गृहलक्ष्मी की कहानियां : जलता हुआ सच
Stories of Grihalaxmi

गृहलक्ष्मी की कहानियां : मेधा को लड़के वाले देखने आए हुए थे। लड़का प्रथम श्रेणी अधिकारी था। देखने में आकर्षक व शरीर सौष्ठव भी बेहद अच्छा। मि. वर्मा मन ही मन बहुत खुश थे और ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे कि यहां बात पक्की हो जाए तो बिटिया के भाग्य खुल जाएं। वे भी सुकून से दुनिया को अलविदा कह पाएंगे। जब से पेट का कैंसर उन्हें पता चला है, रात-दिन सुमेधा की चिंता उन्हें खाए जा रही है। मिसेज वर्मा तो बहुत पहले ही स्वर्ग सिधार चुकी थीं। बड़े ह्रश्वयार से दोनों बच्चियों को उन्होंने पाला था। बड़ी बेटी सुनयना का विवाह वे अच्छे परिवार के इंजीनियर लड़के से कर चुके हैं। सुशांत अच्छा इंसान व अच्छा दामाद साबित हुआ है, कैरियर भी आगे बढ़ता ही जा रहा है। कुल मिलाकर बड़ी बेटी को लेकर वे संतुष्ट थे। बस छोटी के हाथ पीले करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री करना चाहते हैं।

वे इस बात से संतुष्ट होना चाहते थे। बिटिया अपने गुण और रूप के अनुसार ही घर-वर पाए। उन्हें पूर्ण विश्वास था कि सुमेधा को देखने में तो वे पास कर ही देंगे। चिंता सिर्फ इस बात की थी कि लेन-देन पर बात न बिगड़ जाए। वे गणित लगाए जा रहे थे। भविष्य निधि खाते से सारे पैसे निकालने के बाद भी यदि काम न चला तो कहीं वे उधार ले लेंगे। अपने इलाज के लिए तो एक भी पैसा न रखेंगे क्योंकि इस बीमारी में और इस अवस्था में जीवन की उम्मीद कम ही है तो फिर पैसा बरबाद करने से क्या फायदा। बेटी अच्छे घर में जाएगी तो आराम से अंतिम सफर पर चले जाएंगे। मन में ऐसी जाने कितनी उधेड़-बुन चल रही थी।

सुनयना और सुशांत भी इसी शहर में थे सो उन्हें भी फोन कर चुके थे। पत्नी की मृत्यु के बाद जब से सुनयना बड़ी हुई है, वे उसकी राय के बिना कोई काम नहीं करते थे। फिर जब से सुशांत उन्हें मिला है वह भी सच्चे शुभचिंतक की तरह सलाह देता है। दूसरे शब्दों में कहें तो उन्हें बेटे की कमी महसूस नहीं होने देता। उन दोनों ने आते ही सब संभाल लिया। सुशांत ने चाय-नाश्ते की व्यवस्था स्वयं करने का जिम्मा लिया। सुनयना ने सुमेधा को तैयार किया। जब उसने कमरे में प्रवेश किया तो सब देखते रह गए। वह बहुत प्यारी लग रही थी।

सुंदर तो थी ही, शिक्षा व संस्कारों की आभा से उसका चेहरा दैदीप्यमान हो उठा था। सुयश व उसका परिवार उसे देखते ही खुश हो गए। रिश्ते को हां कहने में उन्होंने देर न लगाई। साथ ही बिना दहेज के विवाह की बात भी रखी। मि. वर्मा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। वे हवा में उड़े जा रहे थे। हे ईश्वर, तेरे चमत्कार भी निराले हैं। इतनी आसानी से इतना अच्छा घर-वर मिलना वह भी बिना दहेज के, यह चमत्कार नहीं तो और क्या है? उन्होंने बड़ी बेटी दामाद पर नजर डाली। सुशांत की आंखों में खुशी की चमक थी। सुनयना चुप थी। उन्होंने सोचा शायद मां की याद आ रही होगी। सुमेधा तो बहुत खुश नजर आ रही थी। वह और सुयश चोर निगाहों से एक-दूसरे को देख रहे थे। उन्हें वहीं छोड़ कर उन्होंने अंदर के कमरे में बड़ी बेटी दामाद को बुलाया और राय पूछी। सुशांत बोला, ‘पापा रिश्ता बहुत अच्छा है, लड़का इतनी बड़ी पोस्ट पर है और जरा भी घमंड नहीं है, बस आप भी जल्दी हां कह दीजिए।’

पर ये क्या बड़ी बेटी का मूड तो उखड़ा हुआ था, ‘पापा इतनी जल्दी भी मत कीजिए, मुझे तो लड़का कोई ज्यादा अच्छा नहीं लगा। अपनी सुमेधा को इससे भी अच्छे लड़के मिलेंगे।

‘क्या…?’वर्मा जी सन्न रह गए। कुछ समय पहले की खुशी पल भर में काफूर हो गई।

‘क्यों बेटा, क्या कमी है बता तो।विचलित थे।

‘आगे मैं कुछ नहीं बोलूंगी। जो कहना था, कह दिया।’ यह कहकर वह कमरे के बाहर हो गई।

पर वर्मा जी तो धम्म से वहीं बैठ गए। बाहर कमरे में छोटी बेटी अपने सुनहरे भविष्य के सपने बुन रही थी और बड़ी बेटी जिसकी हां के बिना वे कोई काम नहीं करते थे। रिश्ते के लिए न कर रही थी। सुशांत भी आश्चर्य में था उसकी बात सुनकर। उसे तो रिश्ते में कोई खोट नजर नहीं आ रहा था। खैर वर्मा जी ने भारी मन से बाहर जाकर रिश्ते को मना कर दिया। लड़का हतप्रभ था, उसके चेहरे पर अपमानित होने के स्पष्ट भाव थे।

वे लोग बिना कुछ बोले वहां से चले गए। मि. वर्मा सुमेधा जड़वत उन्हें जाता देखते रहे। सुमेधा तो कुछ समझ ही नहीं पाई। वह दौड़ कर वाशरूम में घुस गई। नल के पानी की आवाज के साथ अपनी सिसकियां मिलाने लगी। सुशांत बार-बार पत्नी से पूछ रहा था कि क्या कमी थी उन लोगों में, बताओ तो। पर वह किसी से नजर नहीं मिला रही थी। काम का बहाना करके वह वापस घर लौट गई। रास्ते में फिर सुशांत ने पूछा, ‘बताओ सुनयना क्या बात थी। इतना अच्छा रिश्ता शायद ही अब सुमेधा को मिलेगा। मुझे तो लगता है, मुझ से कहीं ज्यादा अच्छा लड़का था वह।

‘बस यही तो वह कारण था मेरे नापसंद करने का कि वह तुम से भी अच्छा था। कहकर सुनयना आंखें चुराने लगी।