Band Lifafe mein Khusiyan
Band Lifafe mein Khusiyan

Motivational Story in Hindi: सुबह का उजाला वैसा ही था। बाहर पेड़ों से चिड़ियों की कतरबतर सुनकर राधिका जाग उठी और अपने बिस्तर से उठ कर बाहर निकल आई।
मुंह हाथ धोकर उसने जल्दी से घर में झाड़ू लगाया फिर नहा-धोकर तैयार हो गई।
रात की रखी रोटी पानी के साथ निगल कर वह स्कूल के लिए भाग निकली।

इस साल बारहवीं थी, उसका पढ़ना भी बहुत जरूरी था।वह मन लगाकर पढ़ाई कर रही थी।
वह और उसके माता-पिता ने बहुत सारे सपने देखे थे। भले ही उसके पिता एक एक बहुत ही साधारण काम करते थे लेकिन उनकी सोच बहुत ही स्वतंत्र थी। वह अपने बेटे और बेटी में फर्क नहीं करते थे।वह चाहते थे कि जैसे उनका बेटा युग पढ़ रहा है उसी प्रकार राधिका भी पढ़ाई करे और अपना भविष्य सुदृढ़ बनाए।

लेकिन अचानक ही घर की स्थिति बिगड़ गई थी। उसके बाबा माधव की तबीयत खराब होने लगी थी। पहले बुखार हुआ, सिरदर्द और फिर पता चला टायफाइड हो गया है।दो महीने तक डॉक्टर, दवाइयां करते हुए घर की स्थिति बहुत ही खराब हो गई थी।
माधव एक दुकानदार थे। बघैया नामक एक छोटे से कस्बे के मामूली सा दुकानदार। गांव की दुकानदारी में कितना दम था! उसपर लगातार बीमारी के कारण दुकान बंद ही रह रहा था जिसके कारण आमदनी नहीं हो रही थी।
उसपर अस्पताल, डॉक्टर और दवाइयों का खर्चा,युग और राधिका की पढ़ाई और उनका खर्चा।
बहुत ही मुसीबत आ पड़ी थी। घर की स्थिति बहुत ही खराब हो गई थी। राधिका को किताबों की बहुत जरूरत थी लेकिन इस समय वह कह नहीं सकती थी,आखिर किस मुंह से कहे कि बगैर किताबों के पढ़ाई ही नहीं हो सकती।
वह अपना ध्यान केन्द्रित भी नहीं कर पा रही थी। क्लास में भी वह बाहर ही देखती रहती, सोचती रहती।
क्लास में अनमनी सी बैठी देखकर उसकी शिक्षिका सुमन ने पहले उसे बहुत डांटा फिर उसे अपने केबिन में बुलाया और उससे उसके इस हाल के बारे में पूछा।

राधिका रो पड़ी। उसने रोकर सबकुछ सच बता दिया।
सुमन ने कुछ देर तक सोच विचार करने के बाद राधिका से कहा “राधिका, मेरी जान पहचान में कुछ छोटे बच्चे हैं। उनके पैरेंट्स ने एक अच्छी टीचर बताने के लिए कहा है। तुम खाली समय में उन्हें जाकर पढ़ा दिया करो। इससे तुम्हारी पढ़ाई की रिवीजन भी हो जाएगी और पैसे भी मिल जाएंगे।”
“यह तो बहुत ही अच्छा होगा मैम! राधिका की आंखों में चमक आ गई, इससे मैं अपने लिए किताबें  खरीद सकूंगी और अपने बाबा के लिए सहारा भी बन जाऊंगी। प्लीज मैं आप मुझे काम दे दीजिए मैम!”राधिका अपने हाथ जोड़ते हुए बोली।
“बिल्कुल सुमन ने उसकी पीठ थपथपाते हुए बोली, मैं आज ही बात कर लेती हूं फिर मैं कल बता दूंगी ।”
दूसरे दिन जब राधिका स्कूल गई तो सुमन ने उससे कहा “आज तुम मेरे साथ चलना मैं तुम्हें उन लोगों से परिचय करा दूंगी ।”
बघैया एक छोटा सा गांव था जहां लोग एक दूसरे को जानते थे। सुमन का घर भी राधिका के घर से बहुत दूर नहीं था। सुमन लौटते समय अपने साथ राधिका को ले गई और उनलोगों से राधिका का परिचय करा दी।

राधिका उनके घर जाकर पढ़ाने लगी। वह खुद भी बहुत ही मेधावी थी इसलिए बच्चों को अच्छी तरह से पढ़ा रही थी।
थोड़े दिन बाद बच्चे बढ़ने भी लगे। अब कुछ पैसे वह आराम से कमा रही थी।

सुबह स्कूल, दोपहर में घर लौट कर वह खाना खाकर बच्चों को पढ़ाती फिर शाम को अपनी पढ़ाई करती। वह खुश भी रहने लगी थी।
एक बाल पत्रिका ने निबंध लेखन आयोजन किया था। सुमन ने पत्रिका  राधिका के हाथ में देकर कहा “राधिका देखो इसमें  कई विषयों पर निबंध लिखना है। अगर तुमने किसी दो विषयों पर एक सुंदर निबंध लिख दिया तो तुम्हें पत्रिका खुद ही स्कॉलरशिप देगी और पुरस्कार मिलेगा सो अलग।”
राधिका यह पढ़ कर बहुत खुश हो गई।
“जी मैम, मैं यह जरूर करूंगी।”
“हां अगर जरूरत हो तो मुझसे भी  मदद ले लेना।”
 राधिका खुशी-खुशी घर लौट आई। उसने बहुत मेहनत से पत्रिका के विषयानुसार दो विषयों पर निबंध लिखकर तैयार कर लिया। उसकी अध्यापिका सुमन भी उसकी मदद कर रही थी।
लेख तैयार कर उसने पत्रिका के एड्रेस पर भेज दिया ।
कुछ दिनों बाद उसके घर पर एक लिफाफा आया ।
बाल पत्रिका ने राधिका को राधिका प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया था।
लिफाफे में एक चिट्ठी थी जिसमें लिखा था “कुमारी राधिका को प्रथम स्थान प्राप्त करने हेतु बहुत बहुत बधाई।आप लोगों को पत्रिका के ऑफिस में बुलाया जा रहा है ताकि आपको सम्मानित किया जा सके।”

प्रथम पुरस्कार सात हजार रुपए था और स्कालरशिप भी। यह पढ़ते ही राधिका की आंखों में आंसू आ गए।
वह फूट-फूट कर रो पड़ी।आज उसके लिए अपनी भविष्य उज्जवल नजर आने लगा था निराशा में आशा की किरण फूट पड़ी थी।
उसके रोने की आवाज सुनकर उसकी मां घबराते हुए बाहर आईं और उससे पूछने लगी “क्या हुआ बेटी रो क्यों रही हो?”


“मां…! सुमन मैम ने मेरी किस्मत बदल दिया। मैं उनका कर्ज कभी नहीं उतार पाऊंगी।”
“क्या हुआ आखिर!”उसकी मां अब भी आश्चर्य से देख रही थी।
“देखो मां.!”राधिका ने उसे सारी बातें बताया।
“अरे वाह बेटी, तुमने तो हम सबका मान बढ़ दिया बेटी। तेरे बाबा यह सुनकर कितने खुश होंगे।उनकी बीमारी ठीक हो जाएगी।”
“हां मां, मैं पहले सुमन मैम को धन्यवाद दे आती हूं। यह सब उनके कारण ही हुआ है।”उसने अपनी मां से कहा और हाथ में वह पेपर लिए सुमन के घर की ओर दौड़ पड़ी।
सुमन अपने घर से बाहर ही अपने पौधों को पानी दे रही थी। राधिका दौड़ती हुई गई और जाकर सुमन के पैरों पर गिर पड़ी ।
“अरे राधिका, ये क्या कर रही हो? ऐसे क्यों…?”
राधिका उसकी बात काटते हुए बोली ”मैम, अपने मुझे गरीब को कितना अमीर बना दिया। आपने तो मेरी किस्मत ही बदल दिया।अब मेरी पढ़ाई का कोई पैसा नहीं लगेगा। देखिए मैम मुझे उस पत्रिका ने प्रथम पुरस्कार दिया है। यह सब आपके कारण ही हुआ है।”

“मेरे नहीं तुम्हारी मेहनत  के कारण हुआ है राधिका!”सुमन ने उसे ऊपर उठाते हुए कहा।
राधिका रो रही थी। सुमन उसकी आंखें पोंछते हुए बोली”बस ऐसे ही मेहनत करते जाओ। कल तुम्हारा होगा , निश्चित ही।”
राधिका मुस्कुरा उठी। उसकी आंखों में सुदृढ़ भविष्य के सपने चमक उठे थे।