इज्जत और उसकी खुशियों का ख्याल रखना जरूर सिखाएगी; तीसरी, अपने बेटों की शादी से पहले वह घर के बहुत पास उन दोनों के लिए अलग घर लेगी। वह चाहती थी कि उसके बेटे और उनकी पत्नियां दांपत्य जीवन का एक बहुत जरूरी हिस्सा दैहिक सुख का पूरा आनंद ले सकें। उन लोगों का दांपत्य जीवन सुमन की तरह अधूरा ना रहे।