Hindi Social Story
Hindi Social Story

Hindi Social Story: “देखना मेरी सुमेधा ससुराल में राज करेगी “माँ की बात उसके कानों में बार बार टकरा रही थी..
उनके गर्व पर मनीष के तीखे बोल भारी पड़ रहे थे।
उसके मन में प्रश्न घुमड़ रहे थे कि आखिर क्यों हम स्त्रियाँ दोहरी जिंदगी जीने पर विवश हैं ?
सर्वगुणसम्पन्न दादी जब तक जीवित रहीं उन्हें दादाजी ने कभी न सराहा और इस दुनिया से विदा लेते ही वो अचानक से देवी हो गईं।
 ,दादी का दर्द “मैके की हम चतुर सयानी ,
                   ससुरे में फूहड़ कहलानी ।
कहकर हमेशा ही बयाँ होता ,अक्सर, दादी क्यों  सहती हो आप भी घर में काम करती हो ,अगर दादाजी कमाते हैं तो ?वो जब भी जज्बाती होकर कहती।
न बेटा..पति सिर्फ़ सिन्दूर नहीं होता वो स्त्री का भाग्य भी होता है।
सुमेधा की पुकार के साथ वो यादों के चक्रव्यूह से बाहर निकली और घर पर एक गहरी नज़र डालकर सोचने लगी यह कैसी सिन्दूर की कीमत है जो सिर्फ़ पत्नी को ही खोखला करती है
कलात्मक और हरियाला प्रवेशद्वार अपनी मालकिन का मिज़ाज बयाँ करता साफ सुथरी करीने से सजी बैठक, जिसमें भीमकाय सोफों पर सुमेधा के हाथों से कढ़े हुए सोफा कवर पड़े थे।

ऊपर लटकता झूमर और कोने में हाथ से बने न जाने कितने कला के नमूने मेहमानों को उन पर अपनी नज़रें टिकाने को विवश कर रहे थे।

उधर दीवार पर टँगी ढाई बाई तीन की सुमेधा के हाथ से बनी जीवंत ऑयल पेंटिग अपनी मालकिन के सुरुचिपूर्ण होने का परिचय दे रही थी।

कोई भी मेहमान  घर आता, न जाने कितने हाथों से बने पारम्परिक व्यंजन और उन्हें परोसने और मनुहार सहित खिलाने के तरीका बार बार आने को विवश कर देता आगन्तुक।
उसकी  मेहमान नवाजी के सभी मुरीद रहते क्या पड़ोसी क्या रिश्तेदार, और इस सबके पीछे बोलती सिर्फ़ और सिर्फ़ सुमेधा की मेहनत।
जबकि मनीष इसे सबको अपनी अनुशाषित रखने की आदत मानता।
बैठक में अपने बचपन के  दोस्त विशाल  के साथ बैठा मनीष,स्वादिष्ट पकवानों का आनन्द लेने के साथ-साथ काफी देर से सुमेधा को  तानों की बौछारों का निशाना बनाये जा रहा था।
विशाल की पत्नी रुपाली सुमेधा के साथ अंदर रसोई में थी।इधर चाय के दौर पर दौर चलते जा रहे थे, उधर सुमेधा की मेहनत भी दोगुनी होती जा रही थी।
किसी रिश्तेदार और दोस्त के सामने सुमेधा की मज़ाक उड़ाना और उसकी कमी निकलना जैसे मनीष का स्वभाव ही बन गया था।
ऐसा नहीं था कि सुमेधा उसे टोकती न थी या विद्रोह न करती, तब मनीष उसे मना ही लेता मगर अपनी आदत सुधारने का नाम नहीँ ले रहा था।

आगन्तुक भी उसकी बातों पर हँसने के सिवाय क्या कर सकता था।अभी मनीष अपनी आदत के अनुसार बातें कर ही रहा था।

कि मनीष की बेटी ऋषिका ने बैठक में प्रवेश किया।
दसवीं कक्षा की छात्रा ऋषिका बेहद गंभीर बच्ची थी, जो अपनी माँ का ही प्रतिरूप भी थी गुणों में ।
तब काम निपटा कर सुमेधा और रुपाली भी  बैठक में आ गए अब बैठक में रूटीन वाले कामों की बातें होने लगीं थी।
मनीष ने रुपाली से प्रश्न किया,” भाभीजी !आप सुबह कितने बजे तक विशाल को खाना दे देतीं हैं।

रुपाली ने शालीनता पूर्वक कहा भैया ये कॉलेज नाश्ता कर के जाते हैं खाना घर आकर खाते हैं।

हा हा हा हँसते हुए मनीष ने कहा एक सुमेधा है,मैडम  से साढ़े आठ बजे तक खाना ही नहीँ बनाया जाता।
ऋषिका ने बेचारगी से माँ की तरफ देखा, सुमेधा पनीली आँखों से बस खिसियानी हँसी हँस कर रह गयी।
तब तक विशाल ने बात सँभालते हुए कहा, यार मनीष तेरी आदत न गयी मज़ाक की अभी तक।

बात   बदलने की गरज से रुपाली ने सुमेधा के झुमकों की तारीफ करते हुए कहा, “बहुत सुंदर डिज़ायन हैं,कहाँ से लिये”।
सुमेधा के कुछ बोलने से पहले ही ऋषिका ने तपाक ने कहा,”ये पापा ने नहीँ  बनवाये आँटी जी मम्मी को नानाजी ने दिये हैं,बहुत पुराने हैं।
मनीष का तो मानो मुँह ही बन गया, आज ऋषिका ने भी जैसे कसम खा ली थी सच बोलने की ।
उसके हर तीसरी बात में नाना-नानी या सुमेधा के नाम लेने से मनीष की  जितनी भी मज़ाक की आदत और ख़ुशमिज़ाजी थी मानों हवा में उड़ गई कपूर की तरह।

उसने खा जाने वाली नज़रों ने ऋषिका को घूरा मग़र वह बिना उसकी ओर देखे पटर -पटर किये ही जा रही थी।अब मनीष को मेहमानों का रुकना एक एक पल भारी होता जा रहा था।
किसी तरह उसने वक़्त काटा, और रुपाली और विशाल के अपने घर वापस  जाते ही उसका ज़ब्त किया हुआ लावा बाहर उबल पड़ा।
उसने ऋषिका को घूरने के बाद  सुमेधा को खा जाने वाली नज़रों से देखते हुए कहा,”देख रहा हूँ, आजकल तुमने बहुत बदतमीज बना दिया है अपनी बेटी को।
मेहमानों के सामने सारी बनी बनाई इज़्ज़त का कचरा कर दिया।इतनी बड़ी लड़की को तमीज़ भी ‘ त ‘ भी न सिखा पाईं तुम।याद रखो!इसे पराये घर जाना है…
“सॉरी पापा ! पर ….इस बार मैंने सब जान बूझकर किया था “ऋषिका ने मनीष से आँखे मिलाकर कहा।
जानबूझकर क्यों?
क्योंकि मम्मी तो सबको सम्मान देती हैं,मगर आप उनकी बुराई सबके सामने किया ही करते हैं,बेवजह।
फिर मैं इतनी छोटी भी नहीँ हूँ कि मुझे आपके झूठ और सच में अंतर न मालूम हो।मम्मी कल रात से कितनी सारी तैयारियों में लगीं थी।
“तो तुम बड़ों के बीच में बोलोगी”,मनीष अब भी अपनी बात पर क़ायम था।
हाँ क्योंकि मुझसे मम्मी का उतरा हुआ चेहरा सहन नहीं हुआ,उनकी तारीफ तो दूर आप ख़ुद  उन्हें  मेहमानों के सामने नीचा दिखा रहे थे।मुझे उन पर सच में बड़ी दया आ रही थी।
मनीष बेटी के इस तीखे तीर पर सकपका सा गया,उधर ऋषिका के साथ उसका आठवीं क्लास में पढ़ने वाला छोटा भाई नकुल भी आज बहन  की ढाल बना हुआ था।
बेटा! इतना हँसी मज़ाक तो चलता है,मैं और मम्मी भी तो फ़्रेंड्स जैसे ही हैं न, मनीष अब थोड़ा शान्ति से काम लेने चला।

“हँसी मज़ाक! पापा!आप सच, बताइये मम्मी इतनी सुबह आपके मन का पूरा खाना बना कर देतीं हैं जब कि विशाल अंकल बस नाश्ता करके जाते हैं”नकुल भी बोल पड़ा।
“मम्मी मुझे नकुल और आप को दादी को ख़ुश करने के लिये दिन रात एक टाँग पर नाचती हैं और बदले में उन्हें क्या मिलता है,बस सबके सामने अपनी इंसल्ट”,ऋषिका रूआंसी हो आई थी।”

आपके आये दिन के सरप्राइज वाले लोगों के इनविटेशन को मम्मी बिना किसी विरोध के सब करती हैं ।मगर आप रत्ती भर भी नहीँ सोचते कि मम्मी के दिल पर क्या गुज़रती होगी?

ऋषिका की बातों को मनीष सिर्फ़ आश्चर्य से सुनता जा रहा था उसने सोचा भी न था, कि उसकी गोद की गुड़िया इतनी बड़ी कब हो गयी जो अपने पिता को भी राह दिखाने लगी।

उसने सच्चे दिल से कहा, “सॉरी बच्चों, मैं कोशिश करूँगा कि ये आदत बदल डालूँ”।
थैंक यू पापा, बच्चों ने मुस्कुरा कर कहा
हमनें कई बार मम्मी को आप के सम्मान के लिये झूठ का सहारा लेते हुए भी देखा है।जब वो नाना जी की गिफ्ट की गई चीजों को आपकी लाई हुई बता देतीं है।

अगर वो मेहमानों के लिए  सब कुछ करदें और सिर्फ़ बात ही न करें आपके मेहमानों से, तब  भी आपको पता चल जायेगा कि मम्मी क्या अहमियत रखतीं हैं हम सबकी ज़िंदगी में।
“हाँ पापा मम्मी को उनके हिस्से का सम्मान मिलना ही चाहिये उनके अपने ही घर में”,नकुल ने ठहरे स्वर में कहा।
नहीँ तो…हम दोनों भी आपसे बात नहीँ करेँगे।
अब मनीष को सोचना ही पड़ा इस बारे में,और सुमेधा खामोशी के साथ प्यार भरी नजरों से अपने बच्चों को देख रही थी और सोच रही थी,कौन कहता है कि माँ के बाद माँ सी नहीँ मिलती।आज बच्चों ने वो कर दिखाया जिसमे उसे बरसों लग गये।
एकांत के क्षणों में  मनीष बोला “सॉरी सुमेधा ,मगर आज सुमेधा बात को आर पार करने के विचार में थी।
उसने प्रश्न किया ,”मनीष विवाह की वेदी पर सिंदूरदान के समय आपने मेरे आत्मसम्मान की रक्षा की भी शपथ ली थी पर कीमत सिर्फ़ मैं ही चुका रही हूँ।
विवाह का अर्थ ,सिर्फ पति पत्नी का साथ सोना नहीं है एक दूसरे का होना भी है,उसका सम्मान करना भी है।
आप इस विषय में शुरू से असफ़ल रहे हैं ,मैं नहीं चाहती कि ये आदत ऋषिका में ग़लत को सहने को जन्म दे और नकुल को ग़लत करने को।
सिन्दूर गर्व होता है उसे अंगारा मत बनाइये कहकर वह मुँह फेरकर सो गयी।
मनीष को आज पहली बार इस मोर्चे पर  दोहरी चोट मिली थी, ऋषिका  की बात, आप ही कहते हैं कि सम्मान किसी भी क़ीमती चीज़ से ज़्यादा कीमती होता है तो जब सबको मिलता है तो  मम्मी के लिये कंजूसी क्योँ,मुझे आप जैसे लड़के से बिल्कुल शादी नहीं करनी?
ने उसे सोने नहीं दिया
उसे अपनी कुंठित सोच पर दर्द के साथ  गर्व भी हुआ  कि मेरे बच्चों की सोच इतनी सी उम्र में भी मुझसे बेहतर ही है।
आज  माँ के लिये बच्चों के उठाये गए क़दम ने स मनीष के हृदय को भी आनन्दित कर दिया था।
सिन्दूर की कीमत एक दूसरे का सम्मान है ये उसे   भले ही देर से समझ आई।
 सुबह  उसके सॉरी कहने भर  से ही  सबके मन में नई  शुरुआत हो  चुकी थी।