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गृहलक्ष्मी की कहानियां : जलता हुआ सच

लड़के और उसके घरवालों ने सुमेधा को देखते ही पसंद कर लिया था। लड़का हर तरह से अच्छा था, परिवार भी, लेकिन फिर भी ऐसा क्या था कि सुमेधा की बहन को उसके लिए यह रिश्ता पसंद नहीं आया…

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पिता के प्यार में भी छुपी होती है मां जैसी ममता

आज की पीढ़ी को जानकर अचरज होगा कि आज से पहले चार-पांच पुरानी पीढ़ी वाले पुरूष अपने बच्चे की देखभाल तो दूर उन्हें गोद में उठाना तक अपनी मर्दानगी के खिलाफ समझते थे। उनके लिए पुरूष से पिता होने का सफर घर को एक चिराग या वारिस देने से ज्यादा और कुछ नहीं था। पुरूष कमाता और औरत घर चलाती। पुरूष का पुरूष होना उसके पिता होने तक ही सीमित था और वही उसकी मर्दानगी का सबूत थी, इसके अलावा घर के भीतर किसी भी कार्य को करना उसकी शान के खिलाफ माना जाता था।

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‘फादर्स डे’ स्पेशल: तो इसलिए पापा की लाडली होती हैं बेटियां

एक समय था जब पिता को पुत्री संतान के नाम से ही खीज होती थी, लेकिन आज कारण भी बदले हैं और हालात भी। बेटी पिता के लिए कोई बोझ या जिम्मेदारी बनकर नहीं रह गई हैं, बल्कि पिता की शान और पहचान का हिस्सा बन रही है। बाप-बेटी का रिश्ता गहरी दोस्ती का रूप इख्तियार करने लगा है। जहां संवेदनाएं भी हैं और परवरिश भी। सिमटती दूरियों में पिता को बेटी की अहमियत नजर आने लगी है तभी शायद आज बेटियां भी पापा की लाडली हो गई हैं और मिलती तवज्जो से बेटियां भी फक्र से कहने लगी हैं-‘हां मैं हूं पापा की लाडली।’

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